एक ठिठुरती रात में ठंडी चट्टान पर
खड़े पुराने पीपल के पेड़ के नीचे
अन्धेरा सहमा सहमा , डरा डरा सा खडा था
और थर थर काँप रहा था
मैंने करुना वश पूछा - क्या हुआ?
परेशान , घबराया वह बोला-
यह नया साल क्या होता है?
इसमें इतना जश्ने-बहारां और शोर शराबा
क्यों होता है?
मैंने कहा - जब जीवन के अनमोल
३६५ दिन १-१ कर के चुक जाते हैं
हर बार हाथ खाली ही रह जाते हैं
उम्मीदों की कलियाँ खिलने से रह जाती हैं
श्वास खज़ाना कुछ और कम हो जाता है
जीवन भी जब कुछ और सिकुड़ जाता है
तब किसी अनजानी अनचीन्ही आशा में
लोग फिर से गिनती की शुरुआत करते हैं
वो ही नया साल कहलाता है
उसने असमंजस से पूछा- इसमें नया क्या है?
मैं बोला - नै उमंगें/नया उत्साह/नई ऊर्जा/नया संकल्प ....
खिलखिलाकर हंसा अन्धेरा और व्यंग से बोला-
इसमें नया क्या है? यह सब तो रोज़ होता है॥
पक्षी रोज़ नया गीत गुनगुनाते हैं,
फूल रोज़ नए तरीके से थिरकते हैं
भव्य सूर्योदय रोज़ नई उमंगें, नया उत्साह
और नई ऊर्जा लाता है॥
पर आदमी ही आँखे मूंदे रहता है॥
क्या नए साल में
आदमी की फितरत बदल जायेगी
परिस्थितियाँ संभल जांयेंगी ?
मन की अवस्था संवर जांयेगी?मैं बोला - संकल्प से सब सिद्ध हो जाएगावो उदास होकर बोला-शायद कुछ भी नहीं होगा-मैं सतयुग से कलयुग तक..युगों से गवाह हूँपुराना तो बीत जाता है औरनया भी आ कर ठहर नहीं पाटा हैपर आदमी बिना बदला ही रह जाता हैसमय की प्रचंड आंधी में संकल्प उसकातिनके तिनके सा बिखर जाता हैऔर कुछ भी सिद्ध नहीं हो पाता हैअहंकार , नफरत, क्रोध, स्वार्थ, ईर्ष्याबढते ही जाते हैं, औरविनम्रता । प्यार, करुना , परमार्थ , प्रसन्नता कम होते जाते हैं,हैवानियत बढती तो इंसानियत कम होती जाती हैयह एक त्रासदी है की नए साल मे भी आदमी की ज़िन्दगी पहले सी बेबस ही बीत जाती है।