मन दुखी है तो क्या बैठ कर रोऊँ,


दुःख का जाप करू ?


एक नुक्सान वो कर गए दूजा मै अपने आप करू ?


नही, अभी बहुत काम है मुझे !


हादसा हो गया है मेरे शहर में मेरे अपनों के साथ,


मै लुट गई हूँ एक ख़बर बनाऊं, और विरलाप करुँ?


मानस होकर वहशी सा पाप करू ?


नही अभी बहुत काम है मुझे !


घरोंदे जो टूट गए है फिर से बनाने होंगे,


दिल जो खौफज़दा हैं जिंदगी से फिर से मनाने होंगे,


तुम्हे फुर्सत है, किसी पर इल्जाम धर सको,


रैली में अपना नाम करो,


मुझे बख्सो ! अभी बहुत काम है मुझे।



...With Spl.Thanks to Anu

2 Comments:

BrijmohanShrivastava said...

प्रिय श्रीवास्तव जी =पहले तो आपके सरे ब्लॉग देखना पढता है कि किस (किस से मतलब कौन से ) ब्लॉग में आपका ताजातरीन लिखा हुआ है / बहुत ही ठोक कर कविता के रूप में कहा है =हमें न रैली से मतलब है न इल्जाम से हमें तो बस हमारा काम करने दो =हादसे में लुटना उसकी ख़बर बनाना बिलाप करना ये मुझ से नहीं होगा मुझे टूटे हुए घरोंदे बनाना है बहुत ही बढ़िया श्रीवास्तव जी

दिगम्बर नासवा said...

बहुत ही बेहतरीन कविता,
विगत से सबक ले कर आगे बढना ही हमारा कर्तव्य है

आपने सच कहा, अभी बहुत काम बाकी है