अपनी तन्हाई की पलको को भीगो लूँ पहले

फिर गज़ल तुझ पे लिखूँ, रो लूँ पहले

ख्वाब के साथ कही खो ना गयी हों आंखे

जब उठू सो के तो चेहरे को टटोलूँ पहले

मेरे ख्वाबो को है मौसम पे भरोसा कितना

बाद मे फूल खिले हार पिरो लूँ पहले

देखना ये है कि वो रहता है खफा कब तक

मैने सोचा है कि  इस बार ना बोलूँ  पहले 

6 Comments:

संजय भास्‍कर said...

फिर गज़ल तुझ पे लिखूँ, रो लूँ पहले
ख्वाब के साथ कही खो ना गयी हों आंखे
जब उठू सो के तो चेहरे को टटोलूँ पहले
lajwaab .........

संजय भास्‍कर said...

सुन्दर कवितायें बार-बार पढने पर मजबूर कर देती हैं. आपकी कवितायें उन्ही सुन्दर कविताओं में हैं.

दिगम्बर नासवा said...

देखना ये है कि वो रहता है खफा कब तक
मैने सोचा है कि इस बार ना बोलूँ पहले ...

अगर महबूब खफा है तो ज़रूर शुरुआत कर लें ... जब भी करेंगे आप ही करेंगे ...

मृत्युंजय said...

Kya Baat Hai. Bhut Umada Dino Baad behatrin Gazal padhi.

राकेश 'सोहम' said...

सोचा था ..इस बार ना बोलूँ....लेकिन ...एकदम बेहतरीन . क्या बात....क्या बात....क्या बात ?????

tum to fir ek haqeeqat ho......... said...

bahut shandar kavita....देखना ये है कि वो रहता है खफा कब तक
मैने सोचा है कि इस बार ना बोलूँ पहले ....