बात तब की है जब हुस्न परदे में रहता था,
और इश्क उसे देखने के लिए खुदा से फरियाद किया करता था.
"ऐ खुदा, हवा का एक झोंका आए और वो बेनकाब हो जाए"
एक दिन इश्क गुज़र गया और हुस्न उसकी कब्र पर फूल चढाने गई
जैसे ही हुस्न झुकी हवा का झोका आया और हुस्न बेनकाब हो गई
तब कब्र से ये आवाज़ आई...


"ऐ खुदा…
यह कैसी तेरी खुदाई है,
आज हम परदे में हैं और वो बेनकाब आई है"

2 Comments:

Anonymous said...

अब आजके हुस्न की भी तारीफ़ करदीजिए :)

Palak.p said...

ऐ खुदा…
यह कैसी तेरी खुदाई है,
आज हम परदे में हैं और वो बेनकाब आई है

bahut hi sunder lines hai ye ...