अपनी आँखों के बगीचे में बसा लो मुझको
बिखर न जाऊँ कहीं आकर संभालो मुझको
ये मेरा प्यार है रोशन चिराग की तरह
तुम अपने चाँद से माथे पे सजा लो इसको
मैं तेरे इश्क में अब ख़ाक न हो जाऊँ कहीं
मुझे संभालो अपने हाथों में उठा लो मुझको
तुम अब मेरे सब्र का इम्तिहान मत लेना
तड़प रहा हूँ, तुम अब अपना बनालो मुझको
मेरी टूटती सांसों की कसम है तुझको
आखिरी दम पे हूँ,सीने से लगा लो मुझको
मेहरबानी से ज़रा एक नेक काम कर लो
अपने जिगर में मेरा कोई मकाम कर लो
मेरे अनमोल दिल को तुम अपना गुलाम कर लो
वरना बाज़ार में इस को नीलाम कर लो
अपनी रेशमी चुनरी को मेरे नाम कर लो
नहीं तो मेरे कफ़न का ही इन्तेजाम कर लो
सोहबत की एक शब् भर का निजाम कर लो
अधूरी कुछ रघ्बतों को तमाम कर लो
प्रीत के पाक नाम का एहतराम कर लो
इज़हार-ऐ-मुहबत अब तो खुले आम कर लो
सताने के इल्जाम में बाद-नाम कर लो
और सज़ा दे के मेरा जीना हराम कर लो
ढली शाम ?अमानुष?, अब सलाम कर लो
जा के नींद के आगोश में आराम कर लो

2 Comments:

दिगम्बर नासवा said...

तुम अब मेरे सब्र का इम्तिहान मत लेना
तड़प रहा हूँ, तुम अब अपना बनालो मुझको

बेहतरीन..............लाजवाब लिखा है ...........

vandana gupta said...

bahut hi tadapti rachna hai ..........ek adhuri si kasak ho jaise.