देश की राजनीति में अहम भूमिका अदा करने वाले राज्य उत्तरप्रदेश में राजनीतिक सरगर्मियां उफान पर हैं। सत्रह करोड़ की आबादी वाला यह राज्य लोकसभा की 543 सीटों में से 80 सीटों का प्रतिनिधित्व करता है। हालांकि साक्षरता दर के हिसाब से यह प्रदेश देश के सबसे कम पढ़े लिखे पांच राज्यों के जमघट में शामिल है, लेकिन राजनीति यहां की आवोहवा में बसती है। पहले चरण की नामाकंन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और उसके साथ ही चुनावी सभाओं से लेकर नुक्कड़ सभाओं का दौर भी। अपनी उपलब्धियों को गिनाने के अलावा अपने प्रतिद्वंदी की नाकामियों के फेरहिस्त से रूबरू कराने के लिए नेता कल तक अखबारों और खबरिया चैनल के जरिए लोगों के पास पहुंचते थे। अब इन चेहरों का दीदार आपको अपने शहर और मोहल्लों में होगा।

चुनाव खर्च की अधिकतम सीमा और आचार संहिता पर निर्वाचन आयोग की पैनी नजर के कारण लोकसभा चुनाव में प्रत्याशियों का मतदाताओं के दरवाजे पहुंचना मजबूरी बन गई है। पिछले पखवाड़े लोकसभा चुनाव के महासमर की रणभेरी बजने के बाद अब तक चुनावी लाभ के लिए राजनीतिक दलों की उठापटक देखी गई और अब इन्ही में से कोई नेता आपके दरवाजे दस्तक देकर हालचाल पूछने जरूर आएगा।

चुनाव आचार संहिता और प्रत्याशियों के खर्चे पर चुनाव आयोग की कड़ी नजर के चलते मंहगी गाड़ियों पर चलने के शौकीन इन नेताओं की मजबूरी है कि यह पैदल ही जनसंपर्क कर आपको लुभाने का प्रयास करें। आयोग ने हर प्रत्याशी को चुनाव में अधिकतम 25 लाख रूपए खर्च करने की अनुमति दी है और अधिकतर संसदीय क्षेत्र की वृहदता इतनी है कि यह रकम तो बैनर, होर्डिंग जैसे प्रचार माध्यमों पर खर्च करने के लिए भी नाकाफी है। यही वजह है कि प्रत्याशियों का मतदाताओं के दरवाजे पहुंचना मजबूरी बन गई है।


प्रदेश की राजनीतिक सोच का साक्षात उदाहरण है कि देश को पांच प्रधानमंत्री इसी राज्य ने दिए हैं। इसके अलावा यहीं से उपजे और पले बढ़े समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) जैसे क्षेत्रीय दल देश की राजनीति में अहम भूमिका अदा कर रहे हैं। लोकसभा चुनाव में इस बार भी यहां लोगों में खासा उत्साह है लेकिन बिजली, पानी और सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं को उपलब्ध कराने के वायदे के साथ पिछला चुनाव जीते नेताओं के प्रति लोगों में खासा रोष भी है। चुनाव के समय बिजली हमेशा से ही यहां प्रमुख मुद्दों में शामिल रहती है और विपक्ष इस मुद्दे को हर बार भुनाने की ताक में रहता है हालांकि दिलचस्प तथ्य यह है कि आजादी के बाद से यहां कांग्रेस, भाजपा, सपा और बसपा की सरकारें रह चुकी हैं, लेकिन विद्युत के क्षेत्र में यह प्रदेश पंजाब, हिमाचल प्रदेश समेत अन्य विकसित राज्यों की अपेक्षा बहुत पिछड़ा है और हालात यह है कि घनी आबादी वाले इस राज्य की एक चौथाई आबादी हर समय अंधेरे की ओट में रहने को मजबूर है।

बिजली के अलावा प्रदेश में विकास का दूसरा मुख्य मुद्दा सड़कों और नालियों की जर्जर हालत है। राष्ट्रीय राजमार्ग और राजधानी लखनऊ और नोएडा को छोड़ दे तो बाकी राज्य ऊबड़-खाबड़ सड़को और सड़ांध भरी नालियों से बेहाल है। औद्योगिक नगर कानपुर, गोरखपुर, मेरठ और वाराणसी समेत राज्य के अधिसंख्य जिलों के वाशिंदे इस बार जन प्रतिनिधियों की खबर लेने को तैयार बैठे हैं। पेयजल के मामले में भी राज्य की हालत बेहद गंभीर है। गर्मी का मौसम शुरू होते ही पीने के पानी को लेकर हायतोबा शुरू हो जाती है। बुंदेलखंड-कानपुर देहात के अलावा पूर्वाचंल के कई जिलों में पीने के पानी में आर्सेनिक की मात्रा मापकों के प्रतिकूल हैं, जिससे यहां के लोगों को डायरिया समेत अन्य गंभीर बीमारियों से रूबरू होना पड़ता है।

धर्म और जाति के नाम पर बरगलाने वाले इन नेताओं की नीयत से जनता अच्छी तरह वाकिफ हैं। जनता यह भी बखूबी जानती है कि चुनाव के बाद इन तंग गलियों मे किसी की शक्ल नहीं दिखेगी, ....लेकिन हम इस बार हम वोट जरूर देंगे, लेकिन किसे इस बारे में अच्छी तरह सोच विचार कर”।

पर किसे???

बर्बाद गुलिश्ता करने को एक ही उल्लू काफी था,
यहाँ तो हर डाल पे उल्लू बैठा है, अंजाम-ए-गुलिश्ता क्या होगा?

2 Comments:

sarita argarey said...

नेताओं पर दबाव डालने के लिए मतदाताओं को ही पहल करना होगी । राजनीतिक दल खुद होकर कभी बदलाव नहीं चाहेंगे ,उन्हें मजबूर किया जा सकता है वोट नहीं करने का भय दिखाकर । चुनाव आयोग ने हमें मौका दिया है कि हम मतदान केन्द्र पर अपने मत का उपयोग नहीं करने की सूचना दर्ज़ करायें । मेरा मानना है कि हमें इस व्यवस्था का बड़े पैमाने पर फ़ायदा उठाना चाहिए । आप से गुज़ारिश है कि इस मुहिम में लोगों को शामिल करें ।

दिगम्बर नासवा said...

पर वोट दें, किसको दें .......यही तो यक्षी प्रश्न है.........
समय इस का उत्तर देगा .