ज़िन्दगी ने मुझे बहुत कुछ सिखाया
तन्हाई मे जीना सिखाया
प्यार को छुपाना सिखाया
दोस्तो से हसके मिलना सिखाया
और मन ही मन रोना सिखाया
अब तो क्या कहुँ,
ज़िन्दगी ने बहुत कुछ सिखाया
मगर जीना नही सिखाया

5 Comments:

mehek said...

अब तो क्या कहुँ,
ज़िन्दगी ने बहुत कुछ सिखाया
मगर जीना नही सिखाया
bahut khub,thanks for ur comment ,i write more on my wordpress blog

http://mehhekk.wordpress.com/

rather than writing on this english blog.regads.

दिगम्बर नासवा said...

ये सब भी तो jeene के एक अंग ही हैं रवि जी...............
सुन्दर रचना है .......लाजवाब है

राकेश 'सोहम' said...

दोस्त रवि श्रीवातव जी,
इसीलिए तो जिंदगी जी लेने की कला का नाम है .
इतना खूबसूरत ब्लॉग पहली बार देख रहा हूँ .
[] राकेश 'सोऽहं'

Dr. Ravi Srivastava said...

आज मुझे आप का ब्लॉग देखने का सुअवसर मिला।
राकेश जी, वाकई आपने बहुत अच्छा लिखा है।

...बिन पिए ही क़दम लड़खडाते हैं इस कदर,
तेरी आंखों से घूँट-घूँट पी रहा हूँ मैं ।...

आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी और हमें अच्छी -अच्छी रचनाएं पढ़ने को मिलेंगे, बधाई स्वीकारें।

आप मेरे ब्लॉग पर आए,और एक उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया किया... शुक्रिया.

आप के अमूल्य सुझावों का 'मेरी पत्रिका' में स्वागत है...

आप ने ऊपर जो तस्वीर लगा राखी है, उसमे मुझे बहुत कुछ दिखाई पडा....क्या यह चित्र चुनने का कोई ख़ास कारण है, या बस ऐसे ही??? ज़रूर बताइएगा.

राकेश जी, अगर आप 'मेरी पत्रिका' में रचनाओं का योगदान देना चाहते हैं तो आप का स्वागत है. इसके लिए आप को अपना ई-मेल पता और मोबाइल न. इस पते ( meripatrika@gmail.com or ravibhuvns@gmail.com )पर भेजना होगा. फिर आप को इसका निमंत्रण भेजा जाएगा.

…Ravi Srivastava
From- Meri Patrika
www.meripatrika.co.cc

राकेश 'सोहम' said...

दोस्त रवि जी, यही खूबी है जो दिखाई नहीं देता वह आपको दिखाई दिया 'सरोवर'.
जी हाँ, इस चित्र में सरोवर नहीं है. कहीं एक व्यंग्य सा भी है कहीं खोज.
मेल देखें
[] राकेश 'सोऽहं'