नैनो मे बसे है ज़रा याद रखना,
अगर काम पड़े तो याद करना.
मुझे तो आदत है आपको याद करने की,
अगर हिचकी आए तो माफ़ करना.

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ये दुनिया वाले भी बड़े अजीब होते है,
कभी दूर तो कभी क़रीब होते है.
दर्द ना बताओ तो हमे कायर कहते है,
और दर्द बताओ तो हमे शायर कहते है.

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ख़ामोशियों की वो धीमी सी आवाज़ है,
तन्हाइयों मे वो एक गहरा राज़ है.
मिलते नही है सबको ऐसे दोस्त,
आप जो मिले हो हमे ख़ुद पे नाज़ है.
वर्तमान सन्दर्भ मे 'खेल' शब्द कोरी, निर्रर्थक क्रियाओं को ही पेश करता है,जो प्रकटत उद्देश्यहीन होते हुए भी भीतर से किसी उद्देश्य को पूरा करता है, जो आह्लादकारी और मानवीय व्यक्तित्व को उन्नत करने वाला है। वस्तुत ये सारी क्रियाएं जो उपयोगिता की दृष्टि से सर्वथा मूल्य विहीन प्रतीत होती है, वास्तव मे निरर्थक और निर्मूल्य नही है।
'कार्य' शब्द उन क्रियाओं को प्रस्तुत करता है जो हमारे जैविकीय अस्तित्व को बनाए रखने मे सहायक है तथा वह अन्य व्यवहारिक प्रयोजनों और स्वार्थो को सिद्ध करता है। सभी उपयोगिता रखने वाली क्रियाओं मे तो व्यक्ति अपने व्यक्तित्व पर पड़ते हुए बाहरी दबावों से नियंत्रित होकर ही कार्य कर पाता है। किंतु खेल का संम्बंध उन सभी क्रियाओं से है, जो हमें हमारी बंदिशों से मुक्त करती है,फलस्वरूप सहज है और भीतर से प्रेरित भी।
तो क्या आप खेलने के लिए समय निकालते हैं? अगर नही तो आप जीवन की एक अनमोल खुशी से वंचित हैं। चोंक गए ? चौंकिए नही, यह सच है। हम मे से अधिकाँश व्यस्क यह सोचते हैं की अब हमारा अपना एक परिवार है, बच्चे हैं, फ़िर कारोबार, घर-गृहस्थी के कामो से फुर्सत ही नही मिलती। और इस उम्र मे खेलना हमें क्या शोभा देता है? खेलना तो बच्चों का काम है।
अगर आप ऐसा सोचते हैं तो आप जीवन के सहज सुलभ किंतु आनंदायक पलों को चूक रहे हैं। क्या आप जानते हैं की वयस्कों के लिए भी खेलना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना बच्चों के लिए। यह स्वास्थय के लिए लाभदायक तो है ही, साथ ही मौज मस्ती के ये कुछ पल-छिन आपको रोजमर्रा के तनावों से राहत दिलाने मे सहायक भी है। ध्यान रखिये की रोज़मर्रा के दबावों और तनावों से राहत पाने के लिए सबसे पहले खेल फुर्सत के क्षण उपलब्ध करवाता है, जिसकी आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी मे ज्यदा जरूरत है।
सामान्यत दिनभर की भागदौड़ के बाद लोग थके-हारे से घर लौटते हैं। ऐसे मे वे सब कुछ भुलाकर फुर्सत के क्षण निकालना चाहते हैं ताकि दिनभर के दबावों और तनावों से राहत महसूस कर सकें। किंतु उन्हें समझ मे नही आता की यह कैसे सम्भव होगा। इस उलझंभरि स्थिति से उबरने के लिए किसी भी तरह के खेल खेलने से आपको तनावों से राहत पाने मे सहायता मिलेगी और फुर्सत के ये क्षण आपके जीवन मे आशा और उमंग भर देंगे। व्यक्ति अकेले मे खेलेया परिवार के साथ तो भी यह उसके स्वास्थय के लिए घुट्टी का काम करेगी अगर परिवार के साथ खेले तो पारिवारिक रिश्तों मे सुहृदयता मधुरता बनी रहेगी।
यह भी देखने मे आया है की नई तकनीकी के विकास से वयस्कों और बच्चों मे कंप्यूटर आधारित खेलो मे रूचि बढती जा रही है। क्योंकि ये रोचक सरस और रहस्य रोमांच से भरपूर होते हैं। इन्हे खेलने से आपकी मेधाशक्ति और तार्किकता भी बढती है। to यह सोचना की खेल सिर्फ़ बच्चों के लिए हैं, वयस्कों के प्रति नाइंसाफी होगी।
ऐसा पाया गया है की कई व्यस्क गम्सखेलने मे अधिक प्रफुल्लित होते हैं और खेलते समय अपनी बचपन की यादे ताज़ा करके आनंदित होते हैं। यह तथ्य है की इस तरह वे अपने को तरोताजा महसूस करते हैं। और कुछ समय के लिए अपनी निजी और कारोबारी समस्याओं को भूल कर तनाव मुक्त हो जाते हैं। और खुशी महसूस करते हैं।
इसलिए खेल सभी के लिए जरुरी है। यह उपयोगी है, आनंद प्रदाताहै। खेल मे व्यक्ति सही अर्थों मैं अपनी स्वतंत्रता और आत्मसंतुष्टि पाता है वेसे भी जीवन अपने आप मे एक खेल है जिसमे हम सब खिलाडी हैं। इसलिए हर उम्र मे खेलने के लिए समय अवश्य चुराइए।
ज़िन्दगी के चन्द लम्हे ऐसे होंगे

