दिल कि लगी को वो और भड़का रहे हैं आज,
खुद ही खुद बहार बने जा रहे हैं आज।
जैसे कि हो रहा हैं अफताब-इ-नाज़,
कुछ ऐसी शान से वो चले आ रहे हैं आज।
ठुकरा कि इल्तिजा को पा-इ-गुरुर से,
अरमानों का वो खून किये जा रहे हैं आज।
वो प्यार कि फिजायें वो रंगीन सोहबतें,
मंज़र वो सारे शौक़ कि याद आ रहे हैं आज।
यारों गिला करें भी तो किस बात का करें,
अपने किये की आप सजा पा रहे हैं आज।

3 Comments:

MANVINDER BHIMBER said...

दिल कि लगी को वो और भड़का रहे हैं आज,
खुद ही खुद बहार बने जा रहे हैं आज
hamesha ki tarha se khoobsurat

BrijmohanShrivastava said...

प्रिय श्रीवास्तव जी =सूरज की तरह शान ,इल्तजा को ठुकराकर अरमानो का खून करना ,पुरानी फिजायें व सोहबतें याद आना और इसके साथ अपने किए की सज़ा पाना /बहुत अच्छा लगा / वैसे तो ""जिंदगी से बड़ी सजा ही नहीं , और क्या जुर्म है पता ही नहीं ""

Anonymous said...

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