इस पड़ाव पर
मन के मरुथल में
तुम्हारी चाहत के
कमल खिल गए हैं ।

सोचता हूँ
छीन लूँगा तुम्हें
इस जमाने से ।

लेकिन
जब भी
ऐसा सोचता हूँ,
बाँहें
पूरे योवन से
फडफडा उठातीं हैं
मुट्ठियाँ
सख्त हो जातीं हैं
और .......

और
उनमें दबा
साहस
सरकने लगता है !
सरकता ही जाता है
भुरभुरी
रेत की तरह !!
[] राकेश 'सोहम'

ये क्या कह डाला तुमने बातो ही बातो मे
बेकरार दिल को सुकुन आ गया है अभी-अभी
रुख बहारो का कुछ बदला-बदला सा है
मुझको तेरा प्याम मिला है अभी-अभी
एक नुर से जगमगा रहा है घर मेरा
उम्मीद का चराग जला है अभी-अभी
खिलती हुई कलियो ने दी है ये खबर
दिल का हसीन राज़ खुला है अभी-अभी
खिलती हुई कलियो ने दी है ये खबर
दिल का हसीन राज़ खुला है अभी-अभी
राहो मे बिछाये है फूल बहारो ने
यूँ जो मेरे साथ तू चला है अभी-अभी
फलक से चाँद उतर आया है ज़मीन पर
आंखो मे तेरे प्यार पाया है मैने अभी-अभी
हमने सजा ली है अब तो अपने दिलो की दुनियाँ
मुद्दतो बाद आया है दिल को चैन अभी-अभी
साँसों की आंच से कतरा कतरा रात पिघलती रही
नींद भी जाने क्यो दूर खड़ी डरती ही रही
खामोशियाँ ओढ़ कर मैं तो रात भर जागा किया
तेरे आने की उम्मीद मे पलकें खुली ही रही
खिड़की से चाँद भी रह रहकर दर्द से मुझको देखा किया
चांदनी भी लपटों सी तन को जलाती रही
तेरे क़दमों की आहटें पल पल मैं सुनाकिया
सरसराती हवाएं इठलाती इतराती चिढाती रही
अन्धेरा घना साँयसाँय सा डराता ही रहा
यादें तेरी जुगनुओं सी फिजां चमकाती रही।
तेरे आने की उम्मीद मे पलकें खुली ही रही।

किनारो पर सागर के खज़ाने नही आते,
फिर जीवन मे दोस्त पुराने नही आते।
जी लो इन पलो को हस के जनाब,
फिर लौट के दोस्ती के ज़माने नही आते।

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रिश्तो की भीड मे भी वो गुमनाम रह गया,
जाने क्या दिलकश शेर वो मुझसे कह गया।
आया ना लौट कर वो फिर कभी इस मोड पर,
आँसू की तरह आँखों से निकल कर बह गया।

जीवन के साज़ पर गीत रोज़ नए नए गाता हूँ मैं
गाते गाते हुआ बेहाल कभी बेहाल होकर गाता हूँ मैं
छोटे छोटे तराने खुशियों के जब भी गाने लगता हूँ
बेदर्द बड़ा ज़माना है जाने क्यो चिल्लाने लगता है
ऊंचे सुर हैं अभिलाषाओं के कैसे अलाप लगाऊंमैं
स्वार्थों के कोलाहल मे जाने क्यो साज़ ही बेआवाज़ हो जाता है

चाहा बहुत जिंदगी की महफ़िल मे सुख के नगमे गूंजे
नफरत की मारी इस दुनिया मे जाने क्यो स्वर ही बिखर जाता है
दूरियां दिलों की मिटाना चाहूँ, नगमे प्यार के गाना चाहूँ
संगदिल है दुनिया जाने क्यो कंठ मेरा ही अवरुद्ध हो जाता है
कठिन धुनें और रागें हैं इस जीवन की , लाख जतनकरो
बेतरतीब बिखरते रिश्तों मे जाने क्यो साज़ ही नही सधपाताहै
फ़िर कैसे राग बहारों के इन फिजाओं मे फैंलें
पत्थरों के घरोंदो मे आदमी तो है जाने क्यो
इंसान ही नही मिल पाता है

