साँसों की आंच से कतरा कतरा रात पिघलती रही
नींद भी जाने क्यो दूर खड़ी डरती ही रही
खामोशियाँ ओढ़ कर मैं तो रात भर जागा किया
तेरे आने की उम्मीद मे पलकें खुली ही रही
खिड़की से चाँद भी रह रहकर दर्द से मुझको देखा किया
चांदनी भी लपटों सी तन को जलाती रही
तेरे क़दमों की आहटें पल पल मैं सुनाकिया
सरसराती हवाएं इठलाती इतराती चिढाती रही
अन्धेरा घना साँयसाँय सा डराता ही रहा
यादें तेरी जुगनुओं सी फिजां चमकाती रही।
तेरे आने की उम्मीद मे पलकें खुली ही रही।
अगर आप मांसपेशियों और रीढ़ की हड्डी के दर्द से हैं परेशान, तो जानें कैसे
मिलेगा आराम
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मौजूदा भागमभाग वाली जिंदगी में पता नहीं कब शरीर के किसी भाग का दर्द हमारी
दिनचर्या का हिस्सा बन जाता है, इसका हमें पता भी नहीं चलता। सुबह उठने के बाद
अक्सर...
5 years ago
1 Comments:
यादें तेरी जुगनुओं सी फिजां चमकाती रही।
तेरे आने की उम्मीद मे पलकें खुली ही रही।
सुन्दर अभिव्यक्ति शुभकामनायें
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