"फूल"



खुशबू के लिए



"प्यार"



निभाने के लिए



"आंखें"



दिल चुराने के लिए



...और यह मेरा संदेश आपको



"मेरी याद"



...दिलाने के लिए॥



"हैप्पी न्यू ईअर"





...नए वर्ष की हार्दिक शुभ कामनायें



...रवि श्रीवास्तव
रह रह के रात बुलाती अपने आगोश में
पर नींद आँखों से दूर ही रहती है
बिस्तर की सिलवटें भी चुभती हैं जुदाई में
और रूह भी तार तार होने लगती है

तुझ से दूर रहकर में जियूं तो कैसे
जाँ भी जिस्म से रूठने लगी है
हर बार तेरे वादे पे ऐतबार करता हूँ
हर बार रूह छलनी होने लगती है

तेरे न आने की कसम भी टूटती नहीं
सहर भी होती नहीं, रात भी कटती नहीं
इक अज़ब सी सिहरन फिजाओं में फैलने लगती है
जब मेरी धडकनें भी बेज़ुबां होने लगती हैं।

वो कहके चले इतनी मुलाकात बहुत है,


मैंने कहा रुक जाओ अभी रात बहुत है।


आँसू मेरे थम जाए तो फिर शौक से जाना,


ऐसे में कहाँ जाओगे बरसात बहुत है।


चाहे आप इतिहास में कितने पन्ने पीछे क्यों न चले जाएँ, वेश्या-वृत्ति कभी भी भारत में व्यवसाय या व्यापार के रूप में नहीं रहा है. भारतीय संस्कृति में इसे सदैव निम्न दृष्टि से देखा गया है. अब अगर इसे कानूनी मान्यता दे दी गयी तो भारतीय समाज से बड़ी तेजी से नैतिकता का ह्रास होने लगेगा. व्याभिचारी प्रवित्ति के लोगो को तो जैसे खुली मनमर्जी करने की आजादी मिल जाएगी. जो काम अब तक छुप-छुप कर हो रहा था वह अब खुले आम हो जाएगा. समाज में औरतों, लड़कियों की स्थिति और निम्नतर हो जाएगी.

मान्यता देने का सीधा मतलब यह निकलेगा कि हम इस सामाजिक कलंक को मिटाने में असमर्थ है. कोई भी व्यक्ति अपनी मां, बहन, बेटी को एक वेश्या के रूप में नहीं देखना चाहता तो फिर दूसरी औरत को वेश्या के रूप में क्यों देखना चाहता है. सरकार महिलाओं की सुरक्षा तो ठीक से कर नहीं पाती, उल्टे उसे खुलकर सामान्य उपभोग की वस्तु की तरह इस्तेमाल करने की क़ानून बनाने की बात होने लगी है. वेश्यावृत्ति को क़ानूनी मान्यता देने से कई सामाजिक संकट उत्पन्न हो जाएँगे. कई लोग इस धंधे को अपनाने के लिए प्रेरित होंगे. एड्स के मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी होगी.

मुझे तो इस बात पर आश्चर्य है की भारत का सर्वोच्च न्यायालय इसे कानूनी रूप देने के लिए उद्द्यत दिखाई दे रहा है। मेरी राय में तो इसपर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए. तभी समाज में स्वच्छ एवं नैतिकता पूर्ण वातावरण कायम रह सकेगा. जहां तक इस धंधे पर प्रतिबन्ध लगने से इससे सम्बंधित लोगो के बेरोजगार हो जाने की बात है तो सरकार या सर्वोच्च न्यायालय इन लोगो को कोई दूसरा अच्छा काम उपलब्ध क्यों नहीं करवाती?


मुझे नहीं लगता की कोई भी औरत अपनी स्वेच्छा से इस धंधे में कदम रखती है। उसे कुछ लोग वेश्यावृत्ति करने को मजबूर करते हैं. ये बात और है की जो औरत एक बार इस दुनिया में कदम रख देती है, उसे इससे बाहर निकलने के सभी रास्ते बंद नज़र आते हैं, जिसके लिए हमारा समाज भी कम जिम्मेदार नहीं है. शायद यही वजह है की बाद में ये सेक्स-वर्कर इसी धंधे को करते रहना चाहते हैं, ताकि उनका जीवन-यापन होता रह सके।

नोट: अगर आप इस लेख को पढ़ रहे हैं तो अपनी प्रतिक्रिया ज़रूर देवें.



उसकी याद में तड़पता रहता हूँ हर पल,

उससे कहो मेरे दिल से अपना नाम मिटा जाए।


अरसा हुआ है चाँद को देखे हुए,

उससे कहो अपना चेहरा दिखा जाए।



उससे कहो एक बार भूल कर आ जाए,


जो बीती है उस पर वो सुना जाए।


हंस हंस के गम छुपाने का हुनर,


उससे कहो हमको भी सिखा जाए।

सुलगती याद
दहकता ख्याल
तपता बदन
तेरे प्यार ने मुझको
क्या क्या दे दिया
भीगी आँखें
भर्राया गला
लरजते होंठ
तेरी जुदाई ने मुझको
तेरा बीमार बना दिया
सूनी निगाहें
खामोश सदाएं
उदास फिजाएं
तेरे वादे ने मुझको
दीवाना बना दिया
बेकाबू धडकनें
बहकते कदम
लडखडाती जुबां
तेरे अफ़साने ने मुझको
आवारा बना दिया
बदहवास हवाएं
उमड़ती घटाएं
ठिठुरता सूरज
तेरे इंतज़ार ने मुझको
पत्थर बना दिया।
एक बुलबुला ज़रा सा कहीं उभरता है
तो खुद को सागर ही समझने लगता है
दूसरों को तो बात बात मे दिखाते हैं बेसबब
पर कोन है जो अपना आइना खुद बनता है
फूल कब का खिलना भूल गए होते
कोई तो है जो कांटो को नियंत्रित करता है
तिनको के आशियाने कब के बिखर गए होते
कोई तो है जो आँधियों के रुख बदलता है
व्यर्थ क्यों गवाएं बेहिसाब नहीं है ये दौलत
कोई तो है जो साँसों का हिसाब रखता है।

धुँधली यादें, बिखरे सपने
गुमसुम चेहरे चारों ओर
सब के मुँह में जुबाँ है लेकिन
लबों पे पहरे चारों ओर
सब के हाथों में दिखते हैं
सौ उम्मीदों के परचम
पर अनजाने डर से सब के
कदम हैं ठहरे चारों ओर
आँखों में आँसू, पाँवों में छाले
मन में मलाल-ऐ-मजबूरी
लगता है जैसे, सब के दिलों में
घाव हैं गहरे चारों ओर
तुम भी शायद यही कहोगे
देख के बढ़ते जुल्मोसितम
जंग में केवल बचे हैं
अंधे,गूंगे, बहरे चारों ओर।

मैं तुम पे
मोहित हो रहा हूँ ।

आँखों में
बालों में
और तुम्हारे गालों में,
आलोकित हो रहा हूँ ।

बोली में
ठिठोली में
माथे की रोली में,
शोभित हो रहा हूँ ।

आवों में
हवा में
इस बिखरी छटा में,
तिरोहित हो रहा हूँ !

०००० [] राकेश 'सोहम'


एहसास होगा जब हम तुमसे दुर हो जायेंग़े
आंखो मे आंसू होंग़े पर नज़र ना आयेंगे
कोई साथ ना दे तो हमे याद करना
आसमान मे भी होंग़े तो लौट आयेंग़े

उनके नैनो के आशियाने मे हम कही खो से गये
उनकी हसीन बाहो मे हम कही सो से गये
अब तो प्यार की लेहरो ने हमे कुछ भीगा सा दिया
और उनके प्यार का सपना कुछ सजा सा दिया
भूख से बिलखते बच्चे को देख
उन्होँने उदारता दिखाई
एक मानव कल्याण समिति बनाई
और
भूख पर विस्तृत चर्चा कराई
ठण्ड से ठिठुरते, दांत किटकिटाते
वस्त्रहीन बच्चे की नग्नता पर
भी उन्होँने गोष्ठी आयोजित कराई
और
नैतिकता की आवश्यकता समझाई
गरीब, असहाय बीमार बच्चे की
रुग्णावस्था पर
उन्होँने बहुत चिंता जताई
और
इसे स्वस्थ्य के प्रति घोर लापरवाही बताई,
बेसहारा, बेघरबार बच्चे की
दयनीय स्थिति पर आख़िर
उनकी आँख नम हो आई
और
उन्होँने भारी हृदय से उसकी पीठ थपथपाई
और अखबारों मे अपनी फोटो खिंचाई।
प्रशंशनीय है उनकी दयालुता और उदारता,
पर
वो निरीह मासूम बच्चा पहले से भी
ज्यादा भूखा, ठिठुरता, निराश्रित अभी भी
खडा है राह मे सूनी आँखों से निहारता।

है इस दिल को तुझसे शिकवे और शिकायत भी बहुत
सनम मेरे फिर भी है मुझको तुमसे मोहब्बत बहुत
हर घडी रहता है तस्स्वुर मे तू ही
ए मोहब्बत मेरे तेरी इतनी इनायत ही है बहुत
हर पल तन्हाईयाँ ही साथ थी कभी
दिल-ए-मेहफिल मे अब तेरी इतनी मौजुदगी ही है बहुत
कभी आ जाते है लब पे ये बोल हो जाऊ दुर तुझसे
इस दिल को मगर तेरी ज़रूरत भी है बहुत
जुदाई भी तेरी ही देखी है और रंग़-ए-मेहफिल भी
तेरे दिल मे बसा मेरे प्यार का एक नुर ही है बहुत
जब पी ही ली है ज़हर-ए-मोहब्बत तो अब क्या
कभी सुना था की इस ज़हर मे होती है लेज़्ज़त बहुत
हर खुशी और गम से नवाजा है खुदा ने मुझे
जानू तेरी बाहो मे फना होने की एक तम्मना है बहुत

अब
कह तो चुके हैं
सब कुछ,
फ़िर ये मन
अनमना सा
क्यों है ?


हम
चल तो चुके हैं
उजाले की ओर,
फ़िर ये अँधेरा
घना सा
क्यों है ?

रह तो
रहे हैं साथ
कब से,
फ़िर ये भ्रम
बना सा
क्यों है ?

सब
उठा तो चुके हैं
सितम ज़माने के,
फ़िर ये खंज़र
तना सा
क्यों है ??
[] राकेश 'सोहम'
अतीत के झरोखों से
जब भी मैं
झांकता हूँ
तो पाता हूँ
की एक व्यर्थ की
आपाधापी में
किया तो बहुत कुछ
पर
पहुंचा कहीं नहीं
दौड़ - धूप भी
बहुत कर ली
पर पहुंचा कहीं नहीं
कोल्हू के बैल
की तरह
परिधि पर ही
व्यर्थ घूमता रहा
तमन्नाओं को
तराशने मे लगा रहा
उम्मीदों के बहाव मे
बहता रहा
फ़िर भी
मकाँ मकाँ ही रहा
घर बन नही पाया
रिश्तों का उपवन
मुरझाता गया
मधुबन बन नही पाया
उम्र का बोझ ढ़ोते ढ़ोते
ठोकरें खाते खाते
जीवन का तो अंत आया
पर
हसरतों का फ़िर भी मुकाम ना पाया।

पडा रहू मैं सदा सदा

भगवन तेरे चरणों मे

यही तमन्ना मेरे मालिक

दम निकले तेरे चरणों मे

तुम तरु मैं लतिका निर्बल

लिपटा लो अपने चरणों मे

बनकर रेत का नन्हा कण

द्वारे पे तेरे पडा रहू

सफल अपना जीवन कर लू

लिपट रहू जब चरणों मे

इस पड़ाव पर
मन के मरुथल में
तुम्हारी चाहत के
कमल खिल गए हैं ।

सोचता हूँ
छीन लूँगा तुम्हें
इस जमाने से ।

लेकिन
जब भी
ऐसा सोचता हूँ,
बाँहें
पूरे योवन से
फडफडा उठातीं हैं
मुट्ठियाँ
सख्त हो जातीं हैं
और .......

