जीवन के साज़ पर गीत रोज़ नए नए गाता हूँ मैं
गाते गाते हुआ बेहाल कभी बेहाल होकर गाता हूँ मैं
छोटे छोटे तराने खुशियों के जब भी गाने लगता हूँ
बेदर्द बड़ा ज़माना है जाने क्यो चिल्लाने लगता है
ऊंचे सुर हैं अभिलाषाओं के कैसे अलाप लगाऊंमैं
स्वार्थों के कोलाहल मे जाने क्यो साज़ ही बेआवाज़ हो जाता है
चाहा बहुत जिंदगी की महफ़िल मे सुख के नगमे गूंजे
नफरत की मारी इस दुनिया मे जाने क्यो स्वर ही बिखर जाता है
दूरियां दिलों की मिटाना चाहूँ, नगमे प्यार के गाना चाहूँ
संगदिल है दुनिया जाने क्यो कंठ मेरा ही अवरुद्ध हो जाता है
कठिन धुनें और रागें हैं इस जीवन की , लाख जतनकरो
बेतरतीब बिखरते रिश्तों मे जाने क्यो साज़ ही नही सधपाताहै
फ़िर कैसे राग बहारों के इन फिजाओं मे फैंलें
पत्थरों के घरोंदो मे आदमी तो है जाने क्यो
इंसान ही नही मिल पाता है
अगर आप मांसपेशियों और रीढ़ की हड्डी के दर्द से हैं परेशान, तो जानें कैसे
मिलेगा आराम
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मौजूदा भागमभाग वाली जिंदगी में पता नहीं कब शरीर के किसी भाग का दर्द हमारी
दिनचर्या का हिस्सा बन जाता है, इसका हमें पता भी नहीं चलता। सुबह उठने के बाद
अक्सर...
5 years ago
2 Comments:
छोटे छोटे तराने खुशियों के जब भी गाने लगता हूँ
बेदर्द बड़ा ज़माना है जाने क्यो चिल्लाने लगता है ..
sundar bol hain .... sach ke kareeb ... achha likha hai ...
पत्थरों के घरोंदो मे आदमी तो है जाने क्यो
इंसान ही नही मिल पाता है
bahut ab
insaan ko sab kuch mil jata hai
bus insaan ko insaan nahi mil pata...
ati sunder
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