एक सवाल है ज़हन में,हर वक्त रहता है,
कैसे कहू उसे मुझे जो दोस्त कहता है।
तू है मेरे लिए एक दोस्त से भी ज़्यादा,
हर दम दोस्ती निभाने का है मेरा इरादा।
कुछ बात है मेरे दिल में पर लफ्जों की कमी है,
आंखों में पढ़ के देख ले एक शरारत सी बनी है।
कोई डर सा बना है दिल में नही साथ यह जुबां,
खो न दूँ यह दोस्ती कर के हाल-ऐ-बयान॥
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मौत की आरजू भी कर देखूं ,
क्या उमीदें थी ज़िन्दगी से मुझे।
फिर किसी पर न ऐतबार आए,
यूँ उतारो न अपने जी से मुझे॥
2 Comments:
मौत की आरजू भी कर देखूं ,
क्या उमीदें थी ज़िन्दगी से मुझे।
फिर किसी पर न ऐतबार आए,
यूँ उतारो न अपने जी से मुझे॥
इन चार लीनो मैं आप ने महोब्बत का सारा काब्य कह दिया
बधाई
achchi rachna........dosti mein dar kaisa .
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