और
उनमें दबा
साहस
सरकने लगता है !
सरकता ही जाता है
भुरभुरी
रेत की तरह !!
[] राकेश 'सोहम'

ये क्या कह डाला तुमने बातो ही बातो मे
बेकरार दिल को सुकुन आ गया है अभी-अभी
रुख बहारो का कुछ बदला-बदला सा है
मुझको तेरा प्याम मिला है अभी-अभी
एक नुर से जगमगा रहा है घर मेरा
उम्मीद का चराग जला है अभी-अभी
खिलती हुई कलियो ने दी है ये खबर
दिल का हसीन राज़ खुला है अभी-अभी
खिलती हुई कलियो ने दी है ये खबर
दिल का हसीन राज़ खुला है अभी-अभी
राहो मे बिछाये है फूल बहारो ने
यूँ जो मेरे साथ तू चला है अभी-अभी
फलक से चाँद उतर आया है ज़मीन पर
आंखो मे तेरे प्यार पाया है मैने अभी-अभी
हमने सजा ली है अब तो अपने दिलो की दुनियाँ
मुद्दतो बाद आया है दिल को चैन अभी-अभी
साँसों की आंच से कतरा कतरा रात पिघलती रही
नींद भी जाने क्यो दूर खड़ी डरती ही रही
खामोशियाँ ओढ़ कर मैं तो रात भर जागा किया
तेरे आने की उम्मीद मे पलकें खुली ही रही
खिड़की से चाँद भी रह रहकर दर्द से मुझको देखा किया
चांदनी भी लपटों सी तन को जलाती रही
तेरे क़दमों की आहटें पल पल मैं सुनाकिया
सरसराती हवाएं इठलाती इतराती चिढाती रही
अन्धेरा घना साँयसाँय सा डराता ही रहा
यादें तेरी जुगनुओं सी फिजां चमकाती रही।
तेरे आने की उम्मीद मे पलकें खुली ही रही।

किनारो पर सागर के खज़ाने नही आते,
फिर जीवन मे दोस्त पुराने नही आते।
जी लो इन पलो को हस के जनाब,
फिर लौट के दोस्ती के ज़माने नही आते।

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रिश्तो की भीड मे भी वो गुमनाम रह गया,
जाने क्या दिलकश शेर वो मुझसे कह गया।
आया ना लौट कर वो फिर कभी इस मोड पर,
आँसू की तरह आँखों से निकल कर बह गया।

जीवन के साज़ पर गीत रोज़ नए नए गाता हूँ मैं
गाते गाते हुआ बेहाल कभी बेहाल होकर गाता हूँ मैं
छोटे छोटे तराने खुशियों के जब भी गाने लगता हूँ
बेदर्द बड़ा ज़माना है जाने क्यो चिल्लाने लगता है
ऊंचे सुर हैं अभिलाषाओं के कैसे अलाप लगाऊंमैं
स्वार्थों के कोलाहल मे जाने क्यो साज़ ही बेआवाज़ हो जाता है

चाहा बहुत जिंदगी की महफ़िल मे सुख के नगमे गूंजे
नफरत की मारी इस दुनिया मे जाने क्यो स्वर ही बिखर जाता है
दूरियां दिलों की मिटाना चाहूँ, नगमे प्यार के गाना चाहूँ
संगदिल है दुनिया जाने क्यो कंठ मेरा ही अवरुद्ध हो जाता है
कठिन धुनें और रागें हैं इस जीवन की , लाख जतनकरो
बेतरतीब बिखरते रिश्तों मे जाने क्यो साज़ ही नही सधपाताहै
फ़िर कैसे राग बहारों के इन फिजाओं मे फैंलें
पत्थरों के घरोंदो मे आदमी तो है जाने क्यो
इंसान ही नही मिल पाता है

दिल की मेरे बेक़रारी मुझसे कुछ पुछो नही
शब की मेरी आह-ओ-ज़ारी मुझसे कुछ पुछो नही
बार-ए-गम से मुझपे रोज़-ए-हिज्र मे इक इक घडी
क्या कहुँ है कैसी भारी मुझसे कुछ पुछो नही
मेरी सुरत ही से बस मालूम कर लो हम-दमन
तुम हक़ीक़त मेरी सारी मुझसे कुछ पुछो नही
शाम से ता-सुबह जो बिस्तर पे तुम बिन रात को
मैने की अख्तर-शुमारी मुझसे कुछ पुछो नही
हम-दमन जो हाल है मेरा करुंगा गर ब्यान
होगी उनकी शर्म-सारी मुझसे कुछ पुछो नही
सूरज की प्रखर तेजी मेंभी
गुलमोहर का खिलना मन्को आह्लादित करता है
सर्द हवाओं के झोंको मे भी
फूलो का खिलखिलाना मन को सुरभित करता है
रातों के स्याह अंधेरों मे भी
सितारों का जगमगाना मन को उल्लासित करता है
तेज़ तुफानो के दौरों मे भी
वृक्षों का लहलहाते रहना मन को पुलकित करता है
हैरान हूयह देख कर की इन पर क्यो
मौसम की तल्खियों का असर नही होता है
न कुछ कहते, सब कुछ सहते ,
हरदम प्रफुल्लित हैं रहते
खुशबु लुटाते , रौशनी बिखराते
छाया सघन है फ़िर भी देते रहते
अपने स्वभाव की मधुरता और मौलिकता
कभी नही खोते , हर मुश्किल मे सहज ही रहते हैं
स्वभाव की महक फैलाते रहते हैं
अस्तित्व अपना बनाए रखते हैं
और कैसे जीते हैं सहज सुरभित जीवन
इंसान को ये अनूठा ढंग बताते हैं
पर इंसान अक्सर निर्बल हो जाता है
ज़रा सी तपिश मे भी आपे से बाहर हो जाता है
मुसीबतों मे अपनी मौलिकता तो खो ही देता है
और कमज़ोर हो कर अपने अस्तित्व के संघर्ष मे
अक्सर नाकाम हो जाता है
पर फ़िर भी प्रकृति के इन प्रेरक प्रतिनिधियों से
जीने की अदा नही सीखता है
जो विपरीत हवाओं मे भी अपने होंसलों को
बनाए रखते हैं
और अपनी मौलिकता सहजता और मधुरता से
अंधेरों और तुफानो को भी पार कर जाते हैं
और अपना अस्तित्व भी बनाए रखते हैं।
इतने मजबूर थे ईद के रोज़ तक़दीर से हम
रो पडे मिलके गले आपकी तस्वीर से हम

राहो की ये शाम और यादो का ये समा
अपनी पलको मे हरगीज़ सितारे ना लायेंगे

रखना जरूर सम्भाल के तुम कुछ खुशियाँ मेरे लिये
मै लौट के आंऊगा फिर ईद मनायेंगे

देख कर ईद का चाँद ये दुआ मांग़ रहे है
ए खुदा उन आंखो मे ये चाँद हमेशा चमके

पिछली ईद मे जितना याद किया था उन्हे
या खुदा इस साल ईद सिर्फ याद मे ना गुज़रे
कह के देख लिया, चुप रह के भी देख लिया,
क्या करे जब उन्होंने ही खामोश कर दिया.
उनसे बात करने के लिए हम बहुत तड़पते है,
पर क्या करे जब हमारे बात करने से वो भड़कते है.

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हकीकत समझो या अफसाना
बेगाना कहो या दीवाना
सुनो मेरे दिल का फ़साना
तेरी दोस्ती है मेरे जीने का बहाना

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हर कोई प्यार के लिए रोता है,
हर कोई प्यार के लिए ही तड़पता है,
मेरे प्यार को गलत मत समझना
प्यार तो दोस्ती में भी होता है .
नैनो मे बसे है ज़रा याद रखना,
अगर काम पड़े तो याद करना.
मुझे तो आदत है आपको याद करने की,
अगर हिचकी आए तो माफ़ करना.

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ये दुनिया वाले भी बड़े अजीब होते है,
कभी दूर तो कभी क़रीब होते है.
दर्द ना बताओ तो हमे कायर कहते है,
और दर्द बताओ तो हमे शायर कहते है.

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ख़ामोशियों की वो धीमी सी आवाज़ है,
तन्हाइयों मे वो एक गहरा राज़ है.
मिलते नही है सबको ऐसे दोस्त,
आप जो मिले हो हमे ख़ुद पे नाज़ है.
वर्तमान सन्दर्भ मे 'खेल' शब्द कोरी, निर्रर्थक क्रियाओं को ही पेश करता है,जो प्रकटत उद्देश्यहीन होते हुए भी भीतर से किसी उद्देश्य को पूरा करता है, जो आह्लादकारी और मानवीय व्यक्तित्व को उन्नत करने वाला है। वस्तुत ये सारी क्रियाएं जो उपयोगिता की दृष्टि से सर्वथा मूल्य विहीन प्रतीत होती है, वास्तव मे निरर्थक और निर्मूल्य नही है।
'कार्य' शब्द उन क्रियाओं को प्रस्तुत करता है जो हमारे जैविकीय अस्तित्व को बनाए रखने मे सहायक है तथा वह अन्य व्यवहारिक प्रयोजनों और स्वार्थो को सिद्ध करता है। सभी उपयोगिता रखने वाली क्रियाओं मे तो व्यक्ति अपने व्यक्तित्व पर पड़ते हुए बाहरी दबावों से नियंत्रित होकर ही कार्य कर पाता है। किंतु खेल का संम्बंध उन सभी क्रियाओं से है, जो हमें हमारी बंदिशों से मुक्त करती है,फलस्वरूप सहज है और भीतर से प्रेरित भी।
तो क्या आप खेलने के लिए समय निकालते हैं? अगर नही तो आप जीवन की एक अनमोल खुशी से वंचित हैं। चोंक गए ? चौंकिए नही, यह सच है। हम मे से अधिकाँश व्यस्क यह सोचते हैं की अब हमारा अपना एक परिवार है, बच्चे हैं, फ़िर कारोबार, घर-गृहस्थी के कामो से फुर्सत ही नही मिलती। और इस उम्र मे खेलना हमें क्या शोभा देता है? खेलना तो बच्चों का काम है।
अगर आप ऐसा सोचते हैं तो आप जीवन के सहज सुलभ किंतु आनंदायक पलों को चूक रहे हैं। क्या आप जानते हैं की वयस्कों के लिए भी खेलना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना बच्चों के लिए। यह स्वास्थय के लिए लाभदायक तो है ही, साथ ही मौज मस्ती के ये कुछ पल-छिन आपको रोजमर्रा के तनावों से राहत दिलाने मे सहायक भी है। ध्यान रखिये की रोज़मर्रा के दबावों और तनावों से राहत पाने के लिए सबसे पहले खेल फुर्सत के क्षण उपलब्ध करवाता है, जिसकी आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी मे ज्यदा जरूरत है।
सामान्यत दिनभर की भागदौड़ के बाद लोग थके-हारे से घर लौटते हैं। ऐसे मे वे सब कुछ भुलाकर फुर्सत के क्षण निकालना चाहते हैं ताकि दिनभर के दबावों और तनावों से राहत महसूस कर सकें। किंतु उन्हें समझ मे नही आता की यह कैसे सम्भव होगा। इस उलझंभरि स्थिति से उबरने के लिए किसी भी तरह के खेल खेलने से आपको तनावों से राहत पाने मे सहायता मिलेगी और फुर्सत के ये क्षण आपके जीवन मे आशा और उमंग भर देंगे। व्यक्ति अकेले मे खेलेया परिवार के साथ तो भी यह उसके स्वास्थय के लिए घुट्टी का काम करेगी अगर परिवार के साथ खेले तो पारिवारिक रिश्तों मे सुहृदयता मधुरता बनी रहेगी।
यह भी देखने मे आया है की नई तकनीकी के विकास से वयस्कों और बच्चों मे कंप्यूटर आधारित खेलो मे रूचि बढती जा रही है। क्योंकि ये रोचक सरस और रहस्य रोमांच से भरपूर होते हैं। इन्हे खेलने से आपकी मेधाशक्ति और तार्किकता भी बढती है। to यह सोचना की खेल सिर्फ़ बच्चों के लिए हैं, वयस्कों के प्रति नाइंसाफी होगी।
ऐसा पाया गया है की कई व्यस्क गम्सखेलने मे अधिक प्रफुल्लित होते हैं और खेलते समय अपनी बचपन की यादे ताज़ा करके आनंदित होते हैं। यह तथ्य है की इस तरह वे अपने को तरोताजा महसूस करते हैं। और कुछ समय के लिए अपनी निजी और कारोबारी समस्याओं को भूल कर तनाव मुक्त हो जाते हैं। और खुशी महसूस करते हैं।
इसलिए खेल सभी के लिए जरुरी है। यह उपयोगी है, आनंद प्रदाताहै। खेल मे व्यक्ति सही अर्थों मैं अपनी स्वतंत्रता और आत्मसंतुष्टि पाता है वेसे भी जीवन अपने आप मे एक खेल है जिसमे हम सब खिलाडी हैं। इसलिए हर उम्र मे खेलने के लिए समय अवश्य चुराइए।
ज़िन्दगी के चन्द लम्हे ऐसे होंगे

