धुँधली यादें, बिखरे सपने
गुमसुम चेहरे चारों ओर
सब के मुँह में जुबाँ है लेकिन
लबों पे पहरे चारों ओर
सब के हाथों में दिखते हैं
सौ उम्मीदों के परचम
पर अनजाने डर से सब के
कदम हैं ठहरे चारों ओर
आँखों में आँसू, पाँवों में छाले
मन में मलाल-ऐ-मजबूरी
लगता है जैसे, सब के दिलों में
घाव हैं गहरे चारों ओर
तुम भी शायद यही कहोगे
देख के बढ़ते जुल्मोसितम
जंग में केवल बचे हैं
अंधे,गूंगे, बहरे चारों ओर।

4 Comments:

निर्मला कपिला said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति बधाई

अजय कुमार said...

जंग के साइड इफेक्ट

दिगम्बर नासवा said...

SACH LIKHA HAI .... JNG KE BAAD BAS YE HI BACHTA HAI ..... MAARMIK RACHNA ...

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढ़िया प्रस्तुति।

जंग में केवल बचे हैं
अंधे,गूंगे, बहरे चारों ओर।