मैं तुम पे
मोहित हो रहा हूँ ।

आँखों में
बालों में
और तुम्हारे गालों में,
आलोकित हो रहा हूँ ।

बोली में
ठिठोली में
माथे की रोली में,
शोभित हो रहा हूँ ।

आवों में
हवा में
इस बिखरी छटा में,
तिरोहित हो रहा हूँ !

०००० [] राकेश 'सोहम'

3 Comments:

दिगम्बर नासवा said...

बहुत लाजवाब लिखा है .......... ग़ज़ब का .........

विनोद कुमार पांडेय said...

वाह भाई बहुत बढ़िया ..आप तो एकदम से मोहित ही हो गये..खूबसूरत अभिव्यक्ति..धन्यवाद

राकेश 'सोहम' said...

दिगंबर नासवा और विनोद जी का आभार . आपकी हौसलाफजाई समय - समय पर मिलती रहती है . कृपया मेरे अपने ब्लॉग http://rakeshsoham.blogspot.com/ पर भी कुछ कहें . धन्यवाद .