रात पिघलती रही
शमा जलती रही
हिचकियाँ आती रही
जिन्दगी सिसकती रही

प्यालियाँ खनकती रही
प्यास बढती रही
लब थरथराते रहे
जिन्दगी मचलती रही

अश्क ढलते रहे
जान जाती रही
मौत हंसती रही
जिन्दगी तडपती रही

4 Comments:

vandana gupta said...

bahut hi shandar prastuti.........dil ko tadpati huyi.

Vinay said...

बहुत बढिया साहब

दिगम्बर नासवा said...

आपकी लाजवाब रचना
हमारे दिल में उतरती रही..........

खूबसूरत लिखा है........आपकी रचना सुन्दर है

Dr. Ravi Srivastava said...

विजय जी, आप के इस प्रथम पोस्ट के लिए आप को बधाई हो. वाकई आप ने बहुत अच्छा लिखा है. उम्मीद है आप आगे भी इसी तरह लिखते रहेंगे.