ऐसे रुखसत होंगे तेरे दर से ये कभी सोचा न था


वो मिटा देंगे अपने हर ज़िक्र से कभी सोचा न था

खुद कि निगाह में कोई कमी न थी अपनी वफा में

बस ये ही खता है उसकी नज़र से कभी सोचा न था

अपने दिल में लिए उसे हम अपना ही समझते रहे

उसके दिल में हम किधर हैं ये तो कभी सोचा न था!

2 Comments:

संजय कुमार चौरसिया said...

kam shabdon main, sundar

http://sanjaykuamr.blogspot.com/

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत सुंदर.....