चाहत को तेरी छुपा कर जीये जा रहा हूँ मै

खुद को हसी फरेब दिये जा रहा हूँ मै

तू बेवफा है फिर भी मेरा हौसला तो देख

तुझ पर वफा निसार किये जा रहा हूँ मै

खामोश हूँ की तू ना हो रुसवा जहाँ मै

खुद अपने लबो को सिये जा रहा हूँ मै

और बट तेरा तराश के पूजुगा इसलिये

पत्त्थर तेरी गली से लिये जा रहा हूँ मै

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सारी उम्र आंखो मे एक सपना याद रहा

सदियाँ बीत गयी पर वो लम्हा याद रहा

ना जाने क्या बात थी उनमे और हममे

सारी मेहफिल भुल गये बस वोहि एक चेहरा याद रहा

4 Comments:

निर्मला कपिला said...

बहुत सुन्दर हर शेर लाजवाब है आभार्

समयचक्र said...

यादगार लम्हे हमेशा याद रहते है . बहुत बढ़िया भाव.

भगीरथ said...

रोमानी कविताएं बहुत अच्छी लिखते हो
पढ्नेवाला भी रोमन्टिक मूड मे आ जाताहै
प्रेम में सकून है प्रेम के बिना जीवन खिलता नही
लेकिन मोह्ब्बत के अलावा और भी गम है दुनिया मे

मुकेश कुमार तिवारी said...

रवि जी,

गज़ल में अशआर अच्छे कहें है बिल्कुल किसी मिठाई की तरह मुहब्बत की चाश्नी में डूबे/घुले हुये।

और बुत तेरा तराश के पूजंगा इसलिये
पत्त्थर तेरी गली से लिये जा रहा हूँ मै

विशेषतौर पे पसंद आया।

सादर,


मुकेश कुमार तिवारी