जब तुम किसी को चाहोगे लेकिन

तुम्हे चाहने वाला कोई ना होगा

जब तुम किसी का इन्तेज़ार करोगे लेकिन

तुम्हारा इन्तेज़ार करने वाला कोई ना होगा

जब सितारे तो होंगे लेकिन

तुम्हारा चाँद कही और होगा

जब आंखो मे आंसू तो होंगे लेकिन

इन्हे पोछने वाला कोई ना होगा

सो ज़िन्दगी के इन लम्हो मे गर कोई

प्यार, से बुलाये तो चले जाना क्योकि

शायद बाद मे कोई बुलाने वाला ना हो
यह सच है की
हर ज़न्मदिन
खुशिया तो लाता है
पर क्या जीवन को कुछ
दूर नही ले जाता है?
या
शायद मृत्यु को कुछ पास
ले आता है
क्योंकि सच तो ये है की
उम्र का
एक वर्ष कम हो ही जाता है
हम इस विचार से
हमेशा बचते हैं
जाने क्यों सच से डरते हैं
वास्तविकता से हट-ते हैं
भ्रमो मे ही जीते हैं
आशाओं के मरूध्यानोमे ही
भटकते रहते हैं

स्वर्णिम दिवास्वप्नों मे
ही उलझे रहते हैं
चार दिन की जिंदगी मे
दो दिन तो
आकांक्षाओं मे बीतते हैं
और बचे दो दिन
उन की पूर्ति की प्रतीक्षा
मे कटते हैं
अंत मे बस खाली
हाथ ही रहते हैं।
सूनी
हर गली पर
एक आस का दीया,
नयनों की
एक झलक से
तुम ने जला दिया ।

मन की यह
अमावस
उजाली हो गई,
परम उज्जवल
पर्व सी
दीवाली हो गई ।

सूखे
इस ठूंठ को
आतिश बना दिया ।

राकेश 'सोहम'
राजनीति का अर्थ महज सत्तासुख हो गया है
कैसे भी हो, हथिया ले राजगद्दी
अघोषित ये लक्ष्य महान हो गया है
व्यक्तित्व की गरीमा खोई आज के इस दौर मे
खून सस्ता और पानी महँगा हो गया है
ख़ुद के आईने मे जिसने कभी देखा नही ख़ुद को
दूसरो के लिए आज वो ख़ुद आइना हो गया है
हित-अनहित, जनहित की जिसने कभी परवाह नही की
ऐसा पथभ्रष्ट आज पथ प्रदर्शक हो गया है
जन जन की भावनाओं का शोषण आज चरम पर है
कैसे नाखुदा आज बड़ा बेदर्द हो गया है
दूसरो के सर पर रख कर पाँव
आकाश छूनेकी आकांक्षा मे
आदमी क्या से क्या हो गया है।

अश्क गिरते हैं तो हर साँस पिघल जाती है
दे कर एक दर्द नया हर शाम ढल जाती है
तुझको सीने से लगा कर मिले जन्नत का सुकून
तुझसे बिछड़ के मेरी जान निकल जाती है
इश्क कुछ ऐसे मिटाता है निशान-ऐ-हस्ती
जैसे के रात उजाले को निगल जाती है
तू अगर दिल पे मेरे हाथ ही रख दे तो
टूटी साँस भी कुछ देर संभल जाती है
ज़ख्म भरता ही नही तेरी जुदाई का मगर
फिर तेरी याद नया दर्द उगल जाती है

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दिल में है गम और हमे है गम से प्यार
आंखों में है नमी और वही है अपना श्रृंगार
दर्द का है कुछ ऐसा आलम की जीना है दुश्वार
और साँसे कब तक चलेगी वो भी नही रहा ऐतबार



पलकों पे आँसुओं को सजाया न जा सका

उस को भी दिल का हाल बताया न जा सका

ज़ख्मों से चूर चूर था यह दिल मेरा

एक ज़ख्म भी उसको दिखाया न जा सका!

जब तेरी याद आई तो कोशिश के बावजूद

आँखों में आँसुओं को छुपाया न जा सका!

कुछ लोग ज़िन्दगी मैं ऐसे भी आए हैं

जिनको किसी भी लम्हे भुलाया न जा सका

बस इस ख़याल से कहीं उसको दुःख न हो

हमसे तो हाल-ऐ-गम भी सुनाया न जा सका
ऐसा क्यो होता है
सुख तो धुंए सा क्षण भर मे ही उड़ जाताहै
दुःख चिंगारी सा हमेशा सुलगता ही रहता है
ऐसा क्यो होता है

आशा तो बिजली की रेखा सी क्षणिक ही कौंधती है
निराशा अंधेरे सी सदा ही मन को घेरे ही रहती है
ऐसा क्यो होता है

हंसना भोर की लाली सा पल मे ही विदा हो जाता है
रोना जेठ की दुपहरी सा देर तक डटाही रहता है

ऐसा क्यो होता है

किनारे तक पहुंचतेही कभी किश्ती
किसी पत्थर सी डूब जाती है
कभी तुफानो से टकराती हुई भी
फूल सी किनारे लग जाती है

ऐसा क्यो होता है

कभी कोई करीब होकर भी सितारे सा
बहुत दूर लगता है
कोई दूर होकर भी मीठी याद सा
दिल के करीब रहता है

ऐसा क्यो होता है

कभी तो शब्द किसी के अमृत सरीखे
मरते को भी जिला देते हैं
कहीं मौन भी किसी का मुखर हो
ज़हर सा जीते जी मार देता है

ऐसा क्यो होता है

प्रिये से मिलन सदा फूलो की सेज सा
मन को गुदगुदाता है
और बिछुड़ना हमेशा ही काँटों सा
तन मन मे गड़जाता है

ऐसा क्यो होता है

कभी तो कोई रौशनी मे भी
कहीं भटक भटक जाता है
तो कभी कोई अंधेरे मे भी
मंजिल तक पहुँच जाता है

ऐसा क्यो होता है

जीवन कभी दर्द तो कभी दुआ बन जाता है
ऐसा क्यो होता है ऐसा क्यो होता है
मत पूछ आलम बेचैनियों का क्या होता है
जब महबूब दिल मे तो होता है
पर निगाहों से दूर बसताहै
इक हूक सी दिल मे उठती है
और जिस्म काँपता रहता है
जब इंतज़ार की घडिया रुलाती हैं
दिल हर पल सिसकता रहता है
तब कई रंग उभरते चेहरेपे
और जिस्म सिहरता रहता है
जब नाउम्मीदी दर्द जगाने लगे
आशाओं की लो थरथराने लगे
तब दर्द सा दिल मे उठताहै
और जिस्म बस तडपता रहता है
जब हवाएं भी उसकी साँसों सी महक उठे
हर आहटउसी की पदचाप लगे
तब धड़कने भी बेकाबू हो जाती हैं
और जिस्म बस मचलता रहता है
जब यादों के अक्स बिखरने लगे
जिस्म से जान भी जाने लगे
तब लहू भी ज़मनेलगता है
और जिस्म पिघलने लगता है
और जिस्म पिघलने लगता है
पत्थरों का सीना चीरकर
जिंदगी के झरोखे से झाँकती
एक शिशु सुकोमल मन
जीवन के भावी संघर्ष से अनजान
पत्थरों के बीच से
एक रोज बाहर निकला
चेहरे पर हरा-भरा इतना
ख़ुशी यूँ पर्वत को हरा दिया
मन में उमंग लिए
छूने को आसमान
सितारों के बीच पहचान
बनाने की सिद्दत से जिद्द.
तभी सुनाई पड़ीं कुछ आवाजें
तभी सहसा एक धमाका
नन्ही जिंदगी सहम गयी
कुछ सोच न पाया क्या हुआ
चारों ओर बस धुल ही धुल
निश्चल पत्थर डोल गए
जिस आसमान की चाहत थी
उसी ने फिर बरसाए अंगारे
झुलस गया सुकोमल तन
झेल गया घायल मन
वह वितीर्ण वेदना की पीड़ा
इस पर्वत में भी शायद आज
लग गया सभ्यता का कीड़ा
चाहत को तेरी छुपा कर जीये जा रहा हूँ मै

खुद को हसी फरेब दिये जा रहा हूँ मै

तू बेवफा है फिर भी मेरा हौसला तो देख

तुझ पर वफा निसार किये जा रहा हूँ मै

खामोश हूँ की तू ना हो रुसवा जहाँ मै

खुद अपने लबो को सिये जा रहा हूँ मै

और बट तेरा तराश के पूजुगा इसलिये

पत्त्थर तेरी गली से लिये जा रहा हूँ मै

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सारी उम्र आंखो मे एक सपना याद रहा

सदियाँ बीत गयी पर वो लम्हा याद रहा

ना जाने क्या बात थी उनमे और हममे

सारी मेहफिल भुल गये बस वोहि एक चेहरा याद रहा
दुश्मनो से भी बढकर, दोस्त की रुसवाईयाँ

हूँ हुजुमे सादगी मे, साथ है तन्हाईयाँ

हो ना दिल मे जब किसी के वास्ते अच्छे ख्याल

ऐब बन जाती है तब, इंसान की अच्छाईयाँ

लग रहा है आदमी दिलकश समंदर की तरह

कितना खारापन है इसमे, साथ मे गहराइयाँ

फक्र का सूरज ठहर जाता है, आकर सिर पे जब

छोटी हो जाती है कंध से प्यार की परछाईयाँ

मै बहुत छोटा हूँ, पर इतना भी छोटा तो नही

आपके कंधे से बढी है , ये मेरी उचाईयाँ

जब उतर जाते है शराब के घुंट सीने मे

लेने लगता आईना-ए-दिल भी तब अंगडाइयां
पत्रों से
अब दिल
बहलाया नहीं जा सकता ।

प्यार भरी पाती
भावों का संगम
जीवन का
परिणय संवाद अब
झुठलाया नहीं जा सकता ।

कोमल भावनाओं की महक,
हर शब्द में
मिलन की कसक ।

प्यार की सौगातों की
लम्बी कथा,
कह गई पाती
सारी व्यथा ।

प्यार के उपहार में
शब्दों के जाल में, मैं
जब-जब भटक जाता हूँ;
सच कहूं
क्या करू
कुछ समझ नहीं पाता हूँ !
[] राकेश 'सोहम'


