सकून मिला मुझे आकर तेरी बाहो मे
मंज़िल मुझे मिली आकर तेरी राहो मे
मै तन्हा था ज़िन्दगी के काफिले मे
मुझे पुकारा है आज तुम्हारी सदाओ ने
देखा मैने जब तुमको, बस देखता ही रह गया
पानी पे जैसे चाँद हो ठहरा!
आंखो का काज़ल रात बन बह गया!
डूब गये हम के उभर नही पाये
तेरी झील सी गहरी निगाहो मे!
पता नही था इस कद्र हम भी कही खो जायेंगे
ज़रा ज़रा कतरा कतरा इस इश्क मे बहते जायेंगे!
क्या खो देंग़े और क्या पायेंगे!
प्यार क्या है जाना हमने
आकर तेरी बाहों में!

8 Comments:

दिगम्बर नासवा said...

देखा मैने जब तुमको, बस देखता ही रह गया
पानी पे जैसे चाँद हो ठहरा

VAAH...... KITNI KHOOBSOORTI SE NIKHARA HAI PREM KI CHAAHAT KO...MAHBOOB KO DEKHAA TO LAJAWAAB NAZAR SE ....

M VERMA said...

बेहतरीन रचना
अनुभूति सघन

vandana gupta said...

bahut hi pyari rachna .

ओम आर्य said...

bahut hi suhana laga aake apake blog par kyoki bahut hi sundar hai aake teri baaho me

mehek said...

bahut suner badhai

परमजीत सिहँ बाली said...

अपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं बधाई।

राकेश 'सोहम' said...

फिर फिर ... फिर तारीफ़ करूँ ...से अच्छा है वर्मान को लपेटें कि -

"स्वाइन फ्लू का डर लग रहा है,
आकर तेरी बाहों में!

[क्षमा सहित]
० राकेश 'सोऽहं'

Mahfooz Ali said...

bahut hi sundar badhaai........


www.lekhnee.blogspot.com