जब से
तुम
मिल गए,
मौसम के
सुनहरे पंख
खुल गए ।

अगणित
कलियों पर
चाँद चमका है,
जब से
तुम्हारा
घूँघट सरका है ।

बागवान के
जैसे,
दिन फिर गए ।

पवन की
झप-झप
सनसनी लिए है;
जब से
तुम्हारे आँचल से
झोंके मिले हैं ।

गरमाते बदन
सिहर
सिहर गए !
[] राकेश 'सोहम'

4 Comments:

Anonymous said...

गुलाबी रंगत लिए म्रदुल अहसास कराती सुंदर रचना के लिए बधाई.

Randhir Singh Suman said...

nice

संजय भास्‍कर said...

राकेश 'सोहम' ji
Namaskar...........

Plz visit me new post...............




गरीब हूँ मैं.......


" देश सबका है


......क्यों है.. .......


http://sanjaybhaskar.blogspot.com

रानीविशाल said...

बहुत ही खुबसूरत अहसासो से सजी , दिल को बुदबुदती रचना..!!
सादर
http://kavyamanjusha.blogspot.com/