जो रहते हैं सदा दिल में, उन्हें ढूँढा नही करते,
जो रच जाएँ राग-ओ-पय में, उन्हें सोचा नही करते।
बहारों के घने साए में तल्खी भी है, चुभन भी है,
ग़मों की धुप का तुमसे मगर शिकवा नही करते।
नही आते कभी भी लौट कर गुज़रे हुए मौसम,
बरसते बादलों की आस में तरसा नही करते।
ताजसुस और बढ़ता है मचल जाते हैं सुन कर हम,
अचानक प्यार की बातों का रुख मोड़ा नही करते।
तेरी नज़र-ऐ-इनायत से हुए जाते हैं जो घायल,
उन्हें कातिल निगाहों से देखा नही करते।
अगर आप मांसपेशियों और रीढ़ की हड्डी के दर्द से हैं परेशान, तो जानें कैसे
मिलेगा आराम
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मौजूदा भागमभाग वाली जिंदगी में पता नहीं कब शरीर के किसी भाग का दर्द हमारी
दिनचर्या का हिस्सा बन जाता है, इसका हमें पता भी नहीं चलता। सुबह उठने के बाद
अक्सर...
5 years ago
2 Comments:
"तेरी नज़र-ऐ-इनायत से हुए जाते हैं जो घायल,
उन्हें कातिल निगाहों से देखा नही करते।"
हम तो हुए घायल .अब आगे आपकी मर्जी, अब जैसे चाहें वैसे देख लें हमें. अच्छी रचना के लिए आभार.
bhai,sabhi blog bahut sunder hain aapke.badhai lijiye meri.gazal to atyant madhur hai.hardik dhanyavad,is shrestha lekhan hetu.
dr.bhoopendra
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