दिल के हर लफ्ज़ो को ब्यान करते,


खुशियाँ और गम को समेटते ये फूल


हर हाल मे जीना सिखाते,


मौसम के हर रंग को सहना सिखाते ये फूल।


गम-ए-दिल को हसना सिखाते,


नई उम्मीद और उमंग जगाते ये फूल


आँखों से उतर कर दिल को सुकुन पहुँचाते,


चंचल हवाओ के संग उड जाना सिखाते ये फूल।


दिलो के दरमिया दुरियाँ मिटाते,


राह चलते राही का दिल लुभाते ये फूल


फिज़ाओ को महकाते और राहो मे बिछ जाते,


दिलरूबा के होठो पे मुस्कुराहट लाते ये फूल।




चाँदनी रात
और मेरे हाथो मे तुम्हारा हाथ
नूर ही नूर बिखरा है
कितनी सुहानी है ये रात
सबसे जुदा होकर हम
तेरी धडकनो मे समा गये
खुद को खो दिया हमने
ना जाने कैसी हुई तुमसे मुलाकात
तेरे हाथो की लक़ीरो मे
देखा है अपना नसीब
तेरे ही नाम से शुरू होकर
तुझ पर आकर खत्म हो
मेरी हर एक बात
प्यार के सफर के हम दो राही
चले है एक दुजे के साथ
दिल की दुनियाँ भी बसाई है
हमने देके दिल की सौगात
फलक पर यूँ उमड आये बादल बन के प्यार,
भीगे हम भी रात हुई कुछ ऐसी बरसात।
तस्सव्वुर मे रहती है हर दम बन के हम ख़याल,
अपने चाँद से अपने मेहबूब से मेरी ये मुलाकात।



एक ही ख्वाब को आंखो मे कई बार सजाया मैने
अपने ही अश्को से फिर उस ख्वाब को मिटाया मैने
राह के जिस मोड पर बदल गयी थी मन्ज़िल मेरी
आज फिर उसी राह पर कदम को उठाया मैने

जो था मसीहा मेरा, आज उसे पत्थर कह दिया
ना चाहते हुये भी जुल्म कमाया मैने
एक तरफ मौत है और एक तरफ बसर तन्हा
प्यार मे क्या कहूँ कि क्या पाया मैने

धुआँ ही धुआँ उठता रहा मगर आग ना जल पायी
आज इस कदर उसके खतों को जलाया मैने

पा के जिसे पा लिया दुनिया मैंने
पर क्यूं ये सवाल उठा है ?
क्या धडकनों में आज भी मै हूँ
या दिल किसी और के नाम कर दिया।

एक सवाल ने मुझे हैरान कर दिया
एक सवाल ने मुझे ख्वाब से जगा दिया
क्या तनहा ही बेहतर थी ज़िन्दगी मेरी?
जाने किस उलझन में मुझे डाल दिया।

वो शख्स जो मिला था राह में
वो अक्श था आईने में मेरा
पा के अनजान रुसवाई से मुझको
हकीकत से मुझे मिलवा
दिया।

गुज़र रहा था कल राह से मै
एक शख्स ने अचानक रोक दिया
जाने ऐसी क्या बात कही उसने
हैरत में मुझे डाल दिया


कौन था और क्या कह गया
शायद मुझको मुझसे मिलवा दिया
थे हज़ार मतलब उसकी बात के
ज़र्रा भर तो मुझे समझा दिया

है रफ़्तार ज़रूरी ज़िन्दगी में
अगर राह से जो नज़रे हटा दिया
टुकड़े टुकड़े कर देगी
एक ठोकर ने जो तुमको गिरा दिया

छोड़ा था जिसे दुनिया की भीड़ में
उसको भी मुझसे मिलवा दिया
मै तो ख्वाब संजोके बैठा था
हकीकत से मेरा सामना करा दिया

ऑंखें तो प्यार में दिलकी जुबान होती है..
सची चाहत तो सदा बेजुबान होती है..
प्यार मई दर्द भी मिले तो क्या घबराना..
सुना है दर्द से चाहत और जवान होती है..

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मुद्दत हो गई उन तान्हायिओं को गुज़रे,
फ़िर अब भी इन आँखों में वो खामोशी क्यूं है
तोड़ दिया यकीन मोहब्बत से जिसने मेरा
वो शख्श अब भी प्यार के काबिल क्यूं है…

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फ़िर करने लगा हिसाब ज़िन्दगी का
ये भी एक जरिया है तुम्हे याद करने का
यादों की ख़ाक में ढूंढ रहा था एक हँसी
आँख से भी जो टपका तो एक कतरा दर्द का।
एक रात
अनमनी सी
मचलती रही
जुल्फों की छाँव में

कहने को
क्या हुआ,
तन-मन को
जब छुआ !

एक बात
अजनबी से
हवा हो गई
पनघट की ठांव में !
० राकेश 'सोहम'


तुमसे होकर इस कदर रूबरू निकले।


आज तेरे दर से बड़े बे-अबरू निकले।


पानी मे चाँद नज़र आया रात इतना करीब।


जब छूना चाहा, तब बहुत दूर निकले।


जिसने कत्ल कर दिया हमारी हर आरज़ू का।


वही हमारे बयान पर बेक़सूर निकले।


हमने तो लिख दिया अपना हाल-ए-दिल।


उम्मीद है तुमसे, कोई दुआ जरूर निकले।


अस्तित्व के नाकाम होते संघर्ष में
जिंदगी भी कर्वेटेही बदलती रही
फूल काँटों में भी मुस्कुराता रहा
जिंदगी सेज पर भी सिसकती रही
पत्थरों के शहर में दम घुटता ही रहा
जिंदगी भी बेबस तमाशा ही देखती रही
समय की तेज़ आंच में मैं भी पिघलता रहा
और जिंदगी भी हाथों से फिसलती ही रही
मैं फ़िर भी चिरागे तमन्ना जलाता ही रहा
जिंदगी भी चिरागे तमन्ना बुझातीही रही
यूँ कशमकश का दौर तो चलता ही रहा
मैं जिंदगी को तो जिंदगी मुझे आजमाती रही।
तू कर दे एक इशारा मेरा पता बता दे…
कहने को तो जिन्दगी हमे भी मिली है,,
पर तू जीने की एक वजह बता दे…
तेरे दिल में अब भी मेरा आशियाना बसता है,,,
लब्जो से न सही आंखों से ही जता दे….
तू कर दे एक इशारा मेरा पता बता दे,,,

सितारों की महफिल सजी थी हर तरफ़
फिर भी रौशनी को तरस गए थे हम
महताब जो बन गए आप जिंदगी के
अब अंधेरों का हमसे नाता कैसा

खुदा से जो मांगी हमने दुआएं
कबूल किया उन्होंने हमारी मोहब्बत को
ज़माना हमे अब भुला दे भी तो क्या
हमे अब ज़माने से शिकवा कैसा।

सकून मिला मुझे आकर तेरी बाहो मे
मंज़िल मुझे मिली आकर तेरी राहो मे
मै तन्हा था ज़िन्दगी के काफिले मे
मुझे पुकारा है आज तुम्हारी सदाओ ने
देखा मैने जब तुमको, बस देखता ही रह गया
पानी पे जैसे चाँद हो ठहरा!
आंखो का काज़ल रात बन बह गया!
डूब गये हम के उभर नही पाये
तेरी झील सी गहरी निगाहो मे!
पता नही था इस कद्र हम भी कही खो जायेंगे
ज़रा ज़रा कतरा कतरा इस इश्क मे बहते जायेंगे!
क्या खो देंग़े और क्या पायेंगे!
प्यार क्या है जाना हमने
आकर तेरी बाहों में!

मैं आड़ीतिरछी जड़ें भर रह गया हूँ
कहीं कोई फूल खिलता नही
कहीं कोई सुगंध भी उठतीनही
दीमक लगे तने सा भुरभुराने लगा हूँ
तेज़ हवाओं के वेग से पत्ते पत्ते सा झरने लगा हूँ
प्राण रिक्त है आशा कोई जगती नही
कौन सींचे जड़ों को बागबाँ ही आता नही
उन्मुक्त एरावतोंका झुंड मंडरा रहा है पास ही
किससेकरे गुहार आनंद
नाखुदा कोई नज़र आता नही।

आपसे कभी मिल न पाये हम
फिर बिछड़ने का डर कैसा
मेरी हर धड़कन में आप हो शामिल
फिर आपकी जुदाई का ग़म कैसा

दीदार-ऐ-यार की खातिर जी रहे हैं हम
उनकी तलाश हैं अब हर तरफ़
उम्र-ऐ-तमाम किसीके नाम कर दिया हमने
अब मौत के भी आने का डर कैसा

आपकी याद यूँ जिंदगी को महका दे
बहार बनकर फिजा में रंग भर दे
संवारा है मुझे आपने इस कदर
कि मेरे ख़्वाबों में भी अब पतझर कैसा...?
प्राय ऐसा पाया गया है की अधिकतर व्यक्ति भोजन के बाद नींद , खुमारी , आलस्य आदि से ग्रसित हो जाते हैं। इनमे आश्चर्य जनक रूप से युवा वर्ग भी समान रूप से प्रभावित होता पाया है। जबकि युवावस्था में ऐसा नही होना चाहिए , क्योंकि ऐसा माना जाता है की इस उम्र में उनकी पाचन शक्ति और अन्य शारीरिक क्रियाँए -प्रतिक्रियाएँ अच्छी होती हैं। और वेसे भी भोजन के बाद तो स्फूर्ति और शक्ति आनी चाहिए, क्योंकि शक्ति उत्पन्न करने का स्त्रोत भीतर गया। पर होता इसके विपरीत है। ऐसा क्यो होता है और इस से बचने का क्या तरीका ह आएये इस पर एक नज़र डालें।

