ज़िन्दगी का सहारा गया,
दिल तो बेमौत मारा गया।
अब निगाहों से क्या काम लूं
मेरी आँखों का तारा गया।


रात भर शमा कि ज्योत पर,
नाम तेरा पुकारा गया।
लज्ज़त-ए-ज़ख्म-ए-उल्फत न पूछ,
उनके दर पर दोबारा गया।


इश्क का राज़ मुझ पर खुला,
आज से जब गुज़ारा गया।
जब भी खून की ज़रुरत पड़ी,
दिल चमन में हमारा गया।


जैसे मुझ पर हो ईशान कोई,
कब्र में यूँ उतारा गया।
बज्म-ए-रिन्दाँ क्यूँ सजे,
मैकदे का सितारा गया।
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अभी सोचा ही था ढूँढू उफाक के पार का रास्ता,
तो दिल बोला मेरा सोचो कब का लापता हूँ मैं।
हवा बोली समुंदर से, तेरा भी कोई बिछड़ा हैं,
कहा उसने, जा जा के साहिल पे उसी को ढूंढता हूँ मैं।

3 Comments:

MANVINDER BHIMBER said...

इश्क का राज़ मुझ पर खुला,
आज से जब गुज़ारा गया।
जब भी खून की ज़रुरत पड़ी,
दिल चमन में हमारा गया।
बहुत ही सुंदर लिखा है आपने बधाई

mehek said...

इश्क का राज़ मुझ पर खुला,
आज से जब गुज़ारा गया।
जब भी खून की ज़रुरत पड़ी,
दिल चमन में हमारा गया।
waah bahut hi sunder ,har pankti mein ehsaason ka ras ghula hai,badhai.

दिगम्बर नासवा said...

इश्क का राज़ मुझ पर खुला,
आज से जब गुज़ारा गया।
जब भी खून की ज़रुरत पड़ी,
दिल चमन में हमारा गया

बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति है आपकी ..........