हँसते हुए आँखों में क्यों आ जाते है आँसू
क्यूँ खुशी को अधूरा सा बना जाते है आँसू
दर्द इतना है सहा, हो गया समुंदर अश्कों का
जाने कहाँ से फ़िर भी आंखों में भर जाते है आँसू
खुश हूँ मैं कोई शिकवा ज़माने से न तकदीर से
मेरी इस बात को झूठा कर जाते है आँसू
शायद ख़बर है उनको भी किस कदर तनहा हूँ मैं
तन्हाई में मेरा साथ निभा जाते है आँसू


दुआ है कि वो अब ख़्वाबों में न मिले
और मेरी आंखों में कोई आँसू न मिले
वो मेरे दीदार के लिए बेहद तड़पे
और उससे मेरा साया भी न मिले
जो ग़लत-फ़हमी हम दोनों में है
ढूँढने से भी उसको कोई उसका सिरा न मिले
मेरी यादों की उलझन में इतना उलझ जाए
कि यादों से भागने का रास्ता न मिले
मेरी बातों के समुंदर में इतना डूबे
कि भूलकर भी उसको कोई किनारा न मिले
जिस दिन मिलना उसी दिन ही बिछड़ना
अब हमें मिलाने वाला कोई दिन न मिले
बंद आँखें जब भी करे सोने के लिए
नींदों के देश का कोई रास्ता न मिले
मैं दूर उस से इतनी दूर चली जाऊं
कि मेरा उसे कोई भी निशाँ न मिले
मेरे दिल को बे-दर्दी से तोड़ने वाले
अब तुझको मुझ सा कोई न मिले
चाहतों का मौसम दो दिन में गुज़र गया
मुझ सी चाहने वाली अब उसे कोई न मिले
मेरी आंखों से ख्वाब छीनने वाले
तेरे लिए दुआ मैं मांगू पर तुझे मेरा प्यार न मिले

with.spl.thx- Vibha


दो दिन का है ये प्राण पंछी
कर ले तुझको जो भी है करना
कल हम सबको यहाँ से है जाना
दुखों के पहाड़ खड़े है राह में
जूझते रहना सफलता आएगी हाथ में
इस कठिन राह पर तुझको है चलना
कोई न जान सकेगा तेरे दिल के दर्द को
फैला देना तेरी खुशबू और हर्ष को
गम पी के तुझे सब कुछ है सहना
जाने न जाने ये दुनिया तुझे
तू तो एक हस्ती है तेरे मन् की
खुदको ही हंसकर इस हस्ती को है निखारना
ये है जीवन का सच
जो मैंने तुझसे मिलकर है जाना

कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है.
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है.

मै तुझसे दूर कैसा हूँ, तू मुझसे दूर कैसी है.
ये तेरा दिल समझता है, या मेरा दिल समझता है.

मोहब्बत एक एहसासों की पावन सी कहानी है.
कभी कबीरा दिवाना था, कभी मीरा दीवानी है.

यह सब लोग कहते हैं, मेरी आँखों में आँसू हैं.
जो तू समझे तो मोती हैं, जो न समझे तो पानी हैं.

समंदर पीर का अन्दर है, लेकिन रो नहीं सकता.
ये आँसू प्यार का मोती है, इसको खो नहीं सकता।

मेरी चाहत को अपना तू बना लेना मगर सुन ले.
जो मेरा हो नहीं पाया, वो तेरा हो नहीं सकता.

मै उसका हूँ वो इस एहसास से इनकार करता है।
भरी महफिल में भी रुशवा मुझे हर बार करता है।

यकीं है सारी दुनिया को खफा है हमसे वो लेकिन,
मुझे मालूम है फिर भी मुझी से प्यार करता है।