दिल की मेरे बेक़रारी मुझसे कुछ पुछो नही
शब की मेरी आह-ओ-ज़ारी मुझसे कुछ पुछो नही
बार-ए-गम से मुझपे रोज़-ए-हिज्र मे इक इक घडी
क्या कहुँ है कैसी भारी मुझसे कुछ पुछो नही
मेरी सुरत ही से बस मालूम कर लो हम-दमन
तुम हक़ीक़त मेरी सारी मुझसे कुछ पुछो नही
शाम से ता-सुबह जो बिस्तर पे तुम बिन रात को
मैने की अख्तर-शुमारी मुझसे कुछ पुछो नही
हम-दमन जो हाल है मेरा करुंगा गर ब्यान
होगी उनकी शर्म-सारी मुझसे कुछ पुछो नही
सूरज की प्रखर तेजी मेंभी
गुलमोहर का खिलना मन्को आह्लादित करता है
सर्द हवाओं के झोंको मे भी
फूलो का खिलखिलाना मन को सुरभित करता है
रातों के स्याह अंधेरों मे भी
सितारों का जगमगाना मन को उल्लासित करता है
तेज़ तुफानो के दौरों मे भी
वृक्षों का लहलहाते रहना मन को पुलकित करता है
हैरान हूयह देख कर की इन पर क्यो
मौसम की तल्खियों का असर नही होता है
न कुछ कहते, सब कुछ सहते ,
हरदम प्रफुल्लित हैं रहते
खुशबु लुटाते , रौशनी बिखराते
छाया सघन है फ़िर भी देते रहते
अपने स्वभाव की मधुरता और मौलिकता
कभी नही खोते , हर मुश्किल मे सहज ही रहते हैं
स्वभाव की महक फैलाते रहते हैं
अस्तित्व अपना बनाए रखते हैं
और कैसे जीते हैं सहज सुरभित जीवन
इंसान को ये अनूठा ढंग बताते हैं
पर इंसान अक्सर निर्बल हो जाता है
ज़रा सी तपिश मे भी आपे से बाहर हो जाता है
मुसीबतों मे अपनी मौलिकता तो खो ही देता है
और कमज़ोर हो कर अपने अस्तित्व के संघर्ष मे
अक्सर नाकाम हो जाता है
पर फ़िर भी प्रकृति के इन प्रेरक प्रतिनिधियों से
जीने की अदा नही सीखता है
जो विपरीत हवाओं मे भी अपने होंसलों को
बनाए रखते हैं
और अपनी मौलिकता सहजता और मधुरता से
अंधेरों और तुफानो को भी पार कर जाते हैं
और अपना अस्तित्व भी बनाए रखते हैं।
इतने मजबूर थे ईद के रोज़ तक़दीर से हम
रो पडे मिलके गले आपकी तस्वीर से हम

राहो की ये शाम और यादो का ये समा
अपनी पलको मे हरगीज़ सितारे ना लायेंगे

रखना जरूर सम्भाल के तुम कुछ खुशियाँ मेरे लिये
मै लौट के आंऊगा फिर ईद मनायेंगे

देख कर ईद का चाँद ये दुआ मांग़ रहे है
ए खुदा उन आंखो मे ये चाँद हमेशा चमके

पिछली ईद मे जितना याद किया था उन्हे
या खुदा इस साल ईद सिर्फ याद मे ना गुज़रे
कह के देख लिया, चुप रह के भी देख लिया,
क्या करे जब उन्होंने ही खामोश कर दिया.
उनसे बात करने के लिए हम बहुत तड़पते है,
पर क्या करे जब हमारे बात करने से वो भड़कते है.

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हकीकत समझो या अफसाना
बेगाना कहो या दीवाना
सुनो मेरे दिल का फ़साना
तेरी दोस्ती है मेरे जीने का बहाना

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हर कोई प्यार के लिए रोता है,
हर कोई प्यार के लिए ही तड़पता है,
मेरे प्यार को गलत मत समझना
प्यार तो दोस्ती में भी होता है .