होने थे जितने खेल मुक़दर के हो गए,
हम टूटी नाव लेकर समंदर के हो गए.
खुशबू मेरे हाथ को छूकर गुज़र गई,
हम फूल सबको बाँटकर ख़ुद पत्थर के हो गए.

हालात से प्यार की सज़ा मिल गई,
देखते ही देखते जिन्दगी बदल गई.
प्यासी निगाहें लिए खड़े थे हम आपके इन्तिज़ार में,
हमें देखते ही आपकी राहें बदल गई।


परिंदों को मिलेगी मंजिल एक दिन,
ये फैले हुए उनके पर बोलते हैं.
वही लोग रहते हैं खामोश अक्सर,
ज़माने में जिनके हुनर बोलते हैं।

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