जगत में प्रसन्न और प्रफुल्लित रहने के लिए स्वास्थय की सर्वोपरि भूमिका है, जिसमे मन की भी भूमिका अधिक है। जेसा भोजन होगा वेसी ही मन की अवस्था होती। और जिसका मन प्रफुल्लित है वह कम ही बीमार पड़ता है। उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी अच्छी बनी रहती है। शरीर में जो भी कंपन है वो मन के कंपन से पैदा होते हैं। मन का कंपन जितना कमओ होगा, शरीरउतना ही थिर और स्वस्थ होगा। जो शरीर में घटित होगा उसका परिणामे मन में प्रतिध्वनित होता है। और जो मन में घटित होता है उसका परिणाम शरीर परdआता है अगर शरीर बीमार है तो मन भी ज्यादा स्वस्थ और प्रसन्न नही रहo सकता। और अगर मन बीमारa है तो शरीर भी रुग्ण और निस्तेज दिखाई देता है। किंतु यह शाश्वत सत्य है की जो व्यक्ति मन को स्वस्थ्य रखने का उपाय समझo लेते हैं, वे शरीर के तल पर बेहतर स्वस्थ पाते हैं । क्योंकि कहा गया है की "जेसा खावे अन्न , वेसा होवे मन। " इसलिए व्यक्ति को अपने आहार में विवेकपूर्णग होना जरुरी है। ज्यादातर व्यक्ति भोजन करतेही नींद खुमारी औरo आलस्य से घिर जाते हैं। यह एकविचारणीय प्रशन है कीl ऐसा क्यो होता है ? भोजन तो शक्ति प्रदाता हा । लेकिन यहाँ ऐसा लगता है मानो भोजन उनके शरीर की शक्ति खिंच लेता है। ऐसा हैi नही , भोजन शक्ति खींचता नही बल्कि वह शक्ति देता हैha। इसलिए अगर भोजन के बाद आलस्य छाता है तो इसके लिए व्यक्ति ख़ुद ही उत्तरदायी है। अगर सम्यक भोजन होगा तो आलस्य कभी नही आएगा, बल्कि एक ताजगी , तृप्ति और स्फूर्ति महसूस होगी। अगर जरुरत से ज्यादा भोजन किया है तो सारे शरीर की शक्ति उसे पचाने में लग जाती है। और शरीर में आलस्य छा जाता है। भोजन का बाद आलस्य छाने का मतलब इतना ही है की शरीर की सारी शक्ति उसे पचाने में लग जाती है। आलस्य इस बात की सूचना है की भोजन जरुरत से ज्यदा हो गया है। वरना भोजन के बाद आलस्य नही स्फूर्ति आनी चाहिए । इसके लिए व्यक्ति ख़ुद ही विवेकशील और संकल्पशील होना होगा-की भोजन इतना ज्यदा नही किया जाना चाहिए जिससे आलस्य आता हो, पेट और शरीर भारी से लगें । हृदय विरूद्व आहार से यथा संम्भव बचना चाहिए । अर्थात जो आहार मन के अनुकूल न हो उसका सेवन करना हृदय विरूद्व होता है। आहार के पचने में मन का संम्बंध बहुत रहता है। शरीर और पाचन शक्ति ठीक हो फ़िर भी आहार मन के अनुकूल न हो तो उसका पाचन ठीक से नही होता।
भूख लगना तो स्वाभाविक है। और फ़िर जब भूख लगने पर ही भोजन किया है तो स्फूर्ति आनी चाहिए-क्योंकि शक्ति पैदा करने का स्तरोत्र भीतर गया. पर अधिकतर लोग भोजन के बाद आलस्यपूर्ण और अशक्त हो जाते हैं। जो इस बात का संकेत है की भोजन जरुरत से ज्यादा कर लिया गया हा। और अब सारी शक्ति उसे पचाने में लग जायेगी । शरीर अपनी सारी ऊर्जा खींचकर पेट में ले जाएगा और इसलिए सब तरफ़ से शक्ति क्षीण होने से आलस्य और अशक्तता चा जाती है। जिससे व्यक्ति की दिनचर्या प्रभावित होती है। अधिक मात्र में भोजन करने से अग्नाशय की क्रियाशीलता मंद पड़ जाती है। यह ठीक ऐसे है जेसे किसी ट्रक में उसकी क्षमता से ज्यादा माल लाद दिया गया हो. अग्नाशय तीन तरह से भोजन के तत्वों -प्रोटीन कार्बोह्य्द्रते और वसा पर प्रभाव डालता है। जो इंसुलिन में स्थित कोशिकाओं द्वारा कार्बोह्य्द्रत उपापचय होता है। तथा ग्लुकगोन हारमोन को रुधिर शर्करा की मातृ के अनुसार निर्वाहिका तंद्रा में पहुचाते हैं अब चूँकि अधिक मात्रा में शर्करा युक्त पदार्थ की कारन व्यक्ति के रक्त में शर्करा की मात्रा सामान्य स्तर तक पहुचने में समय लगता है जिसके परिणाम स्वरुप आलस्य और शक्तिहीनता महसूस करता है। अतः अधिक खाने की लालसा पर नियंत्रण रखना ही उचित है। भूख से एक रोटी खाना अत्यन्त फायदेमंद है। वास्तविकता तो यह है की हम खाते हैं शक्ति उससे नही मिलती बल्कि जितना पचा पाते हैं उससे मिलती है। याद रहे जो शरीर पर घतिद होता है। वह मन पर भी प्रतिबिंबित होता है। इसलिए शांत और प्रसन्न मन से भोजन करना चाहिए। चिंता करते हुए भोजन करना ऐसा है मानो शरीर को व्याधियों की और धकेलना। इससे बदहजमी असिदिटी आदि तकलीफे घेर लेती हैं। अगर मन प्रसन्न रहेगा तो शरीर ऊर्जावान रहेगा और भोजन स्फूर्तिदायक और शक्तिप्रदायक होगा। नींद खुमारी और आलस्य आदि से व्यक्ति ग्रसित नही होगा। और रोग प्रतिरोधक क्षमता बरकरार रहेगी। इसके साथ ही महत्वपूर्ण यह भी है की अपने सतगुरु प्रभु का नाम हर हाल में जपते रहें क्योंकि वास्तविक ऊर्जा का स्त्रोत्र तो भगवद भजन और नाम जप में ही है.

कहीं ऐसा न हो कि दामन जला लो,
हमारे आँसुओं पे ख़ाक डालो.
मनाना ही ज़रूरी है तो फिर तुम,
हमें सबसे खफा होकर मना लो।

बहुत मायूस बैठा हूँ मैं तुमसे,
कभी आकर मुझे हैरत मैं डालो.
बहुत रोई हुई लगती हैं आँखें,
मेरी खातिर ज़रा काजल लगालो.
जीवन की चुनौतियों का सामना करती हुई मानवीय चेतना जब थक सी जाती है, या परास्त होकर चुकी चुकी सी महसूस करती है-तब प्रकृति का आँचल या मानव का स्नेहपूर्ण सौहार्द्र उसमे नईआशा की किरण जगा देता है। उसे पुनः आश्वस्त करता है, आगे के चरणों की ओरबढनेके लिए आह्वान कारता है। प्रकृति अथवा मानव के प्राणदायी स्पर्श का अनुभव हम सभी करते हैं। उसकी चाह भी हम सभी के मन में रहती है, पर उसे समझनेकी कोशिश शायद हम में से कुछ विरले ही करते हैं और उसे समझते हुए उसकी अव्यक्त अपेक्षाओं के प्रति अपने को पूर्णत मुक्त करने की कोशिश संभवत कोई अत्यधिक तरल संवेदनशीलता से युक्त व्यक्ति ही कर पाता है। सौंदर्य की अनुभूति चाह सदा से ही मानव जीवन की एक विशिष्ट प्रकृति रही है। व्यक्तिगत इच्छाओं से ऊपर उठकर ही सौंदर्य की प्रतीति होती है। यह सौंदर्य के स्वरुप और सार को अधिक सच्चाई से प्रस्तुत करता है। यदि हम गौर से देखें तो पाएंगे की सामान्य ही नही अपितु न्यूनतम संवेदनशीलता रखने वाले व्यक्ति में भी वस्तुओं को सजा कर, करीने से रखने की प्रवृति दिखाई देती है। यही बीज रूप में सौंदर्य की अभीरूचि है।जिसका ज्यादा विकसित रूप हमें कलात्मक सर्जना में मिलता है।
ये जीवन की एक अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रवृति है जो हमारे सम्पूर्ण जीवन को इसतरह से रंजित करती है की वह अनायास ही सार्थक होकर निखर उठता है। इसी के माध्यम से हम जीवन के विविध पक्षों के मूल्यों को निर्धारित करते हैं। सौंदर्य विलासिता का पर्याय नही है। सौंदर्य का आधार तो वस्तुत मानव की अपनी ही आत्मा है। मानव ख़ुद है। व्यक्ति जितना ज्यदा संवेदन शील है उसका सौंदर्य बोध उतना ही विकसित है. 'कांट का मानना है की सौंदर्य के प्रत्क्ष्यमें आत्मनिष्ठ तत्वों का महत्वपूर्ण योगदान है। पर्याप्त मात्रा में सौंदर्य बोध तथा उसके सर्जन के सामर्थ्य न होने पर भी व्यक्ति सौंदर्य के स्वरुप पर विचार कर सकता है।
सौंदर्य बोध तो मानव हृदय की अतार्किक प्रतिक्रियाओं से होता है। हृदय की सहज अतार्किक प्रतिक्रियाओं, सहज संवेदन शीलता की भावात्मक , अभावात्मक प्रतिक्रियाओं के माध्यम से यह जान लेता है की अमुक वस्तुसुंदर है या नही। सर्जनात्मक प्रतिक्रियाएँ स्वांत सुखाय और स्वत साध्य होती हैं। इस कारण वे विशिष्ट , श्रेष्ठ और सुकून देने वाली होती है। किन्तो मानवीय सर्जना की तुलना में प्रकृति की सर्जनात्मक क्षमता कहीं अधिक विशाल है। और जहाँ तक उस से अभिभूत होने का प्रशन है, हम में से प्राय कभी ने यह अनुभव किया होगा की जब कभी भी हम उत्तेजित स्थिति में आश्वस्त होने के लिए उसकी ओर उन्मुख होते हैं, तो हमें नितांत सहजता से अपना खोया हुआ सुकून फ़िर से प्राप्त हो जाता है। और उसका मंगलकारी प्रभाव हम पर पड़ता है।
सौंदर्य का सम्बन्ध मानवीय व्यक्तित्व की उन गहराईयों से है, जिनका हम सामान्यत स्पर्श नही करते, इसलिए जब जो भी अभिव्यंजना उन गहराईओं को स्पर्श करती है, हमें एक गहर आत्मिक संतोष प्रदान करती है, जो अंततः आह्लादकारी है।
व्यक्ति के जीवन का प्रमुख उद्देश्य यह है की वह विश्व और अपने व्यक्तित्व में अंतर्भूत उस आधारभूत सत्य को प्राप्त करे। तभी वह जीवन के शाश्वत सौंदर्य का सही अर्थो में प्रत्यक्ष कर सकेगा और मनसा वाचा कर्मणा अपने जीवन और व्यवहार में प्रस्थापित कर सकेगा।

आंखों से टूटते है सितारे तो क्या हुआ?
चलते नही वो साथ हमारे तो क्या हुआ?

तूफ़ान की ज़द में अजम मेरे साथ साथ था,
कश्ती को मिल सके न किनारे तो क्या हुआ?

तन्हाइयों ने मुझको गले से लगा लिया,
वो बन सके न दिलसे हमारे तो क्या हुआ?

सौ हौसले हमारे क़दम चूमते रहे,
कुछ बेसुकून रात गुज़रे तो क्या हुआ ?