जब तुम किसी को चाहोगे लेकिन

तुम्हे चाहने वाला कोई ना होगा

जब तुम किसी का इन्तेज़ार करोगे लेकिन

तुम्हारा इन्तेज़ार करने वाला कोई ना होगा

जब सितारे तो होंगे लेकिन

तुम्हारा चाँद कही और होगा

जब आंखो मे आंसू तो होंगे लेकिन

इन्हे पोछने वाला कोई ना होगा

सो ज़िन्दगी के इन लम्हो मे गर कोई

प्यार, से बुलाये तो चले जाना क्योकि

शायद बाद मे कोई बुलाने वाला ना हो
यह सच है की
हर ज़न्मदिन
खुशिया तो लाता है
पर क्या जीवन को कुछ
दूर नही ले जाता है?
या
शायद मृत्यु को कुछ पास
ले आता है
क्योंकि सच तो ये है की
उम्र का
एक वर्ष कम हो ही जाता है
हम इस विचार से
हमेशा बचते हैं
जाने क्यों सच से डरते हैं
वास्तविकता से हट-ते हैं
भ्रमो मे ही जीते हैं
आशाओं के मरूध्यानोमे ही
भटकते रहते हैं

स्वर्णिम दिवास्वप्नों मे
ही उलझे रहते हैं
चार दिन की जिंदगी मे
दो दिन तो
आकांक्षाओं मे बीतते हैं
और बचे दो दिन
उन की पूर्ति की प्रतीक्षा
मे कटते हैं
अंत मे बस खाली
हाथ ही रहते हैं।
सूनी
हर गली पर
एक आस का दीया,
नयनों की
एक झलक से
तुम ने जला दिया ।

