आज एक साईट पर यह समाचार देखा कि ब्रिटेन में हिन्दुओं को अपने धर्म के मान्यता के अनुशार मृतक का दाह-संस्कार खुले में करने की आजादी नहीं है। जिससे उनकी धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं. ब्रिटेन में पुरातन हिंदू रीति रिवाजों के मुतबिक दाह संस्कार खुले में किए जाने की अनुमति माँगने वाले दविंदर घई लंदन हाई कोर्ट में मामला हार गए हैं.


न्यूकास्ल में रहने वाले 70 वर्षीय दविंदर को सिटी काउंसिल ने इस बात की इजाज़त नहीं दी थी कि उनका अंतिम संस्कार पारंपरिक हिंदू रिवाजों के मुताबिक खुले में किया जाए। दविंदर कहते हैं कि ये उनकी अंतिम इच्छा है. दविंदर ने बाद में ऊपरी अदालत का दरवाज़ा खटखटाया था. उन्होंने सुनवाई के दौरान कहा था कि उनके धर्म में चिता जलाना आवश्यक है ताकि उन्हें मुक्ति मिल सके. दविंदर का कहना था कि वे 'इज़्ज़त' के साथ मरना चाहते हैं और नहीं चाहते कि उन्हें 'बक्से में बंद' कर दिया जाए.


एपी के मुताबिक जज ने कहा कि वहाँ चिता जलाना क़ानून के तहत मना है. जज का कहना था कि क़ानून मंत्री जैक स्ट्रा का तर्क है कि चिता जलाने से कुछ लोगों को आपत्ति हो सकती है और मानव शरीर को इस तरह जलाने को वो ठीक नहीं समझते. जज का कहना था कि ये संवेदनशील मामला है लेकिन अदालत को चुने हुए प्रतिनिधियों की बातों का सम्मान करना होगा. न्यूकास्ल सिटी काउंसिल का तर्क ये था कि शमशान घाट या क्रिमीटोरियम के बाहर मानव अवशेषों का जलाना 1902 के क्रेमिटोरियम एक्ट के तहत मना है.

अगर घई ये मुकदमा जीत गए होते तो ब्रिटेन में रहने वाले करीब पाँच लाख से ज़्यादा हिंदुओं के लिए ये ऐतिहासिक फ़ैसला होता। और अगर न्यायोचित बात करें तो होना भी यही चाहिए था। यदि भारत में अन्य धर्मों के मानने वालों को उनके रश्मो-रिवाजों के अनुशार अंतिम-संस्कार करने की स्वतन्त्रता है, तो भारतीय मूल के लोगों को भी किसी भी अन्य देश में अपने रश्मो-रिवाजों के अनुशार दाह-संस्कार करने की स्वतन्त्रता मिलनी चाहिए.


यहाँ बात सिर्फ हिन्दुओं की नहीं है। व्यक्ति चाहे किसी भी धर्म को मानने वाला क्यों न हो, उसके रश्मो-रिवाजों के अनुशार अंतिम-संस्कार करने की स्वतन्त्रता मिलनी चाहिए. क्योकि यह तो प्रत्येक मरने वाले की अंतिम इच्छा होती है. और इस अंतिम इच्छा का सम्मान तो हर एक देश के कानून को करना चाहिए. ताकि धार्मिक सामंजस्य एवं सद्भाव बना रहे. विश्व शांति धर्मों का सम्मान एवं उनका अनुशरण करने में है, न कि उनकी आलोचना एवं विरोध करने में हैं.


साभार-बी.बी.सी.

1 Comments:

दिगम्बर नासवा said...

सही कहा रवि जी.............
भारत जितनी ऊंची सोच शायद पूरी दुनिया में कोई नहीं रखता और कितनी अफ़सोस की बात है............हम लोगों को ही कहा जाता है की हमारी सोच पुरातन है, समय के साथ नहीं