मंजिल भी, कारवाँ भी, मुसाफिर भी ख़ुद रहा,
साथी बने न हमारे चाँद सितारे तो क्या हुआ ?
करता हूँ जब दीदार तेरा, मन हर्षित हो जाता है
रहमत बरसे बनकर बादल, मन मयूर हो जाता है
तेरे इक इशारे से मुकद्दर बदल जाता है
पतझड़ के मौसम में भी बसंत छा जाता है
जो भी माँगा दिया तुने इक निगाहें कर्म से
होता नही जो भाग्य में इंसा वो पा जाता है
अंधेरे में भटका आनंद करता जब फरियाद है

अमावस में भी पूनम का चाँद निकल आता है.
नदी हरदम दौड़ती रहती है
पर्वतों को लांघती
चट्टानों से टकराती
मैदानों को पार करती
मरुस्थलों को चूमती
अति उत्साहित
इतराती भागती जाती है
अजब उसकी ये बेताबी है
सागर से मिलने की
जानती है जब मिलेगी
तो उसका शेष न रहेगा कुछ भी
अस्तित्व ही अपना खो देगी
फ़िर भी
छुपाये नही छुपती बेकरारी
और खुशी उसकी
क्योंकि जानती है की खो जाने में ही
अनंत हो जायेगी , सागर ही हो जायेगी
पर हा रे ! मानव की त्रासदी ,
चाह ही नही 'उस परम' से मिलन की
जुदा जुदा सा भटक रहा
आई न सुध 'पी' से मिलन की


जीवन मे हम प्रतिक्षण नवीन अनुभव प्राप्‍त करते हैं और हमें प्रतिक्षण कई लोगो से मिलना होता है, अत: जीवन मे सफलता प्राप्‍त करने के लिए या लोकप्रिय बने रहने के लिए २० गुर नीचे दिऐ जा रहे हैं।
1. हमेशा मुस्कराते रहिए। प्रसन्‍नता व मुस्कराहट बिखेरने वाले लोगो के सैकडो मित्र होते है। कोई भी व्यक्ति उदास चेहरे के पास बैठ्ना पसंद नही करता।
2. बातचीत मे अपनी तकलीफों का रोना मत रोइए, क्योकि लोग इस से आप के पास आने से हिचकिचाएगें, वे यही समझेंगे कि उसके पास जाते ही बह अपनी तकलीफों का रामायण पढ्ने लग जाएगा।
3. दुसरो की तारीफ जी भर कर किजिए पर तारीफ इस तरह होना चाहिए कि समने वाले को ऐसा न लगे कि आप उसे मुर्ख बना रहे है।
4. बातचीत मे हमेशा सामने वाले को ज्यादा से ज्यादा बोलने का मौका दीजिए और आप यथासम्भव कम बोलिए। ऐसा भी न करे कि आप बिल्कुल चुप रहें।
5. आप के वस्‍त्र सूरुचिपूर्ण हों तथा आपकी बातचीत मे किसी प्रकार से हलकापन न हो, आप गम्भीरता से अपनी बात को कहने का प्रयत्‍न किजिए।
6. किसी भी अधिकारी या ऊचें से ऊचें व्यक्ति से मिलते समय मन मे किसी प्रकार की हिचकिचाहट अनुभव न किजिए, अपने बात नम्रता से, पर दृढतापूर्वक उस के सामने रखिए।
7. बार-बार अपनी गलती स्वीकार मत किजिए और बार बार क्षमा याचना करना भी ठीक नही है।
8. किसी भी प्रकार से अपने उपर क्रोध को हावी मत होने दिजिए। यदि सामने वाला क्रोध करता भी है तो चुपचाप सहन कर लिजिए। केवल क्रोध को सहन करने के बाद ही वह पछताएगा और आप के प्रति उसका सम्मान जरुरत से ज्यादा बढ जाऐगा।
9. मित्र को या किसी को भी मिलते समय उसको उस के नाम से पुकारिऐ और उस से ऐसी बातचीत किजिए जो उस को रुचिकर हो।
10. हमेशा आप ऊची सोसाइटी मे रहिए। द्स कलर्को के साथ घूमने के बजाए यदि आप किसी एक अधिकारी के साथ आधे घंटे के लिए भी घूम लेंगे तो लोगो मे आप का सम्मान और प्रतिष्ठा बढ जाएगा।
11. हमेशा उची स्तर के लोगो से मित्रता रखिए, जो समाज के विभिन्‍न वर्गो से सम्बंधित हों। यदि आप डाक्‍टर हैं और आप की चालीस डाक्‍टरों से आप की मित्रता है तो उस का कोई विषेश लाभ नही। इस की अपेक्षा वकील, इन्कमटैक्स अधिकारी, कुशल व्यापारी, एस. पी आदि से मित्रता या परिचय आप के लिए ज्यादा अनुकूल रहेगा।
12. आप यथासंभव कम से कम असत्य बोलिए,क्योकि असत्य ज्यादा समय तक नही चलता।
13. अपने आपको हमेशा तरो ताज़ा रखिए क्योकि बीमार, सुस्त और यदि आप थके हुए लगेगें तो आप ज्यादा उन्‍नति नही कर पाऐगे और न समाज मे ज्यादा लोकप्रिय हो सकेगें।
14. कभी भी हलके रिस्तरां या होटल मे मत बैठिए। चाहे एक सप्ताह मे केवल एक बार ही एक कप चाए लें पर ऊची व स्टैण्डर्ड के होटल मे ले, क्योकि वहां आप की टेबल पर जो कोई भी बैठा होगा वह समाज का ऊचें स्तर का होगा और उससे दोस्ती भी आप को समाज मे ऊचाई की ओर ले जाएगी, इस के विपरित हल्के होटल मे आप के दो पैसे ज़रुर कम लगेगें पर आप का स्तर हलका होगा और भूल से भी किसी परिचित ने आप को वहां देख लिया तो उस की नज़र मे आप का सम्मान कम होगा।
15. सडक पर खडे खडे कुछ मत खाईये, इसी प्रकार असभ्य भाषा का प्रयोग करते हुए साथियो के बीच भी न खाऐं तो ज्यादा उचित होगा।
16. वस्त्र साफ हों, स्वच्‍छ और आप के प्रकृति के अनुकूल हों लोगों को देख कर या उनके अनुकूल कपडे पहना आपकी व्यक्‍तिव (Personality) के अनुकूल नही होगा।
17. साल मे एक या दो बार अपने मित्रो या अधिकारियों को उपहार अवश्य दें चाहे वह उपहार कम कीमत की ही क्यो न हो पर उपहार ऐसा होना चाहिए जो स्थाई हो, जो उसके ड्राइग रुम मे रखा हुआ रह सके।
18. अपनी स्मरण शक्ति प्रखर रखिए, यथासंभव मित्रो व परिचितों के नाम याद रखिए।
19. इस बात का ध्यान रखिए कि आप की बातचीत से सामने वाले का ईगो संतुष्‍ट होना चाहिए।
20. सामने वाला जिस प्रकार का या जिस रुची का व्यक्ति हो उसी के अनुरुप बातचीत करें।

यह गुर जितने साधारण है उतने ही प्रभावशाली हैं यदि आप इन्हे अपने दैनिक कार्यो मे अपनाएगे तो निश्‍चय ही आप के व्यक्तिव (personality) मे चार चांद लग जाएंगे। आप का प्रभाव दुसरो पर स्थाई रहेगा। यह पढने व देखने मे जितना आसान है उतना ही दैनिक कार्यों मे अपनाना कठिन भी। क्योकि आदमी अपनी आदतों से बंधा होता है और किसी भी नई आदत या शैली को अपनाने के लिए वक्त लगता है।इस प्रकार आप उपरोक्त गुरों को अपना कर समाज मे श्रेष्ठ बनने का प्रयास किजिए जिससे आप ज्यादा लोकप्रिय हो सके।


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तमन्ना लेके उल्फत की,

मेरे आँगन मे वो आया
मोहब्बत रोग है दिल का,

उसे ये मैने समझाया
कहाँ उसने मोहब्बत कर,

शरीके गम बना मुझको
करूंगा मै ज़माने की,

खुशी से आशना तुझको
हुआ मजबूर मै यारो,

किया इक़रार उल्फत का
लगा दी जान की बाज़ी,

समझ कर खेल क़िस्मत का
हुई मालूम फिर उसको,

हक़ीक़त ये ज़माने से
उसे तसकीन मिलती है,

किसी का दिल दुखाने से।


साभार- Sarfaraz
तुमसे है अनुबंध
छंद अब,
तुम पर ही लिखूंगा;
महफ़िल है बेरंग
कुछ बातें
तुमसे ही कह लूँगा ।

तुम भावों की
चंचल सरिता
मैं शब्दों का सागर,
लिख दें गीत
प्रेम के प्रिय तुम
मिल जाओ बस आकर ।

फूलों सा मकरंद
गीत मैं,
अधरों से पा लूँगा ।

तुम आशा की
भोर शबनामी
मैं राही भटका सा,
तुमसे मिलकर
राह मिल गयी
आया चैन ज़रा सा ।

मयखानों से तंग
छोडो अब,
आँखो से पी लूँगा ।

सूना घर
सूने गलियारे
सूना अग-जग सारा है,
याद तुम्हारी
जीवन भर दे
तुमने मुझे संवारा है ।

कर आंखों को बंद
प्रर्तिपल
नाम तुम्हारा लूँगा ।
[] राकेश 'सोऽहं'


कुछ खबर नही हम को अपना या पराया है,
ढूंढने ये दिल जिस को इस गली मे आया है।
हम दुआये देते है तुम को फिर भी जान-ए-जान,
मगर तुम ने इस दिल को बे-पनाह सताया है।।


मार कर मुझे क़ातिल ग़मज़दा सा लगता है,
इस लिये तो चलते हुये थोडा लडखडाया है।
काश अपने दिल की आग अश्क से बुझा सकते,
रूठ जब गये आँसू उसने तब जलाया है।।

जल रहा था दिल मेरा फिर भी शुक्र है इतना,
उनको इस तमाशे मे कुछ मज़ा तो आया है।।

नम है पलके और उसमे छुपी हुई है एक कहानी,
दिल खुद कैसे ये दास्तान अपनी है जुबानी.
एक प्यारा सा ख्वाब था उसमे थी एक परी अंजानी,
दिखाये ख्वाब हज़ार पर वो तो थी बेगानी.

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वो सुनना ही नही चाहते थे,
और हम इज़्हार करते रहे.
वो आना ही नही चाहते थे,
और हम इन्तेज़ार करते रहे.
खता उनकी नही हमारी है की,
हम एक पत्थर दिल से प्यार करते रहे।
जुदाई के इस भीगे आलम में
अब चांदनी भी तन जलाती है
तन्हाइयों के तल्ख़ मौसम में
पुरवैया भी बैरन बन सताती है
दूर तक पसरे मरघट से सन्नाटे में
साँसे भी मेरी अवरुद्ध हुई जाती हैं
डूबा तो हुआ हूँ आंसुओं के सागर में
फ़िर क्यो बहारे भी मुझे झुलसाती हैं
सुनता हूँ ज़िक्र गैर का तेरी महफ़िल में
मेरे दिल की बस्ती भी वीरान हो जाती है
पाता हूँ जब भी तुझे नज़रों के आईने में
रूह आनंद की पिघल पिघल जाती है।
आज तेरा रूप कुछ बदला - बदला सा है.

रंग भी कुछ निखरा- निखरा सा है।

आइये हम भी कुछ नया- नया सा करें,

मेरी पत्रिका के अंजुमन में कही खो जाएँ।
उड़ते परिंदों को गिरने का डर नही रहता
फूलों को शाख से टूटने का डर नही रहता
दुखों से घबरा कर आनंद खो न देना ऐ दोस्त
कुंदन को आग में तपने का डर नही रहता।


सच को झुठलाने की हिम्मत भी कहाँ तक करते,
झूठे ख़्वाबों की हिफाज़त ही कहाँ तक करते,
कोई एहसास न जज़्बात न धड़कन उसमे,
एक पत्थर से मोहब्बत भी कहाँ तक करते।


कह दिया दिल ने तो हालात का गम छोड़ दिया,
हम भला दिल से बगावत भी कहाँ तक करते,
ये तो अच्छा हुआ बाज़ार में आए ही नही,
हम उसूलों की हिफाज़त भी कहाँ तक करते...."

