डर डर भटकते है अरमान की तरह,
हर कोई मिलता है अनजान की तरह।
इस दुनिया से खुशी की आस क्या रखनी,
यहाँ तो ग़म भी देते है एहसान की तरह।

तुम्हे जब कभी मिले फुरसतें मेरे दिल से नाम उतार दो,
मैं बहोत दिनों से उदास हूँ मुझे एक शाम उधार दो।
मुझे अपने रंग में रंग दो मेरे सारे जंग उतार दो,
मुझे अपने रंग की धूप दो गमो को मेरे जार दो।

मैं बिखर गया हूँ समेट लो, मैं बिगड़ गया हूँ संवार दो,
तुम को कैसी लगी शाम मेरी ख्वाहिशों के दीदार की।
जो भली लगे तो इनको चाहत से अपने निखार दो,
वहां घर में कोन है मुन्तजिर के फिकर हो देर सवेर की।
बड़ी मुह्तासिर सी ये रात है इसे चांदनी में गुजार दो।
मैं बहोत दिनों से उदास हूँ मुझे एक शाम उधार दो।

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