तन्हा जब रहती हूँ ख्यालो मे तुम्हे पाती हूँ
हर जगह तुम्हे मै मेहसूस करती हूँ
अपने साये मे भी मै तुम्हे ही देखती हूँ
क्यो तुम ही तुम नज़र आते हो सोचती रहती हूँ
ये कैसी हलचल है दिल मे जो पहले ना थी
हर आहत से क्यो मै चौंक उठती हूँ
नज़र हमेशा तुम्हे ही तलाशती रहती है
क्या तुम्हे भी ऐसा लगता होगा सोचती रहती हूँ
आते ही ख्याल तुम्हारा लब यूँ खिल जाते है
दिल ही दिल मे तुम्हे सदा देती रहती हूँ
सामने ना हो फिर भी क्यो पलक झुक जाती है
ये कैसी उल्झन है क्या हुआ आज मुझे सोचती रहती हूँ.

1 Comments:

Palak.p said...

In aankho me hazaar sapne palte hai,
AAnkho hi aankho me hum girte sambhalte hai,
In aankho me pad lo,sab kuch likhaa hai,
Varnaa shabdo ke to hazaar matlab nikalte hai…