नाराज़गी खामोशियों से हो जाए बात से पहले,
अंधेरे के तलबगार हो क्यूँ रात से पहले
दिल के हाल को तुम उस सुकून-ऐ-दिल से भी छुपाये रखना,
खुल के रो लेना मगर मुलाकात से पहले ।
मैं किस शहर-ऐ-सितम में अब रुसवा नही हूँ ,
न-आशना किस कदर थे हम हालात से पहले।

जुदाई, तड़प, आंसू, शिकवे सभी जलवे मोहब्बत के,
अंजाम तुम रखना जेहन में शुरुवात से पहले।
और फ़िर इस अदा पे भी तो मर मिटे मुझ जैसे,
वो जुर्म कबूल कर गए मेरी तहकीकात से पहले।
कुबूलियत में रुकावट ये कतरे ही न साबित हो,
निकले लब से कोई दुआ तो इस बरसात से पहले।
और यह कि वो झूठ बोलने का हूनर जानते ही नही है,
उन आँखों को पढ़ अपने सवालात से पहले॥

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सच्ची है मेरी दोस्ती आजमा के देख लो,
करके यकीं मुझपे मेरे पास आके देख लो।
बदलता नही कभी सोना अपना रंग,
जितनी बार दिल चाहे आग लगा कर देख लो॥

2 Comments:

दिगम्बर नासवा said...

सच्ची है मेरी दोस्ती आजमा के देख लो,
करके यकीं मुझपे मेरे पास आके देख लो।
बदलता नही कभी सोना अपना रंग,
जितनी बार दिल चाहे आग लगा कर देख लो॥

vaah रवि जी...मान कायर क्या खूब लिखा है
दोस्ती हो तो वाकई सोने जैसी................बेहतरीन

रंजना said...

waah ! waah ! waah ! bahut hi khoobsoorat..