क्या कहूँ मैं क्या नही
वो मेरा हुआ नही
ज़िन्दगी जीया करो
यह कोई बला नही
दिल में है लाख लाख पर
लब पर कोई सदा नही
सब की मैं हुई मगर
अक्स भी मेरा नही
की है उस ने दिल्लगी
इश्क तो किया नही
मर्ज़ ला-इलाज यह
दर्द की दवा नही
पत्थर पिघल गए
कुछ असर उनपर हुआ नही
दिन वही है रात भी
पर अब वो शमां नही
जो मिला नसीब से
अब कोई गिला नही
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दोस्ती में शब्दों की अहमियत नही होती,
दिल के जज्बात की आवाज नही होती।
आँखे बयां कर देती है दिल की दास्ताँ,
दोस्ती कभी लफ्जों की मोहताज नही होती।

2 Comments:

दिगम्बर नासवा said...

की है उस ने दिल्लगी
इश्क तो किया नही
मर्ज़ ला-इलाज यह
दर्द की दवा नही

lajawaab likha hai........

और दोस्ती का अंदाजे बयान तो बहूत ही लाजवाब है ................शुक्रिया

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर रचना .. अच्‍छी लगी।