त्रिकोण आसन पेट, कमर और कूल्हे की अतिरिक्त चर्बी को घटाने में सहायक है। तेज़ गति से इस आसन का अभ्यास करने से निश्चित रूप से लाभ होता है. भस्त्रिका प्राणायाम भी इसी श्रेणी में आता है. यह शरीर की अतिरिक्त चर्बी को कम करता है और शरीर के दूषित पदार्थों को दूर करता है.


सीधे खड़े हो जाएँ. दोनों पैरों में एक मीटर का फ़ासला रखें. साँस भरें. दोनों बाजुओं को कंधे की सीध में लाएँ. कमर से आगे झुके. साँस बाहर निकाले. अब दाएँ हाथ से बाएँ पैर को स्पर्श करें. बाईं हथेली को आकाश की ओर रखें. बाजू सीधी रखें. बाईं हथेली की ओर देखें. इस अवस्था में दो या तीन सेकिंड रूकें. साँस भी रोककर रखें. अब शरीर को सीधा करें. साँस भरते हुए फिर खड़े हो जाएँ. इसी तरह साँस निकालते हुए कमर से आगे झुके. बाएँ हाथ से दाएँ पैर को स्पर्श करें. दाईं हथेली की ओर देखें. दो-तीन सेकिंड रुकने के बाद प्रारंभिक अवस्था में आ जाएँ. यह पूरा एक चरण होगा. पाँच बार इस आसन का अभ्यास करें. कमर दर्द की शिकायत होने पर त्रिकोण आसन का अभ्यास नहीं करें.

त्रिकोणासन के नियमित अभ्यास से कमर और कूल्हे की चर्बी कम होती है। पेट और छाती के बगल की माँसपेशियों को सम्पूर्ण व्यायाम मिलता है. पैरों की पीछे वाली माँसपेशियों में खिंचाव आता है और उनकी शक्ति बढती है. तेज गति से इसका अभ्यास करने से पूरे शरीर का व्यायाम होता है. सभी अंग खुल जाते हैं और उनमें स्फूर्ति का संचार होता है. आँतों की कार्यगति बढ जाती है. कब्ज़ से छुटकारा मिलता है. पाचन शक्ति बढती है और भूख भी खुलकर लगती है.


भस्त्रिका प्राणायाम के लिए सबसे पहले किसी भी ध्यानात्मक आसन जैसे पद्मासन में बैठ जाएँ। दोनों हाथ घुटनों पर ज्ञान या चिन्न मुद्रा में रखें.


विधि -


इस प्राणायाम में हम तेज़ गति से साँस लेते हैं और तेज़ गति से ही साँस बाहर निकालते हैं. इसलिए भस्त्रिका प्राणायाम करने से पहले नाक बिल्कुल साफ़ होना चाहिए. साँस भरते समय पेट फूलना चाहिए और साँस छोड़ते हुए पेट पिचकना चाहिए.
इस प्राणायाम को करते समय साँस की गति पहले धीरे रखें. फिर मध्यम गति से साँस भरें और छोड़ें.
अभ्यास हो जाने पर साँस की गति पहले धीरे, फिर मध्यम, फिर तेज़ करें। इसी प्रकार भस्त्रिका प्राणायाम पूरा करने के लिए साँस की गति धीरे धीरे कम करते जाएँ और अंत में एक गहरी साँस लें. साँस निकालते हुए पूरे शरीर को ढीला छोड़ दें.


विशेष -


भस्त्रिका प्राणायाम करते समय अगर चक्कर आने लगें, घबराहट हो, बहुत ज़्यादा पसीना आए या उल्टी जैसा मन करे तो समझिए की सही तरह से अभ्यास नहीं हो रहा है.
प्राणायाम करते समय शरीर को किसी तरह का झटका नहीं दें। चेहरा नहीं बिगाड़ें. कंधें नहीं उठाएँ. शरीर को भी नहीं हिलाएँ. साँस लेने और साँस निकालने का समय बराबर रखें. नाक बंद हो या साइनस की समस्या या नाक की हड्डी बढी हो तो चिकित्सक से सलाह लें.


साँस लेने और छोड़ने की गति के तीन प्रकार हैं-धीरे- दो सेकंड में एक साँस भरना और साँस छोड़ना।मध्यम- एक सेकंड में एक साँस भरना और साँस छोड़ना.तेज़- एक सेकंड में दो बार साँस भरना और साँस निकालना.


लाभ -


भस्त्रिका प्राणायाम शरीर की ऊर्जा बढाता है और शरीर के सभी अंगों से दूषित पदार्थों को दूर करता है. तेज़ गति से साँस लेने और छोड़ने के क्रम में हम ज़्यादा मात्रा में ऑक्सीज़न लेते हैं और कॉर्बन डॉयऑक्साइड छोड़ते हैं. इससे फेफड़ों की कार्य क्षमता भी बढती है.
भस्त्रिका प्राणायाम करते समय हमारा डायाफ्राम भी तेज़ी से काम करता है, जिससे पेट के सभी अंग मज़बूत बनते हैं और सुचारु रूप से काम करते हैं.
इसके अभ्यास से पाचन शक्ति बढती है। कब्ज़ दूर होती है. कफ़ दोष दूर होता है और शरीर में ऊर्जा बढती है.


उच्च रक्तचाप, ह्दयरोग होने पर भस्त्रिका प्राणायाम का अभ्यास नहीं करना चाहिए. हर्निया, गैस्ट्रिक, अल्सर, दमा और मिर्गी के मरीज़ों को भी इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए.

1 Comments:

chopal said...

good post...........