उपनिषदों के अनुसार जो ब्रह्माण्ड में है वह पिंड (देह) में है। विज्ञानं भी यही कहता है। की जो नियम परमाणु में काम कर रहे हैं, ठीक वहीनियम सौर मंडल में काम कर रहे हैं। जगत का सम्पूर्ण प्रवाह परब्रह्म से अनुप्राणित है, उससे आवासित है। एक परम ऊर्जा से सब कुछ ढका हुआ है। यह ऊर्जा या प्राण अभौतिक है, जेसे हमारी आत्मा , हमारे श्वास । श्वास ऊर्जा के बिना देह मुर्दा है......... मांस और हड्डियों का ढेर मात्र । यह ऊर्जा ही हमारे शरीर , पर्यावरण और हमारी भावनाओं में समन्वय और संतुलन बनाए रखती है।एक तरह से कहा जा सकता है के यह ऊर्जा या जीवनशक्ति हमारे व्यक्तित्व , प्रतिभा और सम्पूर्ण जीवन अवधि की रूपरेखा है। और यह ऊर्जा या जीवन शक्ति रंगों से प्रभावित होती है। इसीलिए रंगों का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। रंगों से हमारा सम्बन्ध ब्रह्माण्ड में व्याप्त ऊर्जा के माध्यम से जुड़ता है। सौर मंडल के सभी रंग सूर्य में होते हैं।

हमारी जीवनशक्ति को समरस , संतुलित और अनुकूल रखने में रंगों का बड़ा महत्व और योगदान होता है। शारीरिक और मानसिक स्वस्थ्य को बनाए रखने में रंगों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है। रंग हमारे जीवन में मंगल और शुभ लाने में सहायक होते हैं। अस्तित्व में मौजूद प्रतेएक वास्तु (अणु परमाणु ) कहीं न कहीं हमारे व्यक्तित्व को प्रभावित करता है। और प्रत्येक वस्तु(अणु परमाणु) अपने में कोई न कोई रंग समेटे हुए है। ज्ञातव्य है के हमारे देह भावनाओं और पर्यावरण जिसमे हम रहते हैं.... इनमे आपसे में लयऔर संतुलन हमारे लिए अभीष्ट है। ज़रा सा भी कहीं पर अन्तर या अवरोध आ जाने से हमारा समूचा व्यक्तित्व प्रभावित होता है।

व्यक्ति के आसपास के वातावरण में कोई नया रंग सकारात्मक या नकारात्मक्क प्रभाव डालने में सक्षम होता है। रंग हमारी भावनाओं के गुणधर्म को उभारने या दबाने में प्रभावशाली योगदान करते हैं। और हमारे व्यहार को भी निर्मित सरने में सहायक होते हैं।

अपने रोज़मर्रा के जीवन में हम रंगों का असर भली प्रकार देख सकते हैंकिसी से डाह करते हुए हम नीले हरे हो जाते हैं शर्म से लाल हो जाते हैं। भय से पीले पड़ जातेटी हैं। कुछ रंग हमें प्रफुल्लित बनाते हैं तो कुछ विषाद में दुबूते हैं। इस प्रकार रंगों का प्रभाव अपने जीवन पर हम ख़ुद अनुभव कर सकते हैं।
रंग प्रकाश और ऊर्जा की अभिव्यक्ति हैं। यदि कोई रंग हमारी ऊर्जा से लयात्मक हो जाता है तो निश्चित ही हमारा जीवन समृद्ध और सफल होता है। किंतु यह भी सत्य हा की जो रंग हमारे मूड या मिजाज से मेल नही खाता वह हमें क्षुब्ध और चिडचिडा बना देता है। हमारी आँखों के संपर्क में आने वाला प्रतेयक तंग हमारे स्वभाव और शारीरिक गतिविधिया , भाषा और विचारों को प्रभावित करता है।
व्यक्ति के तीन प्रमुख केन्द्रों में लयात्मकता और संतुलन रंगों के द्वारा ही होता है। ये प्रमुख केन्द्र हैं: मानसिक केन्द्र, इच्छा केन्द्र और भाव केन्द्र। मानसिक केन्द्र से सम्बंधित चक्र सहस्त्रार और आज्ञा चक्र हैं। जो क्रमश जामुनी और गहरे नीले रंग की ऊर्जा समेटहैं । इच्छा केन्द्र से सम्बंधित ग्रीवा का निचला भाग, कंधो के नीचे की पसलियों से सम्बंधित है, जिनका रंग हल्का नीला है । भाव केन्द्र से सम्बन्धीविशुधिचक्र , अनाहत चक्र मणिपुर और मूलाधार चक्र है जो क्रमश हल्का नीला, हरा, पीला और लाल रंग अपने में समेटे हैं।
क्रोध भय चिंता और तनाव से मुक्ति के लिए विशुधि चक्र पर हल्का नीला और मणिपुर चक्र पर पीले रंग का ध्यान तथा काम लोभ जेसे नकारात्मक प्रवाहों को रोकने के लिए मूलाधार चक्र पर लाल रंग का ध्यान करने से नकारात्मक अवरोध दूर फ्जाते है । निराशा, हीनता और असंतोष आदि नकारात्मक भावों से पार पाने के लिए हृदय चक्र पर हरे रंग का ध्यान करने से सकारत्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।
प्रेम और करूणा भाव जागृत कारने के लिए विशुद्धि चक्र पर समुद्री नीले रंग ध्यान अति हितकारी होता है। ज्ञातव्य है की ऊर्जा विचार का अनुगमन करती है। इस प्रकार नकारात्मक भावो से छुटकारा पाने के लिए सम्बन्धी चक्रो पर विशेष ध्यान करने से नकारात्मक अवरोध हट जाते हैं।
वेसे हम रंगों के बारे में अनुवीक्षण करे तो पायेंगे की इनके गुणधर्म संस्कृति से जुड़े पीड़ीडर पीड़ी चले आते हैं। इसलिए मनोवैज्ञानिक स्तरपर रंगों के विषय में कुछ ठोस रूप से नही लिखा जा सकता। और जो लिखा जा सकता है वह मात्रप्रतीकात्मक ही होगा। किन्तो यह सच है की हमारे अनुभव किए बिना रंग हमारी बोध क्षमता को प्रभिव्त करते हैं। और उनके प्रभाव से हमारी भावनाए भी संचालित और प्रभावित होती हैं।
पश्चिमी देशो में काला रंग गंभीरता के साथ उदासी का भी प्रतीक है। वहाँ के लोगो को सुझाव दिया जाता है की साज सज्जा के समय काले रंग के इस्तेमाल से बचें। किंतु दूसरी ओरसफ़ेद रंग शुद्धता शान्ति और आशावाद का प्रतीक मानाजाता है। पश्चिमी देशों में दुल्हन को सफ़ेद पोषक पहनाई जाती है। वहाँ सपने में भी सफ़ेद कपडों में किसी के दाहसंस्कार में जाने का सोचा जा सकता है। इसके विपरीत पूर्व में सफ़ेद रंग को शोक की अभिव्यक्ति के तौर पर माना जाता है। और काले रंग को अशुभ माना जाता है।
रंग दूसरों की राय बदलने में सक्षम होते हैं। ये आँखों को उतेजित करते हैं तो शांत करने के भी अपार क्षमता इनमे है। रंग हमारे भग्य, व्यक्तित्व और जीवन ऊर्जाको प्रभावित करते हैं। इसलिए अब जब भी kakbhi आप किसी रंग विशेष से खुशी आदि महसूस करे उत्साह लगाव सक्रियता महसूस करे तो उसे नोट करे। इसी तरह विपरीत भी नोट करें। और अनुकूल रंगों का प्रयोग और प्रतिकूल रंगों से बचने से हम स्वस्थ्य जीवन जी सकेंगे.

ऊंची उठती दीवारों में
दायरे रोशनियों के
सिमटने लगे हैं
घरों के भी तो मायने
अब बदलने लगे हैं
फूल प्यार के तो
अब नही महकते
घाव बनकर रिश्ते
भी रिसने लगे हैं
हवाओं के झोंके भी
अब हुए हैं बासी
घुटन से प्राण भी
अकुलाने लगे हैं
कैसे रहे आनंद यहाँ पर
फूलों को भी लोग
मसलने लगे हैं.

हम जो कहते थे ज़िन्दगी कुछ नही है तेरे बिना,
लेकिन यह क्या कि ज़िन्दगी सब कुछ है तेरे बिना।
अब तो रात भी कट जाती है, दिन भी गुज़र जाता है,
सब वैसा ही है कुछ भी तो नही बदला तेरे बिना॥

तेरे जाने पे जो रिम-झिम सी थी आंखों में अब,
ठहर गया है आंखों का वो समंदर तेरे बिना।
वक्त ने बहुत कुछ सिखा दिया है मुझे,
अब तो वक्त भी गुज़र जाता है तेरे बिना॥

शहीद मोहब्बत करने के अदब ही न थे,
अब ज़िन्दगी ने वो भी सिखा दिया है तेरे बिना।
जो गुज़र गया है वक्त, सो गुज़र गया दोस्त,


जो रह गया है, गुज़र जाएगा तेरे बिना॥


from- a collection



कोई कमजोरी सी लगती है, ज़िन्दगी के हर मोड़ पर कुछ कमी सी लगती है,


पता नही कहाँ ले जायेगी मेरी राह मुझे,


एक तेरे सिवाह हर मंजिल अजनबी सी लगती है।

आरजू तो है मेरी तुझे हर पल देखती रहूँ ऐ दोस्त,


पर अब हर तम्मान्ना मेरी अधूरी सी लगती है।

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कोई ज़ज्बातों से खिलवाड़ करता है तो कोई दिल तोड़ देता है
और कोई होता है जो हमेशा वफ़ा करके बेवफाई झेलता है
कितने प्यार से और तहजीब से बनाया होगा इस धरती को खुदरत ने
लेकिन यहाँ तो इन्सान अपने मतलब के लिए उस खुदा के नाम से भी खेलता है...

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अपना सब कुछ लुटा दिया हम ने,


अपनी नादानी के कारनामो में,


अब बचा नही कुछ भी सिवाय दर्द के,


ज़िन्दगी के बचे हुए लम्हों में,


खो दी है हमने वो सारी खुशिया,


जो हमें मिलसकती थी आज की ज़िन्दगी में,


अब इसका शिकवा कर के क्या फायदा,


मैंने ख़ुद ही तो डुबोया है अपने आप को ग़मों के समंदर में।


साभार- अनजान


दोस्ती मेरी बस उस ग़म से है,
मिला जो मुझे सनम से है।
तुझसे गिला नहीं है मुझको,
शिकवा इस मौसम से है।
हमसे क्यों छुपाती चेहरा,
तेरा हुस्न भी तो हम से है।
मुझसे और दूर न जा तू,
मेरी साँस तेरे दम से है।
मुझे और कुछ चाह नहीं,
बस तू मेरी कसम से है।

ज़िन्दगी ने मुझे बहुत कुछ सिखाया
तन्हाई मे जीना सिखाया
प्यार को छुपाना सिखाया
दोस्तो से हसके मिलना सिखाया
और मन ही मन रोना सिखाया
अब तो क्या कहुँ,
ज़िन्दगी ने बहुत कुछ सिखाया
मगर जीना नही सिखाया
कहने को तो हमारी धरती की सतह का ७०-८० प्रतिशत भाग पानी से घिरा है किंतु धरती सा कुल पानी का मात्र २.७ प्रतिशत से भी कम हिस्सा हमारे उपयोग का है। इसमे भी प्रदूषण की समस्या दिनोदिन गहराती जा रही है। आज भारत में ही नही वरनसमूचे विश्व में जल संकट गहराता जा रहा है। धरती पर जल और जीवन का बड़ा गहरा रिश्ता है जेसे सूरज और उसकी किरणों का। पानी प्रकृति की सबसे अनमोल और अनुपम भेंट है जो जीवन के हर क्षेत्र में तथा हर कदम पर मानव प्रजाति के लिए अनिवार्य और अपरिहार्य है। इतना होने पर भी विश्वभर में शायद ही कोई वस्तु होगी जो पानी से भी ज्यादा आम हो। यह विडंबना ही है की हम पानी के जीवनदायी गुणों को बहुत ही सामान्य तरीके से लेते हैं। वैज्ञानिको के अनुसार तो पानी की संरचना बहुत ही आसान मानीजाती है। अर्थात दो परमाणु हाईड्रोजन के और एक परमाणु ओक्सीजेनका , तथापि मानव अपने स्तरपर इसका निर्माण नही कर पाया और न ही कर सकता है। ज़रा निम्न कथन पर गौर करें
''पानी एच-२ ओ है यानी दो भाग हाईड्रोजन के और एक परमाणु ओक्सीजेन का , लेकिन उसमे एक तीसरी चीज भी है और उसे कोई नही जानता । तीसरी चीज कोई भी नही समझ पाया, लेकिन यह परमात्मा का आर्शीवाद है जो एक विधुत ऊर्जा की तरह इन दो तत्वों के समूह से पानी बना सकता है। यह प्रकृति का विलक्षण यौगिक है, इसलिए वह सबसे रहस्यमय और वन्दनीय भी है।''
उपरोक्त कथन है- आन वाटर , डीलारेंस और दथर्ड थिंग , पर्सीज

