एक बुलबुला ज़रा सा कहीं उभरता है
तो खुद को सागर ही समझने लगता है
दूसरों को तो बात बात मे दिखाते हैं बेसबब
पर कोन है जो अपना आइना खुद बनता है
फूल कब का खिलना भूल गए होते
कोई तो है जो कांटो को नियंत्रित करता है
तिनको के आशियाने कब के बिखर गए होते
कोई तो है जो आँधियों के रुख बदलता है
व्यर्थ क्यों गवाएं बेहिसाब नहीं है ये दौलत
कोई तो है जो साँसों का हिसाब रखता है।

2 Comments:

Archana Gangwar said...

wah kya baat hai vijay ji.....

prakriti ki yahi tu khashiyat hai ki vo santulan rakhti hai....aur usse hi tu ye duniya chal rahi hai.....

jo phool kante dono rakhta hai
wahi gulab kahelata hai....
ye hamari zindagi per bhi lagu hota hai......

aapki rachna ke bhaav itne sunder hote hai ki ....shabd nahi milte unki vyakhaya karne ke.....

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) said...

bahut khub!!!!!!!!!!