एक ही ख्वाब को आंखो मे कई बार सजाया मैने
अपने ही अश्को से फिर उस ख्वाब को मिटाया मैने
राह के जिस मोड पर बदल गयी थी मन्ज़िल मेरी
आज फिर उसी राह पर कदम को उठाया मैने

जो था मसीहा मेरा, आज उसे पत्थर कह दिया
ना चाहते हुये भी जुल्म कमाया मैने
एक तरफ मौत है और एक तरफ बसर तन्हा
प्यार मे क्या कहूँ कि क्या पाया मैने

धुआँ ही धुआँ उठता रहा मगर आग ना जल पायी
आज इस कदर उसके खतों को जलाया मैने

7 Comments:

ओम आर्य said...

बहुत ही खुबसूरत रचना ......

अर्चना तिवारी said...

सुन्दर रचना...

अनिल कान्त said...

पढ़कर दिल खुश हो गया ...

निर्मला कपिला said...

बहुत बडिया रचना बधाई

दिगम्बर नासवा said...

जो था मसीहा मेरा, आज उसे पत्थर कह दिया
ना चाहते हुये भी जुल्म कमाया मैने

CHALO SACH BOL KAR JURM KA IQBAAL TO KIYA .... SUNDAR LIKHA HAI ....

Arshia Ali said...

Dil se niklee kavita.
( Treasurer-S. T. )

रंजना said...

वाह !! भावों को सुन्दरता से अभिव्यक्त किया है आपने..