रंग-ओ-खुशबू कहाँ बहार में है,
और किसी शेह में इस कदर है कहाँ,
जो इत्मिनान और सुकून प्यार में है।
उनका हासिल भी लुत्फ़ हो शायद,
कहाँ वो लुत्फ़ जो इंतज़ार में है।
साज़ तो दिल से आ निकलता है,
भला कहाँ वो हुनर तार में है।