जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में व्यक्ति को भावनात्मक सुरक्षा, संबल स्नेह और खूबसूरती की नैसर्गिक भूख होती है। यह निर्विवाद सत्य है की इन सब के बिना व्यक्ति खुशी खुशी सुखपूर्वक जीवन नही व्यतीत कर सकता। और यह भी सत्य है की ये सब एक साथ एक अच्छे और सुव्यवस्थित घर में ही मिलते हैं। ऐसा घर माँ ही बनाती है। माँ की उपस्थिति ही घर को जीवंत और प्रकाशवान बनाती है। बिना माँ के घर ऐसा है मानो बिना मूर्ति के कोई मन्दिर। यह माँ ही है जो घर को अच्छा और प्यारा बनाती है।
माँ से ही घर की गुणवत्ता , गरिमा और मूल्य बनते और प्रसारित होते हैं। माँ से ही घर मैं एक भावनात्मक और स्नेहात्मक वातावरण निर्मित होता है जहाँ ममत्व की अखंड धारा सतत प्रवाहित रहती है। जिसकी वजह से लोग कहीं भी हों आख़िर घर आकर ही चैन और आराम पाते हैं। यह महसूस किया जा सकता है, इसे शब्दों में व्याख्यायित नही किया जा सकता है।
घर को घर बनाने में माँ का योगदान सर्वोत्तम , अपूर्व और अनूठा है। माँ ही पृथ्वी पर घर रुपी स्वर्ग निर्मित करती है। वह श्रेष्ठ, नीतिवान और उच्चतम मूल्यों की वाहक होती है। अपने विशिष्ठ गुणों के कारण ही माँ का घर में सर्वोच्च स्थान है। माँ का प्यार ही प्यार का शुद्धतम रूप है। उसके हृदय मे प्रेम की अजस्त्र धारा सदा प्रवाहित होती रहती है।
क्या कभी हमने सोचा है भोर से लेकर रात्री तक बिना किसी लालसा के वह कैसे काम कर पाती है.उसे अपने काम को पूरा करने की चिंता रहती है। अपने दायित्वों को पूरा करने के लिए वह अक्सर छोटी मोटी बिमारियों की परवाह नही करती। ठंडा सर्द मौसम हो या तन झुलसाती गर्मी॥ वह अपने काम से अवकाश नही लेती। मुहं अंधेरे उठकर झाडू पोंछा साफ़ सफाई तो करती है साथ ही समय पर भोजन बनाती है ताकि परिवार का कोई भी सदस्य बिना खाना खाए अपने काम पर जाए। इस स्वप्रेरित दायित्व बोध के चलते वह घर को कुशलता पूर्वक संचालित करती है। माँ के त्याग और समर्पण की बराबरी कोई नही कर सकता। उसका जीवन सदैव दूसरों के लिए होता है। यदि घर में परिवार का कोई सदस्य बीमार पड़ जाए तो माँ से अच्छी परिचारिका कोई नही होती। वह धैर्य पूर्वक सेवा सुश्रुषा में लगी रहती है। वह स्वयं भूखी रह जाती है किंतु अपने बच्चों को कभी भूखा नही सोने देती । एक यहूदी उक्ति है "खुदा ने पूरा संसार रचा , वह ख़ुद पूरी दुनिया की देखभाल नही कर सकता था , इसलिए उसने माँ की रचना की। '
सामान्यत लोग दूसरों की छोटी छोटी असफलताओं और कमियों पर भड़क उठते हैं। और अपना धैर्य खो बैठते हैं। किंतु माँ अपने बच्चों की कमियों को धैर्य पूर्वक सहती है। और सुधारने का प्रयास करती है। वह कभी नाराज नही होती कठिन दिनों में भी वह सहनशील बनी रहती है।
माँ निश्छल प्यार की जिवंत मूर्ती है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की वह घर में अपने योगदान का कभी भूलकर भी गर्व नही करती। आख़िर माँ की निश्छल और निस्वार्थ क्या कहेंगे ?

6 Comments:

रंजीत/ Ranjit said...

kaun hai jo aapse itefaak nahin rakhtaa. "jannee janmbhumeeCh swargadapee gariyashee."

Udan Tashtari said...

माँ तो खैर सर्वोपरि है ही!!

दिगम्बर नासवा said...

माँ कुछ कहलाना ही नहीं चाहती ..............बस वो माँ है

vandana gupta said...

ji han maa ki nishchal sewa ka koi mol nhi amulya hai wo.

धर्म जागरण गांड़ा परियोजना said...

dear Anand ji

mai apne ptrika ke liye aapka yah lekh lena chahta hu, our kavitaye bhi lena chahta hu.

kripa kar mujhe anumati pradan karne ki kripa karenge

apka hi
Dinanath Khunte
mpadak 'Primelook'

Unknown said...

dear Anand,
Sadar abhiwadan.
kash aapki tarah yuwaon me bhi yah soch utpann ho to bharat mata ka karj utar jaye.

Vijay Shukla