इस बात में कोई संबंध नहीं है कि शिकागो में अनाज वायदा बाजार में क्या होता है और अफगानिस्तान में आटे की कीमत क्या रहती है लेकिन हमें इस बात का डर है कि लोग गिरती कीमतों को देखकर यह विश्वास करने लगेंगे कि खाद्यान्न संकट निपट गया है। हमारा मानना है कि यह अभी भी बड़ा संकट है और एक तरह से आपातकालीन स्थिति है। इस वर्ष जून के मुकाबले खाद्यान्नों की कीमतें लगभग आधी रह गई हैं और उसी दौरान कैमरुन, मोजाम्बिक, सेनेगल, हैती, पेरु, बंग्लादेश, इंडोनेशिया और अफगानिस्तान में खाद्यान्नों की कीमतों को लेकर दंगों की स्थिति पैदा हो गई थी जिसके बाद संयुक्त राष्ट्र को इस मुद्दे के समाधान के लिए एक आपातकालीन बैठक बुलानी पड़ी थी।

वैश्विक आर्थिक संकट के चलते खाद्यान्नों की कीमतों में गिरावट आने से गरीबी और कुपोषण उन्मूलन में लगे संगठन फिलहाल राहत महसूस कर रहे हैं लेकिन कई अंतर्राष्ट्रीय राहत एजेंसियों को यह चिंता सता रही है कि इस समस्या से अब दानकर्ता देशों का ध्यान हट जाएगा। अब दानकर्ता देशों का ध्यान इस समस्या से हट जाएगा और वे इस संकट पर गहराई से विचार करना छोड़ देंगे।

गौरतलब है कि इस वर्ष के मध्य में खाद्यानों के दामों में बेतहाशा बढ़ोतरी होने से कई देशों में दंगे होने की नौबत आ गई थी लेकिन हाल ही की आर्थिक मंदी के चलते इनके दामों में काफी कमी आई है। अंतर्राष्ट्र्रीय खाद्य कीमतों में सितम्बर में सबसे ज्यादा कमी दर्ज की गई और निवेशकों के बाजारों से पैसा निकालने से इनके दामों मे और गिरावट दर्ज की गई। पिछले तीन हफ्तों में मक्का वायदा में 32 प्रतिशत और सोयाबीन वायदा में 28 प्रतिशत गिरावट आई है।

विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) ने महंगे खाद्यान्नों को ‘मौन सुनामी’ की संज्ञा दी थी जिससे लाखों लोगों के सामने भूखे मरने की नौबत आ गई थी। एक सहायता संगठन ओक्सफाम के मुताबिक विश्व में अभी भी 96 करोड़ 70 लाख लोग खाद्यान्नों की कमी का सामना कर रहे हैं। वॉशिंगटन में अंतर्राष्ट्र्रीय खाद्य नीति शोध संस्थान के रिसर्च सहयोगी सिवा मसांगी ने कहा कि यह संकट अभी कम नहीं हुआ है।

गौरतलब है कि खाद्यान्न संकट से निपटने के लिये दानकर्ता देशों ने रोम बैठक में कृषि उत्पादकता को बढ़ावा देने और किसानों को उपज बढ़ाने में समर्थन के लिए 12।3 अरब डॉलर सहायता की पेशकश की थी लेकिन बैंकों की असफलता और बाजारु उथल-पुथल के चलते उन देशों का ध्यान इस और से हट गया है। अभी तक मात्र एक अरब डॉलर की राशि ही दी गई है।

सूत्रों के मुताबिक खाद्यान्न असुरक्षा से निपटने के नए उपायों पर विचार करने के लिए संयुक्त राष्ट्र खाद्यान्न संकट टास्क फोर्स आगामी हफ्तों में एक बैठक करेगी। इसमें संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून और विश्व बैंक के अध्यक्ष रॉबर्ट जोइलिक शामिल होंगे। आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन के कृषि एवं व्यापार विशेषज्ञ पावेल बावरा के मुताबिक इस मंदी से विश्व के गरीब देशों में भूख की समस्या और बढ़ेगी क्योंकि लोगों की नौकरियां समाप्त होने से स्थिति और विकट बनेगी।

वैश्विक आर्थिक संकट की चपेट में आ चुके पश्चिमी देशों के लोगों को नौकरी छूटने का खतरा नजर आ रहा है। यूरोपीय देशों के नेताओं ने हालांकि यह आश्वासन दिया है कि नौकरियों तथा आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए वे हरसम्भव कदम उठाएंगे। फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी ने भी कहा है कि जिस तरह अमेरिका अपने यहां विभिन्न कम्पनियों को सस्ते ऋण उपलब्ध करा रहा है उसे देखते हुए यूरोपीय कार उद्योग को भी मदद की जरुरत है।

गौरतलब है कि यूरोप की बड़ी कम्पनियों एलीटेलिया, अजको नोबल, रेनॉ, स्टोरा एन्सो, टेलीकॉम इटेलिया, यूपीएम कमेने और वोल्वो ने 30 सितम्बर तक कुल मिलाकर 25,330 कर्मचारियों की नौकरियां समाप्त की हैं। इसी तरह अमेरिका में बड़ी कम्पनियों डेमलर एजी, ई्बे, हेवलेट पैकार्ड और माइकॉन टेक्नोलॉजी ने 14 अक्टूबर तक 31,300 कर्मचारियों की सेवाएं समाप्त की हैं।

1 Comments:

Anonymous said...

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