मन की यह
अमावस
उजाली हो गई,
परम उज्जवल
पर्व सी
दीवाली हो गई ।

सूखे
इस ठूंठ को
आतिश बना दिया ।

राकेश 'सोहम'
राजनीति का अर्थ महज सत्तासुख हो गया है
कैसे भी हो, हथिया ले राजगद्दी
अघोषित ये लक्ष्य महान हो गया है
व्यक्तित्व की गरीमा खोई आज के इस दौर मे
खून सस्ता और पानी महँगा हो गया है
ख़ुद के आईने मे जिसने कभी देखा नही ख़ुद को
दूसरो के लिए आज वो ख़ुद आइना हो गया है
हित-अनहित, जनहित की जिसने कभी परवाह नही की
ऐसा पथभ्रष्ट आज पथ प्रदर्शक हो गया है
जन जन की भावनाओं का शोषण आज चरम पर है
कैसे नाखुदा आज बड़ा बेदर्द हो गया है
दूसरो के सर पर रख कर पाँव
आकाश छूनेकी आकांक्षा मे
आदमी क्या से क्या हो गया है।

अश्क गिरते हैं तो हर साँस पिघल जाती है
दे कर एक दर्द नया हर शाम ढल जाती है
तुझको सीने से लगा कर मिले जन्नत का सुकून
तुझसे बिछड़ के मेरी जान निकल जाती है
इश्क कुछ ऐसे मिटाता है निशान-ऐ-हस्ती
जैसे के रात उजाले को निगल जाती है
तू अगर दिल पे मेरे हाथ ही रख दे तो
टूटी साँस भी कुछ देर संभल जाती है
ज़ख्म भरता ही नही तेरी जुदाई का मगर
फिर तेरी याद नया दर्द उगल जाती है

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दिल में है गम और हमे है गम से प्यार
आंखों में है नमी और वही है अपना श्रृंगार
दर्द का है कुछ ऐसा आलम की जीना है दुश्वार
और साँसे कब तक चलेगी वो भी नही रहा ऐतबार



पलकों पे आँसुओं को सजाया न जा सका

उस को भी दिल का हाल बताया न जा सका

ज़ख्मों से चूर चूर था यह दिल मेरा

एक ज़ख्म भी उसको दिखाया न जा सका!

जब तेरी याद आई तो कोशिश के बावजूद

आँखों में आँसुओं को छुपाया न जा सका!

कुछ लोग ज़िन्दगी मैं ऐसे भी आए हैं

जिनको किसी भी लम्हे भुलाया न जा सका

बस इस ख़याल से कहीं उसको दुःख न हो

हमसे तो हाल-ऐ-गम भी सुनाया न जा सका
ऐसा क्यो होता है
सुख तो धुंए सा क्षण भर मे ही उड़ जाताहै
दुःख चिंगारी सा हमेशा सुलगता ही रहता है
ऐसा क्यो होता है

आशा तो बिजली की रेखा सी क्षणिक ही कौंधती है
निराशा अंधेरे सी सदा ही मन को घेरे ही रहती है
ऐसा क्यो होता है

हंसना भोर की लाली सा पल मे ही विदा हो जाता है
रोना जेठ की दुपहरी सा देर तक डटाही रहता है

ऐसा क्यो होता है

किनारे तक पहुंचतेही कभी किश्ती
किसी पत्थर सी डूब जाती है
कभी तुफानो से टकराती हुई भी
फूल सी किनारे लग जाती है

ऐसा क्यो होता है

कभी कोई करीब होकर भी सितारे सा
बहुत दूर लगता है
कोई दूर होकर भी मीठी याद सा
दिल के करीब रहता है

ऐसा क्यो होता है

कभी तो शब्द किसी के अमृत सरीखे
मरते को भी जिला देते हैं
कहीं मौन भी किसी का मुखर हो
ज़हर सा जीते जी मार देता है

ऐसा क्यो होता है

प्रिये से मिलन सदा फूलो की सेज सा
मन को गुदगुदाता है
और बिछुड़ना हमेशा ही काँटों सा
तन मन मे गड़जाता है

ऐसा क्यो होता है

कभी तो कोई रौशनी मे भी
कहीं भटक भटक जाता है
तो कभी कोई अंधेरे मे भी
मंजिल तक पहुँच जाता है

ऐसा क्यो होता है

जीवन कभी दर्द तो कभी दुआ बन जाता है
ऐसा क्यो होता है ऐसा क्यो होता है