वह निराकार है
अदृश्य है
दिखाई नहीं देता
कहा कहाँ खोजता है
भक्त
हार जाता है
थक जाता है
उसका पता नहीं पता है
पर
वह साकार भी है
साक्षात भी है
प्रकृती के कण कण मे
मौजूद है जन जन मे
बुजुर्गो मे,
उनकी दुआओं मे
बच्चो की किलकारियों मे
बहु बेटियों की
सदाओं मे
तरूवर पल्लव लताओं मे
सरसराती हवाओं मे
उमड़ती घुमड़ती घटाओं मे
महकती फिजाओं मे
कलरव करते
परिंदों पक्षियों मे
नाद करती नदियों मे
आओ हम निराकार को
साकार करें
उसका अभिनन्दन करें
वंदन करें
आओ हम निराकार को
साकार करें

अपनी तन्हाई की पलको को भीगो लूँ पहले

फिर गज़ल तुझ पे लिखूँ, रो लूँ पहले

ख्वाब के साथ कही खो ना गयी हों आंखे

जब उठू सो के तो चेहरे को टटोलूँ पहले

मेरे ख्वाबो को है मौसम पे भरोसा कितना

बाद मे फूल खिले हार पिरो लूँ पहले

देखना ये है कि वो रहता है खफा कब तक

मैने सोचा है कि  इस बार ना बोलूँ  पहले 
दर्द के हिंडोले मे झूल रहा हू मैं
आंसुओं के सागर मे डूब रहा हूँ मैं
कब आयेगा तू आने वाले ये तो बता
बिन तेरे तन्हा हो रहा हूँ मैं
कब तक कटेगी यादों के सहारे ये रातें
कुछ तो भ्रम रख लो की होंगी मुलाकातें
मेरी आँखों मे झांकते सितारों की गवाही ले लो
पलकों पे तैरते आंसुओं की कसम ले लो
जुदाई के नश्तर जब भी चुभते हैं
लहुलुहान दिल को, सीना चाक कर देते हैं
तन्हाईयाँ भी मेरी बेबसी पर हंसने लगी हैं
अरमानो की चिताएं भी सजने लगी हैं
चांदनी भी आग लगाने को तैयार खडी है
लौट आओ की संभल जाए ये दिल
वरना तो कहानी अपनी ख़त्म होने लगी है।

अपनी मर्जी से लोग हमारे दिल में आकर बस जाते हैं.



हमारे दिल को अपना घर और हमे अपना कहकर बुलाते हैं.


जब जाना होता है उनको तो हँसकर  चले जाते हैं.


उनको क्या मालूम कि वो हमारे दिल को कितना दर्द दे जाते हैं.


…Happy Valentine’s Day
जब से
तुम
मिल गए,
मौसम के
सुनहरे पंख
खुल गए ।

अगणित
कलियों पर
चाँद चमका है,
जब से
तुम्हारा
घूँघट सरका है ।

बागवान के
जैसे,
दिन फिर गए ।

पवन की
झप-झप
सनसनी लिए है;
जब से
तुम्हारे आँचल से
झोंके मिले हैं ।

गरमाते बदन
सिहर
सिहर गए !
[] राकेश 'सोहम'

सीने मे लिये तेरी यादो को


हम तो दुर कही चले जायेंगे


या वादिया ये मौसम और ये नज़ारे


इन्हे हम तो कभी ना भूल पायेंगे


क्या भूलू क्या याद करू


अपनी यादे तुझको सौगात करू


वादा नही पर एक चाह है दिल मे


तुमको मिलने को हम फिर आयेंग़े


जिन्दगी नही तो चन्द लम्हे ही बितायेंगे


ए मेरे शहर शायद हम भी तुझको याद आयेंग़े
छलनी आत्मा पर मरहम मत लगाना
अब बहुत देर हो चुकी है
टूटे सपनो को अब मत सजाना
अब बहुत देर हो चुकी है
गम के समंदर मे ख़ुशी की नाव मत चलाना
अब बहुत देर हो चुकी है
कुचले हुए फूलो को पानी के छींटे मत देना
अब बहुत देर हो चुकी है
मुझे धरा पर गिरा कर आसमान मत दिखाना
अब बहुत देर हो चुकी है
अक्स मेरा मिटा कर उसे फिर मत खोजना
अब बहुत देर हो चुकी है.