गम के साये से खुशियों का यही कहना है
दर्द की चादर को अब तुझसे दूर करना है
तेरी बेवफाई से मिला है मुझको एक सबब
मैंने अपने रब को एक बार फ़िर से जाना है
बुझते है जब चिराग टू रहती है यह शम्मा
मुझको एक बेदार फ़िर से इस अंधेरे में जलना है
देख कर खुश हाथ यह कहा मैंने यह दिल से
तुझको अब कब कब तक यह दर्द सहना है
है खुदा से यह फरियाद के मुझे वो दे हिम्मत
अपने रिश्ते की डोर को एक बार फिर से सीना है
कतरों को रोक लिया ज़िन्दगी जीने के लिए मगर
मैंने हर बार अपनी आंखों से उनका हक़ छिना है
दर्द की कश्ती की है एक मुसाफिर यह
डूबे तो मरना है साहिल पर क्या जीना है

1 Comments:

Palak.p said...

nice poemmmmmmm