पुराणों के अनुसार भगवान शंकर के त्रिशूल पर बसी धार्मिक नगरी वाराणसी में गंगा के घाटों पर प्रतिदिन सुबह से रात तक कोई न कोई धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यक्रम चलता रहता है. जब माँ गंगा में दीपकों का दान होता है, जब श्रद्धालू गण गंगा स्नान के लिए उमड़ते हैं, जब आध्यात्मिक मंत्रोच्चार और मंदिरों की घंटियों की आवाज कानो में पड़ती है, जब गंगा की पूजा की तथा आरती के दृश्य दिखायी पड़ते हैं तो माँ गंगा के प्रति हर कोई नतमस्तक हो ही जाता है.

लेकिन लगातार प्रदुषण की मार झेल रही भारत की “लाइफ लाइन” कही जाने वाली गंगा ऐसा लगता है जैसे आज तिल-तिल कर मर रही है लेकिन उसके तथाकथित पुत्र उसे चुप-चाप मरते हुए देख रहे हैं और गंगा कि दुर्दशा ऐसी तब है, जब ‘गंगा एक्शन प्लान’ का दूसरा चरण चल रहा है। कहना न होगा कि गंगा सफाई के नाम पर करोड़ों रुपए अब तक बहाए जा चुके हैं, लेकिन वही हालत है कि 'ज्यों-ज्यों दवा की, त्यों-त्यों मर्ज बढ़ता गया'। गंगा सफाई के सरकारी प्रयास के अलावा कम से कम तीन दर्जन गैर सरकारी संगठन वाराणसी में ऐसे हैं, जो दसों साल से गंगा प्रदूषण का राग अलाप रहे हैं, लेकिन गंगा में प्रदूषण रोकने के लिए प्रयास नहीं किए।

मां गंगा का आस्तित्व तभी है जब उनका प्रवाह अविरल बना रहे। मां गंगा को भी टिहरी में कैद करके रखा गया है। ‘गंगा तेरा पानी अमृत’ अब बीते जमाने की बात होकर रह गई है, क्योंकि वाराणसी में गंगा का पानी अब अपने प्रदूषण के उच्चतमस्तर पर पहुंच गया है। गंगा अब मरने की कगार पर पहुंच चुकी है और वह दिन दूर नहीं जब गंगा इतिहास के पन्नों में सरस्वती नदी की तरह कहीं खो जाएंगी। गंगा में ऑक्सीजन की मात्रा अबतक के निम्नतर स्तर पर है, क्योंकि टिहरी में गंगा के पानी को रोक को दिया गया है और गंदे नालों का पानी गंगा में लगातार गिर रहा है, जिससे ऑक्सीजन की मात्रा लगातार कम होती जा रही है। ‘नदी बेगे न शुद्धते’, अर्थात जिस नदी में धारा नहीं होगी उसकी गुणवत्ता भी समाप्त हो जाएगी।

टिहरी से गंगा को मुक्त कर दिया जाए और शहरों के गंदे नाले गंगा में गिरने बंद हो जाएं, तभी गंगा बच सकती है वरना इसे बचाना संभव नहीं है। यदि अब गंगा को बचाने के ठोस प्रयास नहीं किए गए तो गंगा को कोई नहीं बचा सकता है।

1 Comments:

lata said...

बिल्कुल सही बात.
पर हम कुछ भी नही कर पा रहें.