पानी पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है और लगातार लिखा जा रहा है। वैज्ञानिक, अनुसंधानकर्ता और रसायनशास्त्री लगातार पानी पर अनुसन्धान कर रहे हैं। पानी बचाने के विविध उपायों के बारे में बताया जाता है, पानी के संरंक्षण के बारे में आए दिन संगोस्टियाआयोजित होती रहती हैं। सरकारी स्तर पर कायदे कानूनों का भी प्रावधान है। इसके बावजूद भी लोगों में अभी तक पानी के प्रति सम्पूर्ण चेतना और जागृति का अभाव है। लोगो का पानी से भावात्मक जुडाव नही हो पा रहा हैं, जेसा होना चाहिए। हांलाकि लोगो में पानी के प्रति कुछ संवेदनशीलता और जागरूकता तो हुई है, पर यह सिर्फ़ ऊपर ऊपर ही ह। रही सही कसरइच्छाशक्ति ने पूरी कर दी है। निर्बल इच्छा शक्ति के कारण पानी का दुरूपयोग नही रुक पा रहा हैं। दृढ़ संकल्पबल के अभाव में यह लगभग मुश्किल प्रतीत होता है।
पानी का दुरुपयोग करके हम अपनी आनेवाली पीडियोंके लिए मुश्किलें बढाते जा रहे हैं। जल के बिना भविष्य का जीवन केसा होगा इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। क्योंकि जीवन हर तरह से जल पर ही निर्भर है। हमें चाहिए की हम इसे संरक्षित रखे और दुरूपयोग तो कदापि न करें।
हमें पानी की महत्ता को, महानता को अनुभव करना होगा , इस से अपनी संतान की तरह से एकात्मक , भावात्मक स्नेहात्मक अनुभूति होगी तो ही पानी बचेगा और पानी का बचना ही पानी का निर्मित होना है। इसमे किसी क़ानून की आवश्यकता नही है, बस लोगो को ख़ुद ही आगे आना होगा। यही जल के प्रति हमारी कृतज्ञता होगी।
प्रिया पानी तुम कितने महान हो
सृष्टि के प्राणों का अवधान हो
अम्बर की तुम अजीम शान हो
वनोप्वन की मधुर मुस्कान हो
सारे संसार की तुम जान हो
सागर नदियों की पहचान हो
जात पात उंच नीच से दूर
सबका रखते बहुत मान हो
कभी नही जताते नही एहसान हो
फ़िर भी हम तुम्हारी क़द्र नही करते
पानी हमारी खता माफ़ कर देना
हम तुम्हे कभी बना नही सकते
फ़िर भी कितना व्यर्थ हैं बहाते
और प्रदूषित भी तो कितना हैं करते
फ़िर भी पानी तुम नाराज नही होते
हर पल सबका ध्यान हो रखते
पानी हमारी खता माफ़ कर देना
हम कभी तुम्हारी क़द्र नही करते
पानी हमारी खता माफ़ कर देना
हम कभी तुम्हारी क़द्र नही करते
सावन में जब मेघ मल्हार गाते हैं
पल में ज़लथल एक कर जाते हैं
निष्ठुरता कहूँ या उदारता इनकी
महलों को तो ऊपर से ही करे सलाम
झोंपडो को अंदर तक भिगो जाते हैं
बिल्कुल निरंकुश , मनमौजी हो जाते हैं
कभी चमकाते , कभी बिजलियाँ गिरा जाते हैं
पानी से ही आग लगाते , पानी से ही बुझाते हैं
कर देते हैं मस्त , कभी लस्त पस्त कर जाते हैं
किसी आँगन में तो झूम कह बरसें
कहीं खामोशी से गुज़र जाते हैं,
ये केसे मेघ मल्हार हैं मियाँ
कभी वेदना कभी आनंद दे जाते हैं.

12 जुलाई को छत्तीसगढ के राजनांदगांव जिले में नक्सलियों ने एक के बाद एक तीन जाल बिछाए और हर बार पुलिसकर्मियों के एक – एक दल की निर्ममतापूर्वक हत्या कर दी। एक ही दिन में नक्सलवादियों ने एक पुलिस अधीक्षक सहित 39 पुलिसवालों की हत्या कर दी। देश की सुरक्षा पर यह हमला मुम्बई पर हुई आतंकवादी हमले से कम तो नहीं॥ लेकिन देश में कितनी चर्चा हुई सुरक्षाकर्मियों के इस भयावह नरसंहार की?

राष्ट्रपति के पुलिस पदक से सम्मानित, छत्तीसगढ के एक पुलिस अधीक्षक सहित 39 जवान नक्सलियों द्वारा बारुदी सुरंग से उड़ा दिए गए, लेकिन राष्ट्रीय टीवी चैनल “राखी का स्वयंवर” और सलमान खान का “दस का दम” दिखाने में व्यस्त रहे। किसी भी फिल्मी व्यक्तित्व या खिलाड़ी के विदेश में पुरस्कारी जीतते ही बधाई पत्र जारी करने वाला राष्ट्रपति भवन ने देश की रक्षा में शहीद हुए इन जवानों को लिए एक शब्द भी नहीं कहा।

मुम्बई एक महानगर है और छत्तीसगढ, ग्रामीण भारत का हिस्सा, इसीलिए नक्सलियों का यह हमला मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमले से कम है। है न?

दिल्ली में मेट्रो पुल गिरने से छह लोगों की मौत की खबर दो दिनों से छाई हुई है, इंग्लैंड- ऑस्ट्रेलिया के बीच एशेज का पहला टेस्ट ड्रॉ होने का विशेषज्ञ विश्लेषण किया जा रहा है, राखी सावंत का स्वयंवर, सलमान खान के टीवी शो में कंगना रानौत की उपस्थित और हॉलीवुड में मल्लिका शेरावत की धूम- ये सब हमारे टीवी चैनल की सुर्खियां थे, छत्तीसगढ में बारुदी सुरंग लगा कर उड़ाए गए सुरक्षाकर्मी सिर्फ चलताऊ खबर।

गृहमंत्री, प्रधानमंत्री, राष्ट्र्पति, रक्षामंत्री चुप हैं इस हमले पर। देश के बीचोंबीच, 200 से 500 नक्सली पहले केंद्रीय सुरक्षा बलों के 10 जवानों की हत्या करते हैं, फिर उसकी जांच करने गए पुलिस दल को गाजर-मूली की तरह काट देते हैं और सरकार की तरफ से कोई एक शब्द भी नहीं बोलता।

एक युवक दो समुदायों के बीच नफरत फैलाने के लिए जहर उगलता है और सांसद बन जाता है। फिर जेड श्रेणी की सुरक्षा की मांग करता है क्योंकि कथित तौर पर उसकी जान को खतरा है। दूसरा नेता दो प्रांतों के लोगों के बीच नफरत की खाई खोद कर, सरकार से प्राप्त ज़ेड श्रेणी की सुरक्षा के साये में अपनी राजनीति की दूकान चलाता है क्योंकि उसकी जान को खतरा है। ये दोनों जब मुंह खोलते हैं या अदालत जाने के लिए घर से कदम निकालते हैं तो टीवी चैनल उसके एक-एक क्षण का “लाइव” प्रसारण करते हैं। लेकिन ग्रामीण इलाके का एक पुलिस अधीक्षक नक्सलियों द्वारा घेर कर क्रूरतापूर्वक मार दिया जाता है और उसकी चर्चा तक नहीं होती।

मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमले के दौरान एटीएस प्रमुख करकरे, एनकाउंटर स्पेशलिस्ट विजय सालस्कर और एसीपी काम्टे की आतंकवादियों के हाथों किस तरह हत्या हुई थी, उसकी बहुत चर्चा हुई थी। पढ़िए राजनांदगांव के पुलिस अधीक्षक विनोद चौबे और उनके साथियों को किस तरह घात लगा कर मारा गया: (रिपोर्ट साभार : देशबंधु)

“मदनवाड़ा पुलिस कैम्प में दो पुलिसकर्मियों की हत्या की खबर मिलते ही आईजी मुकेश गुप्ता तथा राजनांदगांव एसपी विनोद कुमार चौबे अलग-अलग वाहनों से घटना स्थल की ओर रवाना हो गए और मानपुर पहुंचे।
मानपुर से लगभग 11 बजे एसपी चौबे पूरे दल बल के साथ वहां से लगभग 9 किलोमीटर दूर स्थित राजनांदगांव के मदनवाड़ा के लिए रवाना हो गए। मदनवाड़ा पुलिस पोस्ट से कुछ दूर पहले ही नक्सलियों ने एसपी के ड्राइवर को गोली मार दी।
इसके बाद पुलिस अधीक्षक विनोद चौबे व उनके साथ गए जवान गाड़ी से उतर गए और मोर्चा संभाल लिया।
नक्सलियों ने पुलिस दल पर चारों ओर से जबरदस्त फायरिंग शुरू कर दी। जवानों का नेतृत्व कर रहे एसपी विनोद चौबे ने काफी देर तक नक्सलियों से लोहा लेते रहे, लेकिन नक्सलियों की एक गोली एसपी चौबे के कंधे पर जा लगी और इससे पहले की वे संभलने की कोशिश कर पाते नक्सलियों ने उनपर गोलियों की बौछार कर दी। एसपी चौबे की मौत के बाद भी जवानों ने मोर्चा संभाले रखा, लेकिन नक्सलियों ने पूरे इलाके को चारों तरफ से ऐसे घेर रखा था कि जवानों को बच निकलने का कोई रास्ता नहीं था।

पूरे इलाके पर नक्सलियों ने कब्जा कर रखा है, जिसके चलते पुलिस को बचाव करने का मौका भी नहीं मिल पाया। बताया जा रहा है कि इस वारदात में दोपहर 1 बजे तक मोहला थाना प्रभारी विनोद धु्रव व एएसआई कोमल साहू के अलावा 21 जवान शहीद हो चुके थे। शाम होते-होते शहीद होनेवालों की संख्या बढ़कर 30 हो गई, जो देर रात तक 34 हो गई।

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक मानपुर मोहला इलाके के मदनवाड़ा, सीतागांव सहित करीब चार गांवों में नक्सलियों ने डेरा डाल रखा है।” .... चार गांवों में नक्सलियों ने डेरा डाल रखा है लेकिन न तो राज्य सरकार, और न ही केन्द्र सरकार इस पर कुछ बोलती है।


बहादुरी के लिए राष्ट्रपति पदक से सम्मानित एक पुलिस अफसर और 39 जवानों की मौत देश को या सरकार को हिलाने वाली खबर नहीं है.. समलैंगिकों को आपसी सहमति से सेक्स-संबंध बनाने की अदालती छूट मिलने की खबर, सप्ताह भर तक दिन-दिन भर दिखाने वाले टीवी चैनलों की खबर नहीं है..। देख कर लगता है, छत्तीसगढ़ भारत का हिस्सा है भी या नहीं? ...

Saabhaar – Josh18
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http://josh18.in.com/showstory.php?id=473922