दिल की मेरे बेक़रारी मुझसे कुछ पुछो नही
शब की मेरी आह-ओ-ज़ारी मुझसे कुछ पुछो नही
बार-ए-गम से मुझपे रोज़-ए-हिज्र मे इक इक घडी
क्या कहुँ है कैसी भारी मुझसे कुछ पुछो नही
मेरी सुरत ही से बस मालूम कर लो हम-दमन
तुम हक़ीक़त मेरी सारी मुझसे कुछ पुछो नही
शाम से ता-सुबह जो बिस्तर पे तुम बिन रात को
मैने की अख्तर-शुमारी मुझसे कुछ पुछो नही
हम-दमन जो हाल है मेरा करुंगा गर ब्यान
होगी उनकी शर्म-सारी मुझसे कुछ पुछो नही
शब की मेरी आह-ओ-ज़ारी मुझसे कुछ पुछो नही
बार-ए-गम से मुझपे रोज़-ए-हिज्र मे इक इक घडी
क्या कहुँ है कैसी भारी मुझसे कुछ पुछो नही
मेरी सुरत ही से बस मालूम कर लो हम-दमन
तुम हक़ीक़त मेरी सारी मुझसे कुछ पुछो नही
शाम से ता-सुबह जो बिस्तर पे तुम बिन रात को
मैने की अख्तर-शुमारी मुझसे कुछ पुछो नही
हम-दमन जो हाल है मेरा करुंगा गर ब्यान
होगी उनकी शर्म-सारी मुझसे कुछ पुछो नही
4 Comments:
मेरी सुरत ही से बस मालूम कर लो हम-दमन
तुम हक़ीक़त मेरी सारी मुझसे कुछ पुछो नही ....
बिन कहे ही समझ जाओ तो कितना अच्छा हो ......बहुत खूब लिखा है .....
बहुत खूब रचना...वाह...लिखते रहें
नीरज
बार-ए-गम से मुझपे रोज़-ए-हिज्र मे इक इक घडी
क्या कहुँ है कैसी भारी मुझसे कुछ पुछो नही
मेरी सुरत ही से बस मालूम कर लो हम-दमन
तुम हक़ीक़त मेरी सारी मुझसे कुछ पुछो नही
Bahut Sundar !
बहुत सुन्दर बधाई
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