कुछ खबर नही हम को अपना या पराया है,
ढूंढने ये दिल जिस को इस गली मे आया है।
हम दुआये देते है तुम को फिर भी जान-ए-जान,
मगर तुम ने इस दिल को बे-पनाह सताया है।।
मार कर मुझे क़ातिल ग़मज़दा सा लगता है,
इस लिये तो चलते हुये थोडा लडखडाया है।
काश अपने दिल की आग अश्क से बुझा सकते,
रूठ जब गये आँसू उसने तब जलाया है।।
जल रहा था दिल मेरा फिर भी शुक्र है इतना,
उनको इस तमाशे मे कुछ मज़ा तो आया है।।
8 Comments:
काश अपने दिल की आग अश्क से बुझा सकते,
रूठ जब गये आँसू उसने तब जलाया है।।
वाह रवि जी बहुत खूब...आप अच्छा लिखते हैं...
नीरज
par kash apne dil ko ham samjha pate. Bahut sundar bhawna
आप के द्वारा दी गई प्रतिक्रियाएं मेरा मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन करती हैं। आशा है आप इसी तरह सदैव स्नेह बनाएं रखेगें… धन्यवाद !
खुबसुरत भाव
कुछ खबर नही हम को अपना या पराया है,
ढूंढने ये दिल जिस को इस गली मे आया है
Ishq mein agar ye khabar ho to ishq ishq nahi rahta...... Sunar likha hai RAVI JI
कुछ खबर नही हम को अपना या पराया है,
ढूंढने ये दिल जिस को इस गली मे आया है
Ishq mein agar ye khabar ho to ishq ishq nahi rahta...... Sunar likha hai RAVI JI
ek khubsurat rachana ......badhaaee
"रूठ जब गये आँसू उसने तब जलाया है"
बहुत खूब!
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