साभार - डॉ. कुमार विश्वास


है समस्या बेटे अगर समाधान हैं बेटियाँ
तपती धुप में जैसे ठंडी छाँव हैं बेटियाँ
होकर भी धन पराया हैं सच्चा धन अपना
दिखावे की दुनिया में महादान हैं बेटियाँ
अपनी बधाई की और की सबने बहुत चर्चाये
हैं धान्प्ती कमियों की मेहरबान हैं बेटियाँ
तनावभरी गृहस्थी में हैं चारो और तनाव
व्यंग-बाणों के बीच कैसी ढाल हैं बेटियाँ
हैं दूर वे हम सब से फ़िक्र उन्हें हमारी
करती दुआएं हरदम खैरख्वाह हैं बेटियाँ
है बेटा अगर ये रोशन जिससे
दो घर जिनसे रोशन अफताब हैं बेटियाँ
हैं लोग वो जल्लाद जो ख़त्म उन्हें है करते
टिका जिन पर परिवार वह बुनियाद हैं बेटियाँ
मांगती हैं मन्नत बेटों की खातिर दुनिया
अपनी नज़रों में दोस्तों महान हैं बेटियाँ
WST-Neel
आज विज्ञानं जिस तेजी से प्रगति कर रहा है, उसी अनुपात में विवेक शक्ति का ह्वास होता जा रहा है। जिससे अशांति और अराजकता में वृद्धि हो रही है। मनुष्य भौतिक सुविधाओं से संपन्न होते हुए भी मानसिक संतुलन खोता जा रहा है। स्नेह और संवेदनशीलता की कमी आती जा रही है। इससे सम्पूर्ण मानव जाती का ही नुक्सान हो रहा है। इससे बचने का एक मात्र सहज सुलभ मार्ग है - सत्संग! इससे विवेक जागृत होता है। और विकसित होता है। जिससे विज्ञानं और धर्म में सामंजस्य और सामान्तर विकार होता है। जो जीवन को सारा , शांत और संतुलित रखता है। यही जीवन जीने की कला है।
रामचरित मानसा में लिखा है की "बिन सत्संग विवेक न होई। ' सत्संग में ही विवके शक्ति जागृत होती है। सत्संग में जाने से चित्त की वृत्त्यों का शुद्धिकरण सहज ही शुरू हो जाता है। जिससे जीवन के लक्ष्य के प्रति जाग्रति आती है और उत्साह बनता है। सत्संग जीवन जीने की कलही जो हमें सिखाता है की मन का संतुलन खोये बिना जीवन की सभी परिस्थितियों का सामना सुगमता पुर्वक किया जा सकता है।
सच्चे संतजन विश्व के कल्याण के परम आधार हैं। उनकी वाणी से अमृत झरता है। उनके हृदय से आनंद का सतत प्रवाह बहता है। वे जो उपदेश करते हैं,वहीsअत्कर्म बन जाता है। उनका संग ही सत्संग है। जिस जगह वे सत्संग करते हैं वह स्थल पावन बन जाता है। जिस तरह भगवान् भास्कर पृथ्वी को ऊष्मा प्रदान करते हैं, उसी तरह संतजन भी अपने भीतरी खजाने में से ज्ञान रुपी अमृत देकर प्राणियों को सुख रूप उष्णता परत\दान करते हैं। वे खिले हुए पुष्प की भाँती हैं, जो सर्वत्र सुगंध ही बिखरते हैं।
सत्संग का एक मुख्या उद्देश्य दुराचरण का त्याग और सदाचरण का विकास है। स्वामी रामसुखदास जी का कहना है की अआप सत्संग करते हैं तो दुनिया आपसे अच्छे बर्ताव की आशा रखती है। सत्संगी का बर्ताव अच्छ न हो तो लोगो को धक्का लगता है। किसी को भी मेरी वजह से तकलीफ न हो- यह विचार पक्का हो जाए तो येही सत्संग की सार्थकता है।
भाव शुधि के लिए सत्संग सर्वोत्तम है। इस भाग दौड़ और संघर्षपूर्ण जीवन में सच्चे सत्संग का मिलना ही अपनेआप में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। जो कभी निष्फल नही जाती। बस हमें करना इतना ही हा की संतो के समीप उनके सत्संग में बैठ कर म उनके सारगर्भित प्रवचन मन में, मश्तिशक में समा जाने दे। हृदय में समा जाने दे। ऐसे जैसे गुड में मीठास, फूल में खुशबु, और वायु में ओक्सिगें । इसी में सत्संग की सार्थकता है। तभी हमारी विवेकशीलता विकसित होगी, व्यतित्व परिमार्जित हगा जीवन सुरभित। बस संत सच्चे मिल जाए।
आए तेरे द्वारे पे हम झोलियाँ पसार के
रखियो हमारी लाज ये ही हम पुकारते
आए तेरे द्वारे पे ...........
जीवन की डोर बहुत कमजोर है
टूट न जाए राह में तूफां का ज़ोर है
दे दो सहारा मेरे पापों को भुला के
रखियो हमारी लाज ..........
परम हितकारी सदा सुखकारी
दाता मेरा है पूर्ण भंडारी
आए हम दर पर झोलियाँ फैला के
रखियो हमारी लाज ........
तेरे बिना दाता मेरा कोई न जहाँ में
अपना बना कर मुझे करदो एहसान ये
करे फरियाद आनंद दीदार दे
रखियो हमारी लाज....
तर्ज़- चुप चुप खड़े हो जरूर कोई बात है