यही वफ़ा का सिला है, तो कोई बात नही ,
यह दर्द तुम ने दिया है, तो कोई बात नही।
यही बहुत है कि तुम देखते हो साहिल से,
सफीना डूब रहा है, तो कोई बात नही।

रखा था आशियाना-ऐ-दिल में छुपा के तुमको,
वो घर तुमने छोड़ दिया है तो कोई बात नही।
तुम ही ने आईना-ऐ-दिल मेरा बनाया था,
तुम ही ने तोड़ दिया है तो कोई बात नही।

किसे मजाल कहे कोई मुझको दीवाना,
अगर यह तुमने ही कहा है तो कोई बात नही।
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आज हम उन्हें बेवफा बताकर आए हैं,
उनके खतों को पानी में बहाकर आए हैं।
कोई पढ़ न ले उन खतों को पानी से निकाल के,
इसलिए पानी में भी आग लगा के आए हैं।


4 Comments:

Palak.p said...

आज हम उन्हें बेवफा बताकर आए हैं,
उनके खतों को पानी में बहाकर आए हैं।
कोई पढ़ न ले उन खतों को पानी से निकाल के,
इसलिए पानी में भी आग लगा के आए हैं।



ye lines ek gazal se milti hai ....

tere khushboo mai base khat mai jalata kaise....

aaj us gazal ki yad dila di in panktio ne

keep posting...

उम्मीद said...

wonderful poem
aap ne to hamari hi bat kah di

अनिल कान्त said...

बहुत ही बेहतरीन रचना है ...मुझे ये लाइन बहुत पसंद आई ....

तुम ही ने आईना-ऐ-दिल मेरा बनाया था,
तुम ही ने तोड़ दिया है तो कोई बात नही।

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

दिगम्बर नासवा said...

आज हम उन्हें बेवफा बताकर आए हैं,
उनके खतों को पानी में बहाकर आए हैं।
कोई पढ़ न ले उन खतों को पानी से निकाल के,
इसलिए पानी में भी आग लगा के आए हैं।

वाह वाह .....
क्या अंदाज़ है लिखने का
ख़त का क्या कसूर.......वो तो बेज़बान हैं .......बहाइये नहीं उनको