शाम से ही बुझा सा रहता है,
दिल है गोया चिराग मुफलिस का।
शब् भर था इंतज़ार कि फूटेगी रौशनी,
जगे तो रौशनी को अंधेरे निगल गए।
दिन तो कट जाता है हंगामों में,
रात आती है तो बस आके ठहर जाती है।
नींद तो खैर इन आँखों के मुक़द्दर में नही,
मौत भी क्या जाने कहाँ जा के मर जाती है।
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इससे बड़ा सबर का सबूत मैं तुझे क्या देता,
तू मुझ से लिपट कर रोती रही वो भी किसी और के लिए।

3 Comments:

mehek said...

इससे बड़ा सबर का सबूत मैं तुझे क्या देता,
तू मुझ से लिपट कर रोती रही वो भी किसी और के लिए।
waah behtarin,kya baat keh di.bahut khub

दिगम्बर नासवा said...

वाह रवि जी
जान ले ली आपने इस शेर में तो ..........जितनी तारीफ़ करो कम है

इससे बड़ा सबर का सबूत मैं तुझे क्या देता,
तू मुझ से लिपट कर रोती रही वो भी किसी और के लिए।

संगीता पुरी said...

वाह ... बहुत बढिया।