आँखों की ज़ुबाँ थी पर इज़हार नहीं था,
हम दोनों में कोई शोक सा करार नहीं था।
दूर हो कर जो तड़पे हैं तेरे दीदार की खातिर,
अब कैसे मै कहूँ मुझे प्यार नहीं था।


हम दोस्तों को भुलाते नहीं हैं,
मगर ये बात जताते नहीं हैं।
दोस्तों को हमेशा रखते हैं याद,
हम भुलाने के लिए दोस्त बनाते नहीं हैं।


जिंदगी मोहताज़ नहीं मंजिलों की,
वक़्त हर मंजिल दिखा देता हैं।
मरता नहीं कोई किसी के लिए,
वक़्त सबको जीना सीखा देता हैं।


2 Comments:

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

नहीं-नहीं! आप इतनी गम्भीरता से कह रहे हैं, ज़रूर रहा होगा. चेक करा लीजिए, कहीं अ भी भी तो नहीं रह गया. इसका वाइरस बडा खतरनाक टाइप का होता है

Uttama said...

उम्दा कवि हैं आप रवि जी.. मेरी शुभ कामनाएँ