होठों पे मोहब्बत के फ़साने नही आते
साहिल पे समुन्दर के हजाने नही आते
पलकें भी चमक उठी हैं सोते ही हमारी
आंखों को अभी ख्वाब छुपाने नही आते।


दिल उजड़ा है एक सराए की तरह है
अब लोग यहाँ रात जगाने नही आते
यारों नए मौसम ने ये एहसान किए हैं
अब याद संजोये दर्द पुराने नही आते।


उड़ने दो अभी परिंदों को खुली हवा में
फिर लौट के बचपन के ज़माने नही आते
इस शहर के बादल तेरी जुल्फों की तरह हैं
ये आग लगाते हैं पर बुझाने नही आते।


अहबाब भी घरों की तरह अदा सीख गए हैं
आते हैं मगर दिल को दुखाने नही आते।

आंखों को अभी ख्वाब छुपाने नही आते।

होठों पे मोहब्बत के फ़साने नही आते।

2 Comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।

उड़ने दो अभी परिंदों को खुली हवा में
फिर लौट के बचपन के ज़माने नही आते

Palak.p said...

आंखों को अभी ख्वाब छुपाने नही आते।
होठों पे मोहब्बत के फ़साने नही आते।

nice lines....