दिल की मेरे बेक़रारी मुझसे कुछ पुछो नही
शब की मेरी आह-ओ-ज़ारी मुझसे कुछ पुछो नही
बार-ए-गम से मुझपे रोज़-ए-हिज्र मे इक इक घडी
क्या कहुँ है कैसी भारी मुझसे कुछ पुछो नही
मेरी सुरत ही से बस मालूम कर लो हम-दमन
तुम हक़ीक़त मेरी सारी मुझसे कुछ पुछो नही
शाम से ता-सुबह जो बिस्तर पे तुम बिन रात को
मैने की अख्तर-शुमारी मुझसे कुछ पुछो नही
हम-दमन जो हाल है मेरा करुंगा गर ब्यान
होगी उनकी शर्म-सारी मुझसे कुछ पुछो नही

4 Comments:

दिगम्बर नासवा said...

मेरी सुरत ही से बस मालूम कर लो हम-दमन
तुम हक़ीक़त मेरी सारी मुझसे कुछ पुछो नही ....

बिन कहे ही समझ जाओ तो कितना अच्छा हो ......बहुत खूब लिखा है .....

नीरज गोस्वामी said...

बहुत खूब रचना...वाह...लिखते रहें
नीरज

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बार-ए-गम से मुझपे रोज़-ए-हिज्र मे इक इक घडी
क्या कहुँ है कैसी भारी मुझसे कुछ पुछो नही
मेरी सुरत ही से बस मालूम कर लो हम-दमन
तुम हक़ीक़त मेरी सारी मुझसे कुछ पुछो नही

Bahut Sundar !

निर्मला कपिला said...

बहुत सुन्दर बधाई