जब महबूब दिल मे तो होता है
पर निगाहों से दूर बसताहै
इक हूक सी दिल मे उठती है
और जिस्म काँपता रहता है
जब इंतज़ार की घडिया रुलाती हैं
दिल हर पल सिसकता रहता है
तब कई रंग उभरते चेहरेपे
और जिस्म सिहरता रहता है
जब नाउम्मीदी दर्द जगाने लगे
आशाओं की लो थरथराने लगे
तब दर्द सा दिल मे उठताहै
और जिस्म बस तडपता रहता है
जब हवाएं भी उसकी साँसों सी महक उठे
हर आहटउसी की पदचाप लगे
तब धड़कने भी बेकाबू हो जाती हैं
और जिस्म बस मचलता रहता है
जब यादों के अक्स बिखरने लगे
जिस्म से जान भी जाने लगे
तब लहू भी ज़मनेलगता है
और जिस्म पिघलने लगता है
और जिस्म पिघलने लगता है
जिंदगी के झरोखे से झाँकती
एक शिशु सुकोमल मन
जीवन के भावी संघर्ष से अनजान
पत्थरों के बीच से
एक रोज बाहर निकला
चेहरे पर हरा-भरा इतना
ख़ुशी यूँ पर्वत को हरा दिया
मन में उमंग लिए
छूने को आसमान
सितारों के बीच पहचान
बनाने की सिद्दत से जिद्द.
तभी सुनाई पड़ीं कुछ आवाजें
तभी सहसा एक धमाका
नन्ही जिंदगी सहम गयी
कुछ सोच न पाया क्या हुआ
चारों ओर बस धुल ही धुल
निश्चल पत्थर डोल गए
जिस आसमान की चाहत थी
उसी ने फिर बरसाए अंगारे
झुलस गया सुकोमल तन
झेल गया घायल मन
वह वितीर्ण वेदना की पीड़ा
इस पर्वत में भी शायद आज
लग गया सभ्यता का कीड़ा
खुद को हसी फरेब दिये जा रहा हूँ मै
तू बेवफा है फिर भी मेरा हौसला तो देख
तुझ पर वफा निसार किये जा रहा हूँ मै
खामोश हूँ की तू ना हो रुसवा जहाँ मै
खुद अपने लबो को सिये जा रहा हूँ मै
और बट तेरा तराश के पूजुगा इसलिये
पत्त्थर तेरी गली से लिये जा रहा हूँ मै
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सारी उम्र आंखो मे एक सपना याद रहा
सदियाँ बीत गयी पर वो लम्हा याद रहा
ना जाने क्या बात थी उनमे और हममे
सारी मेहफिल भुल गये बस वोहि एक चेहरा याद रहा
हूँ हुजुमे सादगी मे, साथ है तन्हाईयाँ
हो ना दिल मे जब किसी के वास्ते अच्छे ख्याल
ऐब बन जाती है तब, इंसान की अच्छाईयाँ
लग रहा है आदमी दिलकश समंदर की तरह
कितना खारापन है इसमे, साथ मे गहराइयाँ
फक्र का सूरज ठहर जाता है, आकर सिर पे जब
छोटी हो जाती है कंध से प्यार की परछाईयाँ
मै बहुत छोटा हूँ, पर इतना भी छोटा तो नही
आपके कंधे से बढी है , ये मेरी उचाईयाँ
जब उतर जाते है शराब के घुंट सीने मे
लेने लगता आईना-ए-दिल भी तब अंगडाइयां
अब दिल
बहलाया नहीं जा सकता ।
प्यार भरी पाती
भावों का संगम
जीवन का
परिणय संवाद अब
झुठलाया नहीं जा सकता ।
कोमल भावनाओं की महक,
हर शब्द में
मिलन की कसक ।
प्यार की सौगातों की
लम्बी कथा,
कह गई पाती
सारी व्यथा ।
प्यार के उपहार में
शब्दों के जाल में, मैं
जब-जब भटक जाता हूँ;
सच कहूं
क्या करू
कुछ समझ नहीं पाता हूँ !
[] राकेश 'सोहम'
दिल के हर लफ्ज़ो को ब्यान करते,
खुशियाँ और गम को समेटते ये फूल
हर हाल मे जीना सिखाते,
मौसम के हर रंग को सहना सिखाते ये फूल।
गम-ए-दिल को हसना सिखाते,
नई उम्मीद और उमंग जगाते ये फूल
आँखों से उतर कर दिल को सुकुन पहुँचाते,
चंचल हवाओ के संग उड जाना सिखाते ये फूल।
दिलो के दरमिया दुरियाँ मिटाते,
राह चलते राही का दिल लुभाते ये फूल
फिज़ाओ को महकाते और राहो मे बिछ जाते,
दिलरूबा के होठो पे मुस्कुराहट लाते ये फूल।
चाँदनी रात
और मेरे हाथो मे तुम्हारा हाथ
नूर ही नूर बिखरा है
कितनी सुहानी है ये रात
सबसे जुदा होकर हम
तेरी धडकनो मे समा गये
खुद को खो दिया हमने
ना जाने कैसी हुई तुमसे मुलाकात
तेरे हाथो की लक़ीरो मे
देखा है अपना नसीब
तेरे ही नाम से शुरू होकर
तुझ पर आकर खत्म हो
मेरी हर एक बात
प्यार के सफर के हम दो राही
चले है एक दुजे के साथ
दिल की दुनियाँ भी बसाई है
हमने देके दिल की सौगात
फलक पर यूँ उमड आये बादल बन के प्यार,
भीगे हम भी रात हुई कुछ ऐसी बरसात।
तस्सव्वुर मे रहती है हर दम बन के हम ख़याल,
अपने चाँद से अपने मेहबूब से मेरी ये मुलाकात।
अपने ही अश्को से फिर उस ख्वाब को मिटाया मैने
राह के जिस मोड पर बदल गयी थी मन्ज़िल मेरी
आज फिर उसी राह पर कदम को उठाया मैने
जो था मसीहा मेरा, आज उसे पत्थर कह दिया
ना चाहते हुये भी जुल्म कमाया मैने
एक तरफ मौत है और एक तरफ बसर तन्हा
प्यार मे क्या कहूँ कि क्या पाया मैने
धुआँ ही धुआँ उठता रहा मगर आग ना जल पायी
आज इस कदर उसके खतों को जलाया मैने