जो तेरे इश्क में खोये तो फिर पता न रहा,
ज़माने भर से मेरा कोई वास्ता न रहा।
बहोत गहरे मरासिम थे दोस्तों से मेरे,
तुम्हारे बाद किसी से भी राबता न रहा।


बहोत थे शिकवे गिले तुम से बेवफाई के,
देखकर सामने तुमको कोई गिला न रहा।
जूनून चढ़ा तो इस तरहां इश्क का तेरे,
कोई हुदूद फिर कोई जाब्ता न रहा।


लगी जो आग दिल में तो इस तरहां फैली,
फिर बच निकलने का कोई रास्ता न रहा।

उनकी तस्वीर को सीने से लगा लेते हैं,
इस तरह जुदाई का ग़म मिटा लेते हैं।
किसी तरह जी कर हो जाए उनका,
तो हँसकर भीगी पलकें झुका लेते हैं।

दिल की दुनिया टूटने के बाद सब रोते थे,
हम थे कि पागलों की तरह हँसते थे।
यह हाले-दिल हम कैसे सुनाये कि...
तकलीफ न हो उनको इस लिए अकेले रोते थे।


2 Comments:

दिगम्बर नासवा said...

उनकी तस्वीर को सीने से लगा लेते हैं,
इस तरह जुदाई का ग़म मिटा लेते हैं।
किसी तरह जी कर हो जाए उनका,
तो हँसकर भीगी पलकें झुका लेते हैं।

इश्क़ इश्क़ इश्क़.........इश्क़ में तो यह सब होता ही है .......
खूबसूरत रचना

archana said...

bahut achha likha ravi ji aapne dil ko chhu jaati hai aapki rachnaaye