विश्व हिंदू परिषद के स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती की 23 अगस्त की शाम कंधमाल के जलास्पोता आश्रम में हत्या कर दी गई. उनकी हत्या के बाद शुरू हुआ हिंसा और तनाव का माहौल अभी तक सामान्य स्थिति में नहीं लौटा है. पर उड़ीसा में ये हिंसा पहली बार नही हुई है. दिसंबर 2007 में भी सांप्रदायिक हिंसा राज्य के लोगों ने देखी थी और वर्ष 1999 में ईसाई मिशनरी ग्राहम स्टेंस और उनके दो पुत्रों की हत्या को अभी तक कौन भूल पाया है. स्वामीजी पर सात बार हमला हो चुका था, इस बार हमलावर कामयाब हो गए. इसके साथ आरोप प्रत्यारोप का दौर भी शुरू हो गया.
स्वामीजी वहाँ पर बड़े पैमाने पर सामाजिक सेवा का कार्य चलाते थे. आदिवासी लड़कियों के लिए वे हॉस्टल चलाते थे. स्कूल चलाते थे. उनके इस काम को मिशनरी लोग अपने धर्मांतरण के काम में बाधा के रुप में देखते थे. उन पर कई बार हत्या के प्रयास किए गए थे. हम मानते हैं कि इस हत्या के पीछे ईसाई संगठन से जुड़े लोगों का हाथ है."
उड़ीसा के आर्चबिशप रफ़ाएल चीनथ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से हाल ही में मिले. प्रधानमंत्री के सामने जो उन्होंने अपनी माँगे रखी उसे उन्होने यूँ गिनाया- "हम चाहते हैं की ईसाइयों पर हो रहे हमले तुंरत रोके जाए. जो हज़ारों ईसाई अपनी घरों को छोड़ जंगलों में शरणार्थी बनने पर मजबूर हुए है उन्हें वापस लाया जाए. ईसाइयों पर लग रहे आरोपों पर विराम लगाने के लिए सीबीआई जाँच की घोषणा की जाए."
जो बाते उन्होंने रखी वह राज्य सरकार के प्रति अविश्वास और वहां व्याप्त भय के माहौल को इंगित करती हैं.
संघ परिवार का तर्क है की ईसाई धर्मांतरण करवा रहे हैं जिसका विरोध हो रहा है और संघ परिवार के किसी भी संगठन का हिंसा में हाथ नहीं है. राम माधव कहते हैं, "इसमें हमारे संगठनों का कोई हाथ नहीं है. स्वामीजी इतने प्रतिष्ठित थे कि स्वाभाविक रूप से उनकी हत्या के बाद लोगों में कुछ नाराजगी प्रकट हुई. इसे शांत करने के लिए सरकार तुरंत दोषियों को पकड़े और उसे दंडित करे."
लेकिन सांप्रदायिक हिंसा बार-बार उडी़सा में क्यों फैल रही है. ये प्रश्न भी उठ रहा है.
संघ परिवार दुनिया भर में उठ रहे शोर को ईसाई धर्म प्रचारकों की रणनीति का हिस्सा मानते हैं. राम माधव कहते हैं, "अपने पीड़ित होने का प्रचार करना ईसाईयों की हमेशा की आदत है. प्रचार तंत्र का दुरुपयोग ईसाई मिशनरी करते हैं. वास्तव में वे ही इस समय गाँवों में हो रही हिंसा में लिप्त हैं."

पर आख़िर क्यों उड़ीसा धर्म का अखाड़ा बन गया है. पर क्या वाकई ये धर्म की लडा़ई है या कुछ और..? असली लडा़ई धर्म के प्रचार को ले कर है। धर्मांतरण पर प्रतिस्पर्धा का ये नतीजा है कि यहाँ हिंसा हो रही है. वहाँ पर धर्मातंरण की प्रतियोगिता चल रही है। संघ परिवार और मिशनरी दोनों ही इसमें शामिल हैं।

अगर ऐसा है तो ये कब तक चलेगा. कब तक निर्दोष लोग मारे जाएँगे. राज्य सरकार को तुंरत इसे रोकना चाहिए लेकिन वह इसमे पूरी विफल है. यहाँ न राजनीति में ऐसी कोई ताक़त है जो मौजूदा समीकरण को चुनौती दे सके और न ही सभ्य समाज जो आवाज़ उठा सके. ऐसे में जब तक धर्म और राजनीति का ख़तरनाक खेल समाज के ठेकेदार खेलते रहेंगे, जनता आतंक का सामना करती रहेगी.

6 Comments:

Kavita Vachaknavee said...

नए चिट्ठे का स्वागत है.
निरंतरता बनाए रखें.
खूब लिखें, अच्छा लिखें.

Anonymous said...

bilkul sahi baat hai.



'ब्लॉग्स पण्डित'
http://blogspundit.blogspot.com/

Anonymous said...

bilkul sahi baat hai.



'ब्लॉग्स पण्डित'
http://blogspundit.blogspot.com/

شہروز said...

सलाम-नमस्ते!
ब्लॉग की दुनिया में हार्दिक अभिनन्दन!
आपने अपनी व्याकुलता को समुचित तौर से व्यक्त करने का प्रयास किया hai.
अच्चा लगा, इधर आना.

फुर्सत मिले तो आ मेरे दिन-रात देख ले

http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/

http://hamzabaan.blogspot.com/

http://saajha-sarokaar.blogspot.com/

Shastri JC Philip said...

हिन्दी चिट्ठाजगत में इस नये चिट्ठे का एवं चिट्ठाकार का हार्दिक स्वागत है.

मेरी कामना है कि यह नया कदम जो आपने उठाया है वह एक बहुत दीर्घ, सफल, एवं आसमान को छूने वाली यात्रा निकले. यह भी मेरी कामना है कि आपके चिट्ठे द्वारा बहुत लोगों को प्रोत्साहन एवं प्रेरणा मिल सके.

हिन्दी चिट्ठाजगत एक स्नेही परिवार है एवं आपको चिट्ठाकारी में किसी भी तरह की मदद की जरूरत पडे तो बहुत से लोग आपकी मदद के लिये तत्पर मिलेंगे.

शुभाशिष !

-- शास्त्री (www.Sarathi.info)

kar lo duniya muththee me said...

बहुत सटीक लिखा है हिन्दी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है निरंतरता की चाहत है समय नकाल कर मेरे ब्लॉग पर भी दस्तक दें