लो फ़िर तुम्हारी याद आई
रात भर तारे करते रहे अठखेलियाँ
टिमटिमाते कभी जगमगाते कभी
हँसते कभी मुस्कुराते कभी
हवा संग झूमते करते अठखेलियाँ
रेशम सी झरती चांदनी को
रात गुमसुम खड़ी देखती रही तन्हा (अकेली)
नीले कांच का घेरा गगन में था पिन्हाँ (छुपा)
आगोश में था चाँद उसके जलवानुमां
सौन्दर्य अजब लुटा रहा था आसमान
देख ये महक उठी सारी फजां phool
जो मचल उठे नागहाँ (अचानक)
दिशाएं मगन हो नाचने लगी यकसां (एक साथ)
विरह की रात में
तुम्हारी याद का ये हँसी मंज़र जानां
जो तुम होती तो क्या आनंद होता जानां
1 Comments:
वाह..............किसी की याद भी क्या क्या कर जाती है..........
प्रेम की उन्मुक्त अभिव्यक्ति
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